नई दिल्ली। देश के ऊर्जा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव की शुरुआत हो गई है। केंद्र सरकार ने एटॉमिक एनर्जी बिल, 2025यानी शांति बिल को मंज़ूरी दे दी है। शांति का पूरा नाम है-सस्टेनेबल हार्नेसिंग ऑफ एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंंग इंडिया यानी शांति। इस बिल का मुख्य उद्देश्य पहली बार निजी कंपनियों को भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देना है, जो अब तक केवल सरकार के नियंत्रण में था। यह एक बड़ा कदम इसलिए भी है क्योंकि भारत ने 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है और मौजूदा ढांचा इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं था। पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस बिल को मंजूरी मिल गई है।
शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा बिल
अब इसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा। माना जा रहा है कि यह बिल परमाणु ऊर्जा से जुड़ी सभी प्रक्रियाओं और ढांचों के लिए एक एकीकृत और व्यापक कानूनी फ्रेमवर्क उपलब्ध कराएगा। अभी तक परमाणु ऊर्जा के लगभग सभी क्षेत्रों-जैसे खनिजों की खोज, खनन, ईंधन निर्माण, रिएक्टर संचालन आदि-केवल डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी (डीएई) के अधिकार क्षेत्र में थे। शांति बिल इन्हीं क्षेत्रों में नियंत्रित तरीके से निजी क्षेत्र की भागीदारी का रास्ता खोलता है। यह बदलाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि परमाणु ऊर्जा को देश में स्वच्छ, स्थायी और भरोसेमंद ऊर्जा स्रोत माना जाता है।
भारत में निवेशकों के लिए दशकों से बंद था यह क्षेत्र
लेकिन भारत में निजी निवेशकों के लिए यह क्षेत्र दशकों से बंद था, जिससे नई तकनीक, आधुनिक प्लांट और बड़े स्तर पर उत्पादन की क्षमता तेजी से नहीं बढ़ पाती थी। शांति बिल के लागू होने का मतलब है कि अब निजी कंपनियां भी परमाणु खनिजों की खोज, ईंधन निर्माण, नई तकनीकों के विकास और ऊर्जा संयंत्रों में निवेश कर सकेंगी। इससे पूंजी निवेश बढ़ेगा, नई तकनीक आएगी और बड़े पैमाने पर उत्पादन क्षमता बढ़ेगी। बिल में यह प्रस्ताव है कि परमाणु ऊर्जा से जुड़े मामलों के लिए एक विशेष न्यायाधिकरण बनाया जाए, जो परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं, लाइसेंसिंग, सुरक्षा या अन्य कानूनी विवादों का निपटारा करेगा।
विशेष न्यूक्लियर सेफ्टी अथॉरिटी बनाने की योजना
इसके साथ ही सरकार की एक विशेष न्यूक्लियर सेफ्टी अथॉरिटी बनाने की योजना भी है, जो अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के साथ मिलकर सुरक्षा मानकों की निगरानी करेगी। इससे यह सुनिश्चित होगा कि निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने के बावजूद सुरक्षा और गुणवत्ता से कोई समझौता न हो। कुल मिलाकर, शांति बिल भारत की ऊर्जा नीति में एक क्रांतिकारी कदम है। यह न सिर्फ परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी निवेश के लिए खोलता है, बल्कि भारत को भविष्य में स्वच्छ और स्थायी ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी एक बड़ा प्रयास है। यह कानून आने वाले वर्षों में भारत की ऊर्जा क्षमता को कई गुना बढ़ा सकता है और देश को 2047 तक 100 गीगावॉट परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य के बेहद करीब ले जा सकता है।