भारत ने अगस्त में यूरोप को औसतन 2.42 लाख बैरल प्रतिदिन डीजल निर्यात किया, यह पिछले साल से 137% अधिक
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नई दिल्ली। भारत के डीजल निर्यात ने अगस्त महीने में नया रिकॉर्ड बनाया है। आंकड़ों के अनुसार, भारत ने अगस्त में यूरोप को औसतन 2.42 लाख बैरल प्रतिदिन (बीपीडी) डीजल निर्यात किया, जो पिछले साल की तुलना में 137% अधिक है। यह वृद्धि अचानक नहीं है, बल्कि कई भू-राजनीतिक और आर्थिक कारणों का परिणाम मानी जा रही है। यूरोप वर्तमान में अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए विकल्प तलाश रहा है, क्योंकि 2026 से यूरोपीय संघ (ईयू) ने यह तय किया है कि वह रूस के कच्चे तेल से परिशोधित (रिफाइन्ड) ईंधन को प्रतिबंधित कर देगा। रूस लंबे समय से यूरोप का प्रमुख ऊर्जा आपूर्तिकर्ता रहा है, लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप ने रूस पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए और अब वह पूरी तरह वैकल्पिक सप्लाई चेन बनाना चाहता है। भारत इस परिस्थिति का बड़ा लाभार्थी बन कर उभरा है।
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यूरोपीय देशों ने भारत से बढ़ाई कच्चे तेल की खरीद
भारत की तेल रिफाइनिंग कंपनियां, खासकर रिलायंस इंडस्ट्रीज, रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदकर डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों को परिशोधित करती हैं और फिर उन्हें वैश्विक बाजारों में बेचती हैं। इधर, यूरोप को रूसी ईंधन की कमी का डर सताने लगा, तो उन्होंने भारत जैसे देशों से खरीद बढ़ानी शुरू कर दी। यही कारण है कि अगस्त में भारत से यूरोप को डीजल निर्यात लगभग दोगुने से भी अधिक बढ़ गया है। केप्लर और वॉर्टेक्स जैसी डेटा एनालिटिक्स कंपनियां बताती हैं कि भारत का निर्यात न केवल सालाना आधार पर बढ़ा है, बल्कि जुलाई 2025 की तुलना में भी 30–70% तक की वृद्धि दर्ज की गई है। अलग-अलग ट्रैकर थोड़े अलग आंकड़े दिखाते हैं, लेकिन सभी का निष्कर्ष यही है कि भारत का डीजल यूरोप के लिए इस समय अत्यधिक महत्वपूर्ण बन चुका है। इस वृद्धि के पीछे कई कारण बताए गए हैं।
रूसी तेल पर बैन के पहले यूरोपीय देशों ने बढ़ाई खरीद
पहला, यूरोप की कुछ बड़ी रिफाइनरियों ने अचानक रख-रखाव का काम पहले ही शुरू कर दिया है, जिससे वहां उत्पादन अस्थायी रूप से कम हो गया है। दूसरा, सर्दियों का मौसम नजदीक है और यूरोप को हीटिंग और परिवहन दोनों के लिए अधिक डीजल की जरूरत पड़ेगी। तीसरा, 2026 से लागू होने वाला यूरोपियन यूनियन (ईयू) का प्रतिबंध यूरोपीय खरीदारों को पहले से ही सुरक्षा कवच (स्टॉकपाइल) बनाने के लिए प्रेरित कर रहा है, ताकि अचानक आपूर्ति संकट न खड़ा हो पाए। विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 के बाकी महीनों में भी यूरोप भारत से डीजल की खरीद जारी रखेगा। हालांकि, 2026 के बाद भारत की स्थिति बदल सकती है, क्योंकि यूरोप ने स्पष्ट कर दिया है कि वह रूस से जुड़े परिशोधित उत्पादों को पूरी तरह बंद कर देगा। यदि भारत रूस से कच्चा तेल लेकर उसे रिफाइन करता रहेगा, तो यूरोप भविष्य में ऐसे आयातों पर रोक लगा सकता है।
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भारत को तेल के अन्य स्रोतों की करनी चाहिए खोज
यह भारत के लिए एक चुनौती होगी क्योंकि फिलहाल उसकी निर्यात रणनीति काफी हद तक सस्ते रूसी कच्चे तेल पर आधारित है। इसका व्यापक अर्थ यह है कि अभी के लिए भारत को एक बड़ा निर्यात अवसर मिल रहा है, जिससे विदेशी मुद्रा आय और रिफाइनिंग उद्योग दोनों को मजबूती मिल रही है। लेकिन दीर्घकाल में भारत को यह सोचना होगा कि कैसे वह अपनी ऊर्जा रणनीति को संतुलित करे ताकि यूरोपीय बाजार न खोए। यदि भारत समय रहते अन्य स्रोतों से कच्चा तेल लेकर डीजल परिशोधन करना शुरू करता है, तो वह यूरोप के लिए विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता बना रह सकता है। कुल मिलाकर, भारत का डीजल निर्यात 137% बढ़ना केवल व्यापारिक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र में भारत की भूमिका लगातार बढ़ रही है। यह वृद्धि भारत को अल्पकाल में मजबूत बनाती है, लेकिन भविष्य की चुनौतियों के प्रति सतर्क रहना जरूरी है।