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सतीश श्रीवास्तव
जबलपुर। बादशाह हलवाई मंदिर अपनी ऐतिहासिकता और पुरातात्विक महत्व के लिए पूरे देश में ख्यात है। मंदिर में स्थापित 16 भुजाओं वाले वीर गणेश की प्रतिमा 16वीं से 17वीं सदी में किसी समय बनाई गई। इसकी पुष्टि पुरातत्व विभाग भी करता है। पुरातत्व विभाग के बोर्ड में मंदिर को 16वीं -17वीं सदी का बताया गया है। पुजारी धर्मेंद्र दुबे ने बताया कि इस मंदिर के निर्माण में जिस स्थापत्य शैली को अपनाया गया है, मंदिर में लगे पत्थरों की जो बनावट है, वह 16वीं 17वीं सदी के मंदिरों में देखने को मिलती है। स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के सामने स्थित पहाड़ी पर बने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 100 सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाना पड़ता है। बादशाह हलवाई मंदिर आस्था, स्थापत्य और ऐतिहासिकता का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, यह मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ना शुरू करते ही एहसास होने लगता है।
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मंदिर प्रांगण में घुसते ही जो मूर्ति सबसे पहले दिखाई देती है, वह अपनी प्राचीनता की जानकारी स्वयं ही देती है। जिन लोगों को कलचुरी कालीन मूर्तियों के बारे में पता है, उन्हें इस मंदिर में स्थापित मूर्तियों को देखकर तुरंत पता चल जाता है कि इन्हें किस कालखंड में बनाया गया है। इसके साथ ही मंदिर का स्थापत्य भी उसी उसी काल का होने की गवाही देता है।
ये मूर्तियां कलचुरी काल में बनाई गई हैं। मंदिर का स्ट्रक्चर भी उस समय प्रचलित स्थापत्य शैली से प्रेरित दिखाई देता है। जबलपुर का बादशाह हलवाई मंदिर में श्री गणेश की मूर्ति के अलावा, एक दर्जन से ज्यादा अन्य मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं। मंदिर का संरक्षण मध्य प्रदेश का पुरातत्व विभाग करता है।