Shivani Gupta
28 Dec 2025
जयपुर। अरावली पर्वतमाला को लेकर उठा विवाद एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। यह विवाद जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली मानने की नई परिभाषा से जुड़ा है। जिसका देशभर में जोरो-शोरों से विरोध हो रहा है। इसी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है।
इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली वैकेशन बेंच सोमवार को सुनवाई करेगी। बेंच में जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल होंगे। जानकारी के मुताबिक, यह मामला सीजेआई की वैकेशन कोर्ट की लिस्ट में पांचवें नंबर पर दर्ज है।
अरावली से जुड़ा यह विवाद पर्यावरण संरक्षण और खनन गतिविधियों से सीधे तौर पर जुड़ा माना जा रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई बेहद अहम मानी जा रही है। संभावना है कि अदालत इस मामले में केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों को नए दिशा-निर्देश जारी कर सकती है। फिलहाल सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हुई हैं।
बता दें नवंबर 2025 में शीर्ष अदालत की एक बेंच ने, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुवाई में, पर्यावरण मंत्रालय की समिति की सिफारिशों को स्वीकारा था। इन सिफारिशों में अरावली पहाड़ियों को परिभाषित करने के लिए नया मानदंड तय किया गया।
इसके अनुसार, स्थानीय राहत (Local Relief) से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भूमि-आकृतियों को ही अरावली पहाड़ियां माना जाएगा। दूसरी ओर, अरावली रेंज को ऐसी दो या अधिक पहाड़ियों के समूह के रूप में परिभाषित किया गया, जो एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर स्थित हों। इसी नई परिभाषा को लेकर अब पर्यावरण विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों की ओर से आपत्तियां जताई जा रही हैं, जिसके चलते यह मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पहुंचा है।
केंद्र सरकार ने अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टों पर सभी राज्यों के लिए पूर्ण रोक लगा दी है। पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि अरावली पर्वतमाला पूरी तरह सुरक्षित है और इसकी नई परिभाषा से संरक्षण व्यवस्था अब और अधिक सशक्त होगी। मंत्रालय के अनुसार, इस कदम का उद्देश्य पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखना और अवैध खनन पर प्रभावी नियंत्रण करना है।
इसके साथ ही भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) को अरावली क्षेत्र में अतिरिक्त संरक्षित क्षेत्रों की पहचान करने के निर्देश भी दिए गए हैं, ताकि पर्यावरण संरक्षण के दायरे को और विस्तार दिया जा सके।