Aniruddh Singh
7 Nov 2025
Aniruddh Singh
7 Nov 2025
नई दिल्ली। भारत तेजी से सेमीकंडक्टर हब बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, लेकिन इस यात्रा की सबसे बड़ी चुनौती कुशल मानव संसाधन की कमी है। देश में सॉफ्टवेयर, एआई और डिजाइन से जुड़े टैलेंट उपलब्ध हैं, लेकिन चिप डिजाइन और फैक्ट्री से जुड़े विशेष ज्ञान वाले लोग बहुत कम हैं। यही वजह है कि बड़ी चिप कंपनियां न केवल वैश्विक स्तर पर लोगों को भर्ती कर रही हैं बल्कि भारतीय इंजीनियरों और कर्मचारियों को सिंगापुर, ताइवान और कोरिया जैसे देशों में प्रशिक्षण के लिए भेज रही हैं। साथ ही विदेशी विशेषज्ञों को भारत लाकर स्थानीय स्तर पर ट्रेनिंग की व्यवस्था भी की जा रही है। एप्लाइड मैटेरिल्स, रेनेसा इलेक्ट्रानिक्स, कायन्स टेक्नोलॉजी , डेल्टा इलेक्ट्रानिक्स, मार्वेल टेक्नालाजी, जेटवर्क इलेक्ट्रानिक्स और सिरमा एसजीएस जैसी कंपनियां इस समय अपने कर्मचारियों के कौशल को बढ़ाने के लिए वैश्विक नेटवर्क का उपयोग कर रही हैं। उदाहरण के लिए, एप्लाइड मैटेरियल्स अपने सिंगापुर केंद्र से विशेषज्ञता भारत में ला रही है, वहीं कायन्स टेक्नोलॉजी के कर्मचारी ताइवान में प्रशिक्षण ले रहे हैं।
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इसी तरह, डेल्टा इलेक्ट्रानिक्स ने ताइवान से अपने सहयोगियों को भारत बुलाकर अनुसंधान, निर्माण और अन्य प्रक्रियाओं में मदद लेने की पहल की है। रेनेसा इंडिया ने तो और आगे बढ़कर एक संयुक्त उद्यम (जॉइंट वेंचर) मॉडल अपनाया है, जिसमें थाईलैंड और अन्य एशियाई देशों की कंपनियां साझेदार हैं। इस साझेदारी से क्रॉस-ट्रेनिंग यानी पारस्परिक ज्ञान हस्तांतरण संभव हो रहा है। अमेरिकी कंपनी मार्वेल के भारत प्रमुख ने कहा उनके लिए वैश्विक सहयोग और ज्ञान साझा करना रोजमर्रा की गतिविधि बन चुका है। घरेलू स्तर पर भी कंपनियां तकनीकी संस्थानों और स्किल डेवलपमेंट संस्थाओं से जुड़कर नए टैलेंट को प्रशिक्षित कर रही हैं। उदाहरण के लिए, जेटवर्क इलेक्टानिक्स ने आईसीटी एकेडमी और नास्कॉम के स्किल काउंसिल के साथ मिलकर पाठ्यक्रम तैयार किया है। इस पहल से कंपनी ने लगभग 15 नए प्रशिक्षित युवा कर्मचारियों को नियुक्त किया है और भविष्य में यही युवा उसके कार्यबल का 80% हिस्सा होंगे।
दिलचस्प बात यह है कि उद्योग जगत का एक वर्ग यह मानता है कि यह समस्या सरकार की नहीं बल्कि उद्योग की है। उनका कहना है कि स्किल की कमी नहीं बल्कि कौशल अंतर है, जिसे कंपनियों को खुद ही सुलझाना होगा। एप्लाइड मार्वेल्स के प्रबंध निदेशक का कहना है कि आज कुछ क्षेत्रों खासकर चिप डिजाइन और फैक्ट्री रोल्स में कमी है, लेकिन इसे वैश्विक प्रशिक्षण और टैलेंट एक्सचेंज से हल किया जाएगा। भारत की सेमीकंडक्टर यात्रा में यह कौशल अंतर इसलिए अहम है, क्योंकि चिप निर्माण केवल तकनीकी डिज़ाइन तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें फैक्ट्री संचालन, उत्पादन प्रक्रिया और आपूर्ति शृंखला की गहरी समझ भी शामिल है। यदि भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करनी है तो इस विशेषज्ञता का होना अनिवार्य है।
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इस पूरी स्थिति से संदेश स्पष्ट है भारत की सेमीकंडक्टर महत्वाकांक्षा को सफल बनाने के लिए केवल घरेलू प्रशिक्षण पर्याप्त नहीं होगा। कंपनियों को वैश्विक टैलेंट पाइपलाइन का उपयोग करना होगा, कर्मचारियों को विदेशी केंद्रों में प्रशिक्षण के लिए भेजना होगा और विदेश से विशेषज्ञों को बुलाकर ज्ञान साझा करना होगा। साथ ही, स्थानीय तकनीकी संस्थानों के साथ मिलकर लंबे समय तक चलने वाले स्किलिंग प्रोग्राम बनाने होंगे। यही संतुलित मॉडल भारत की सेमीकंडक्टर महत्वाकांक्षा को मज़बूत करेगा और उसे भविष्य में दुनिया के प्रमुख चिप निर्माण केंद्रों की सूची में शामिल करेगा।