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मुंबई। भारत में आज सबसे बड़ी आर्थिक चिंता रुपए की लगातार कमजोरी बन गई है। रुपए की यह गिरावट 12 दिसंबर सुबह नए ऐतिहासिक निचले स्तर 90.56 प्रति डॉलर पर पहुंच गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मजबूती और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते के टलने से पैदा हुई अनिश्चितता ने निवेशकों का भरोसा कमजोर कर दिया है। जैसे-जैसे विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं, डॉलर की मांग बढ़ती जा रही है और इसका सीधा दबाव रुपए पर पड़ रहा है। यह गिरावट केवल बाजार तक सीमित मामला नहीं है, बल्कि इसका असर आम लोगों की जेब से लेकर व्यवसायों की लागत तक हर जगह महसूस किया जाएगा।
रुपया कमजोर होने का असर कई तरह से दिखाई देता है। रुपए के गिरते ही तमाम आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, क्योंकि उन्हें खरीदने के लिए अधिक डॉलर का भुगतान करना पड़ता है। इनमें से कच्चे तेल का महंगा होना पूरे सिस्टम की लागत में तेज बढ़ोतरी करता है। परिवहन महंगा हो जाता है, और उसी के साथ रोजमर्रा की जरूरी वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ने लगती हैं। ऐसे समय में महंगाई पर नियंत्रण सरकार और रिजर्व बैंक दोनों के लिए बड़ी चुनौती बन जाती है।
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि निर्यातक कंपनियों के लिए रुपया कमजोर होना फायदेमंद भी हो सकता है, क्योंकि डॉलर में कमाई करने पर उन्हें अधिक रुपए मिलते हैं। लेकिन यह फायदा तभी वास्तविक होता है जब वैश्विक मांग मजबूत हो। वर्तमान में दुनिया भर में आर्थिक अनिश्चितता और व्यापारिक तनाव बढ़े हुए हैं, जिससे निर्यातकों को मिलने वाले लाभ भी सीमित रह जाते हैं। कीमती धातुओं की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतों के कारण भारतीय आयातकों द्वारा डॉलर की भारी खरीद ने भी रुपए को नीचे धकेलने में बड़ी भूमिका निभाई है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) द्वारा लगातार बिकवाली और वैश्विक जोखिमों से बचने की प्रवृत्ति ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है। रुपए का 90.56 तक फिसलना सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि यह संकेत है कि महंगाई बढ़ सकती है, आयात और महंगे होंगे, और विदेशी निवेशकों का भरोसा कमजोर हो सकता है। आने वाले दिनों में रिजर्व बैंक बाजार में हस्तक्षेप या नीतिगत कदम उठाकर इस गिरावट को रोकने की कोशिश कर सकता है ताकि रुपए में अत्यधिक उतार-चढ़ाव से अर्थव्यवस्था को बचाया जा सके।
आरबीआई अब तक रुपए की गिरावट को रोकने का सक्रिय प्रयास करता नहीं दिखाई दे रहा है। कल की गिरावट को रोकने के लिए उसने हस्तक्षेप किया था, लेकिन यह गिरावट बेहद सीमित दायरे में रही, जिसका रुपए की सेहत पर ज्यादा असर देखने को नहीं मिला। हालांकि, आरबीआई के हस्तक्षेप की वजह से रुपए की बड़ी गिरावट को थामने में जरूर मदद मिली थी और बाद सत्रों में रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर से रिकवरी करता दिखाई दिया। सरकार भी रुपए की गिरावट को अभी बहुत गंभीरता से नहीं ले रही है। देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंत नागेश्वरन ने कहा है कि रुपए की गिरावट फिलहाल सरकार की चिंता का विषय नहीं है।