Aniruddh Singh
14 Sep 2025
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14 Sep 2025
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Aniruddh Singh
13 Sep 2025
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13 Sep 2025
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13 Sep 2025
मुंबई। भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) ने हाल ही में ऐसे नए नियम लागू किए हैं, जो देश की कुछ सबसे बड़ी कंपनियों के लिए शेयर बाजार में प्रवेश को काफी आसान बनाने वाले हैं। खासकर रिलायंस जियो और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) जैसी कंपनियों के लिए यह बदलाव बेहद अहम है। अब तक जो बाधाएं थीं, वे अब काफी हद तक कम हो गई हैं और इससे निवेशकों और कंपनियों दोनों को बड़ा फायदा मिलने की उम्मीद है। पहले के नियमों के तहत, जिन कंपनियों का बाजार मूल्य 5 लाख करोड़ रुपए से अधिक होता था, उन्हें अपने आईपीओ के दौरान कम से कम 5% हिस्सेदारी बेचनी पड़ती थी। इसका मतलब यह था कि रिलायंस जियो जैसी विशाल कंपनी, जिसकी वैल्यू 13.5 लाख करोड़ रुपए आंकी गई है, को आईपीओ में एक बार में 58,000 से 67,500 करोड़ रुपए तक जुटाने पड़ते। यह इतनी बड़ी राशि है कि भारतीय बाजार के लिए इसे संभाल पाना आसान नहीं होता।
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सेबी ने अब इस नियम को आधा कर दिया है। यानी अब ऐसी कंपनियों को न्यूनतम 2.5% हिस्सेदारी ही बाजार में लानी होगी। इसका सीधा अर्थ है कि जियो को अपने आईपीओ में लगभग 30,000 करोड़ रुपए जुटाने होंगे। इससे न केवल बाजार पर अचानक भारी दबाव नहीं पड़ेगा, बल्कि कंपनी के लिए पब्लिक लिस्टिंग करना कहीं ज्यादा व्यावहारिक और सुगम हो जाएगा। रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी पहले ही यह संकेत दे चुके हैं कि जियो 2026 की पहली छमाही में शेयर बाजार में उतरेगा। उनका लक्ष्य है कि जियो निवेशकों के लिए वैसा ही मूल्य निर्माण करे जैसा कि वैश्विक डिजिटल दिग्गज कंपनियों ने किया है। ब्रोकरेज कंपनी सिटी का मानना है कि यह बदलाव रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए भी राहत लेकर आया है।
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पहले होल्डिंग कंपनी डिस्काउंट की जो आशंका रहती थी, वह अब कम हो जाएगी क्योंकि जियो की लिस्टिंग अधिक सुगम और संतुलित तरीके से होगी। नई व्यवस्था में कंपनियों को न्यूनतम 25% सार्वजनिक हिस्सेदारी (एमपीएस) की बाध्यता पूरी करने के लिए भी अधिक समय दिया गया है। अब उन्हें 10 साल तक का समय मिलेगा, जिससे वे धीरे-धीरे अपनी हिस्सेदारी घटा सकती हैं। इससे यह सुनिश्चित होगा कि बाजार में अचानक बड़े पैमाने पर शेयरों की बाढ़ न आ जाए और तरलता पर दबाव न पड़े। एनएसई, जिसकी वैल्यूएशन भी 5 लाख करोड़ रुपए से अधिक मानी जा रही है और जो अगले साल सूचीबद्ध होने की तैयारी में है, इस बदलाव की दूसरी सबसे बड़ी लाभार्थी कंपनी है।
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बैंकरों का कहना है कि कम फ्लोट की जरूरत से यह सुनिश्चित होगा कि आईपीओ का बोझ एक साथ न बढ़े और निवेशकों की रुचि बनी रहे। गौरतलब है कि सेबी ने पहले भी कुछ अपवाद दिए थे। जैसे 2022 में एलआईसी की लिस्टिंग के दौरान उसे केवल 3.5% हिस्सेदारी बेचने की अनुमति दी गई थी, जिससे उसने 21,000 करोड़ रुपए जुटाए थे। लेकिन अब नए नियमों ने इस तरह के मामलों में पारदर्शिता और स्थिरता ला दी है। अब बड़ी कंपनियों को पता होगा कि उनके लिए क्या ढांचा तय है और उन्हें किन शर्तों पर आगे बढ़ना है। यह बदलाव ऐसे समय में आया है जब भारत का आईपीओ बाजार पहले से ही बेहद सक्रिय है और 2.8 लाख करोड़ रुपए की विशाल पाइपलाइन तैयार है।
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प्राइमडेटाबेस के आंकड़ों के मुताबिक, सेबी पहले ही 1.14 लाख करोड़ रुपए के आईपीओ को मंजूरी दे चुका है, जबकि 1.64 लाख करोड़ रुपए के प्रस्ताव अभी मंजूरी की प्रतीक्षा में हैं। रिलायंस जियो की बहुप्रतीक्षित लिस्टिंग 13.5 लाख करोड़ रुपए के मूल्यांकन पर हो सकती है। यह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा आईपीओ बन सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि सेबी का यह कदम वाकई एक गेम चेंजर है, क्योंकि इससे न केवल इतनी बड़ी कंपनियों के लिए बाजार में आना संभव होगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि तरलता पर कोई अचानक नकारात्मक असर न पड़े। कुल मिलाकर, यह कदम भारत के पूंजी बाजार को और गहरा, स्थिर और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में एक बड़ा सुधार माना जा रहा है।