Aniruddh Singh
20 Dec 2025
वाशिंगटन। अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने यह संकेत दिया है कि आने वाले समय में ब्याज दरों में कटौती का रुख बेहद सावधानी से अपनाया जाएगा। यह बयान उन अधिकारियों के विचारों से अलग है जो तेज और बड़े पैमाने पर कटौती की वकालत कर रहे हैं। पॉवेल ने कहा कि यदि दरों को बहुत आक्रामक तरीके से घटा दिया गया, तो महंगाई नियंत्रण का काम अधूरा रह सकता है और फिर से दरें बढ़ाने की नौबत आ सकती है। दूसरी ओर, अगर दरें लंबे समय तक ऊंची रखी जाती हैं तो मजदूरी बाजार यानी रोजगार पर अनावश्यक दबाव पड़ सकता है। पिछले हफ्ते फेड ने इस साल पहली बार प्रमुख दर में कटौती की और इसे 4.3% से घटाकर 4.1% कर दिया। हालांकि, पॉवेल ने यह साफ कर दिया कि निकट भविष्य में अतिरिक्त कटौती की कोई जल्दी नहीं है। उनके मुताबिक, फेड के सामने दोहरे लक्ष्य हैं-रोजगार के अवसरों को मजबूत करना और महंगाई को स्थिर बनाए रखना। इस संतुलन में जल्दबाज़ी करने से स्थिति बिगड़ सकती है।
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इसके विपरीत, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा नियुक्त गवर्नर स्टीफन मिरान ने कहा कि फेड को जल्दी से जल्दी दरों को घटाकर 2% से 2.5% के स्तर पर ले आना चाहिए। उनका मानना है कि वर्तमान स्तर पर दरें बहुत ऊंची हैं और अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर असर डाल रही हैं। मिरान वर्तमान में ट्रंप प्रशासन में शीर्ष सलाहकार हैं और भविष्य में भी व्हाइट हाउस से जुड़े रह सकते हैं। ट्रंप के पहले कार्यकाल में नियुक्त किए गए फेड गवर्नर मिशेल बोमन, ने भी पॉवेल से अलग राय जताई। उन्होंने कहा कि महंगाई का दबाव धीरे-धीरे कम हो रहा है जबकि श्रम बाजार कमजोर पड़ रहा है। ऐसे हालात में दरों में तेज़ कटौती उचित होगी। बोमन ने नॉर्थ कैरोलिना में एक भाषण के दौरान कहा कि श्रम बाजार की गतिशीलता घट रही है और इसके संकेत गंभीर होते जा रहे हैं। यदि दरों में समय रहते बड़े और तेज कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति और बिगड़ सकती है।
हालांकि, पॉवेल और कुछ अन्य अधिकारी इस आक्रामक रुख से सहमत नहीं हैं। शिकागो फेडरल रिज़र्व के अध्यक्ष ऑस्टन गूल्सबी ने भी कहा कि महंगाई अभी भी 2% लक्ष्य से ऊपर है और लगातार 4.5 साल से अधिक समय से उस सीमा को पार कर रही है। ऐसे में ब्याज दरों में जल्दबाजी से कटौती करना जोखिम भरा हो सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि अत्यधिक आक्रामक रुख अपनाने से महंगाई का दबाव फिर बढ़ सकता है। फेडरल रिजर्व की नीतियां अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र को प्रभावित करती हैं। जब फेड अपनी प्रमुख ब्याज दर घटाता है, तो इसका असर धीरे-धीरे गृह ऋण, कार लोन और व्यावसायिक ऋण जैसी अन्य उधार लागतों पर भी पड़ता है। इसीलिए इस बहस का सीधा असर आम नागरिकों और कंपनियों पर पड़ता है।
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पॉवेल का सतर्क रुख यह दिखाता है कि फेड अभी संतुलित कदम उठाना चाहता है। एक तरफ तेज़ी से गिरती नौकरी की संभावनाएं और दूसरी ओर अब भी उच्च महंगाई, दोनों ही स्थितियां नीति निर्धारण को कठिन बना रही हैं। जहां कुछ अधिकारी तेज कटौती को समाधान मानते हैं, वहीं पॉवेल और उनके समर्थक इसे जोखिमपूर्ण मानते हैं और धीरे-धीरे कदम उठाने पर ज़ोर देते हैं। कुल मिलाकर, फेडरल रिज़र्व के भीतर गहरी विभाजन रेखाएं नजर आ रही हैं। एक गुट तेजी से दरें घटाकर रोजगार बाजार को राहत देना चाहता है, तो दूसरा गुट महंगाई नियंत्रण को प्राथमिकता देते हुए धीमी गति से चलना चाहता है। इस स्थिति से साफ है कि आने वाले महीनों में अमेरिका की मौद्रिक नीति पर लगातार गहन बहस और उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे।