विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बीते दो माह में फाइनेंस और आईटी सेक्टर में 60,000 करोड़ के शेयर बेचे
मुंबई। भारतीय शेयर बाजार पर विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का भरोसा फिलहाल डगमगाता नजर आ रहा है। बीते दो महीनों में एफआईआई ने भारत के सबसे अहम सेक्टरों वित्तीय और आईटी सेक्टर से लगभग 60,000 करोड़ रुपए की भारी बिकवाली की है। इसे भारतीय बाजार की सेहत के लिए गंभीर झटका माना जा रहा है, क्योंकि यही सेक्टर देश की आर्थिक वृद्धि और बाजार पूंजीकरण के मुख्य स्तंभ माने जाते हैं। एनएसडीएल के आंकडों के अनुसार जुलाई में एफआईआई ने वित्तीय कंपनियों के 5,900 करोड़ रुपए के शेयर बेचे, जबकि अगस्त में यह बिकवाली बढ़कर 23,288 करोड़ रुपए हो गई। आईटी सेक्टर का भी कमोबेश यही हाल रहा, यहां जुलाई में 19,901 करोड़ रुपए की बिकवाली के बाद अगस्त में और 11,285 करोड़ रुपए निकाले गए। यह प्रवृत्ति दिखाती है कि विदेशी निवेशक भारत की आय रिकवरी और वैश्विक आर्थिक हालात को लेकर चिंतित हैं।
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बड़े दबाव से जूझ रहा है आईटी सेक्टर
आईटी सेक्टर पर दबाव का बड़ा कारण वैश्विक स्तर पर टेक्नोलॉजी कंपनियों की मंदी है। अमेरिका और यूरोप में टेक खर्च घटने से भारतीय आईटी कंपनियों के लिए नए ऑर्डर और प्रोजेक्ट्स में कमी आई है। वहीं, वित्तीय सेक्टर की समस्या घरेलू स्तर पर बढ़ी है। बैंकों को ऋण की कमजोर मांग और क्रेडिट लागत बढ़ने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे हालात में विदेशी निवेशक बैंकिंग शेयरों को जोखिम भरा मानकर दूरी बना रहे हैं। यह बिकवाली सिर्फ इन दो क्षेत्रों तक सीमित नहीं रही। तेल और गैस, पावर, उपभोक्ता सामान, हेल्थकेयर, रियल्टी और एफएमसीजी कंपनियों से भी विदेशी फंड बाहर निकले हैं। इससे भारतीय बाजार में व्यापक दबाव दिखा।
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मिडकैप और स्मालकैप कंपनियों में बढ़ाया निवेश
घरेलू ब्रोकरेज कंपनी कल्पतरु इंटरप्राइजेज के आदित्य मनिया जैन बताते हैं कि एफआईआई की नजर केवल बिकवाली पर केंद्रित नहीं है। वे बड़ी कंपनियों से पैसा निकालकर अच्छा प्रदर्शन करने वाली मिडकैप और स्माल कैप कंपनियों में अपना निवेश बढ़ा रहे हैं। इसका मतलब है कि वे जोखिम घटाने के लिए अपने निवेश को नए सेक्टर्स में विभाजित कर रहे हैं। पिछले एक साल में भारतीय शेयर बाज़ार अन्य उभरते हुए बाजारों की तुलना में लगभग 24 प्रतिशत अंकों से पिछड़ गया है। इसका सबसे बड़ा कारण कमजोर अर्निंग ग्रोथ रही है। जहां कुछ साल पहले कंपनियों का ईपीएस (प्रति शेयर आय) औसतन 25% की दर से बढ़ रही थी, लेकिन पिछले 5 तिमाहियों से यह वृद्धि एकल अंक तक सीमित हो गई है। यही कमजोरी विदेशी निवेशकों को अपना निवेश घटाने पर बाध्य कर रही है।
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दबाव का एक कारण इक्विटी सप्लाई का बढ़ना भी
एचएसबीसी का अनुमान है कि 2025 में आय वृद्धि की दर लगभग 11% रहेगी, लेकिन हकीकत में यह 8-9% तक सीमित हो सकती है। यानी निकट भविष्य में कोई तेज रिकवरी की संभावना नहीं है। इस बीच, गोल्डमैन सैक्स के आंकड़े बताते हैं कि वैश्विक म्यूचुअल फंड्स में भारत का आवंटन लगभग 20 साल के निचले स्तर पर आ गया है। बाजार पर दबाव का एक और कारण इक्विटी सप्लाई का बढ़ना है। कई बड़े कारोबारी अपने शेयरों की हिस्सेदारी आईपीओ या फॉलो-ऑन ऑफरिंग्स के जरिए बेच रहे हैं। अगर इनकी आपूर्ति, घरेलू निवेशकों की खरीदारी (जैसे एसआईपी) से अधिक हो जाती है, तो शेयर बाजार में और गिरावट आ सकती है।