Aniruddh Singh
20 Sep 2025
वाशिंगटन। ट्रम्प प्रशासन द्वारा एच-1बी वीजा शुल्क में की गई बेतहाशा वृद्धि भारतीय पेशेवरों के लिए परेशानी पैदा करने वाला निर्णय है। इसने भारतीयों पेशेवरों के लिए अमेरिका जाने की संभावना का दरवाजा पार करना कठिन बना दिया है, लेकिन एक नई खिड़की भी खोल दी है, जो प्रतिभा पलायन को रोकने का अवसर प्रदान करेगी। अमेरिकी प्रशासन ने एच-1बी वीजा पर काम करने वाले कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए कंपनियों से 1 लाख डॉलर का भारी शुल्क वसूलने का निर्णय लिया है। इस फैसले ने वैश्विक तकनीकी और टैलेंट परिदृश्य में हलचल मचा दी है। यह निर्णय सबसे अधिक उन भारतीय पेशेवरों को प्रभावित करेगा, जिनका इसमें सबसे बड़ा हिस्सा रहा है। पिछले वर्ष स्वीकृत एच-1बी आवेदनों में 71% भारतीय थे। लंबे समय से भारत का सबसे प्रतिभाशाली युवा वर्ग, विशेषकर विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र से जुड़ा, अमेरिका का रुख करता रहा है।
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वहां बेहतर शिक्षा, वैश्विक अवसर और सिलिकॉन वैली जैसे इनोवेशन-ड्रिवेन माहौल ने इन्हें आकर्षित किया। एच-1बी वीजा उनके लिए सुनहरे टिकट की तरह था, जिससे वे पढ़ाई के बाद अमेरिका में काम कर सकते थे और आगे चलकर बड़ी कंपनियों में उच्च पदों पर पहुंचते या अपनी स्टार्टअप यात्रा शुरू करते। ट्रंप सरकार के इस नए फैसले से यह प्रवाह अब कमजोर हो सकता है। अमेरिका में भारतीय आईटी कंपनियों जैसे टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो और एचसीएल पर सीधा असर पड़ेगा, क्योंकि उन्हें अब कर्मचारियों पर अधिक खर्च करना पड़ेगा। लेकिन भारत के लिए यह पूरी तरह से नकारात्मक तस्वीर नहीं है। उल्टा, यह एक नए युग की शुरुआत हो सकती है। इसे ब्रेन ड्रेन से ब्रेन गेन में बदलने का अवसर माना जा सकता है।
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भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती हमेशा से यह रही है कि उसकी श्रेष्ठ प्रतिभाएं विदेशों का रुख करती हैं। लेकिन यदि एच-1बी वीज़ा जैसी बाधाओं के कारण यह प्रवाह धीमा पड़ता है, तो भारत को सीधा फायदा होगा। इसका अर्थ यह होगा कि जो इंजीनियर, वैज्ञानिक और टेक लीडर्स अमेरिका या अन्य देशों में अपना भविष्य देखते थे, वे अब भारत में रहकर काम करेंगे। इससे भारत की घरेलू नवाचार क्षमता बढ़ेगी। वे प्रतिभाएं जो विदेशों की बड़ी कंपनियों के लिए नई तकनीकें विकसित करती थीं, अब भारतीय स्टार्टअप्स, अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों को समर्पित हो सकती हैं। भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम पहले से ही दुनिया में तीसरे स्थान पर है। यदि इसमें विश्वस्तरीय टैलेंट जुड़ता है, तो यह और भी परिपक्व होगा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोटिक्स, बायोटेक जैसे गहन तकनीकी क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर मुकाबला कर सकेगा।
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इस तरह अमेरिकी प्रशासन का यह निर्णय भारत को सिलिकॉन वैली और चीन की तरह नवाचार का वैश्विक केंद्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ा सकता है। इस बदलाव का सामाजिक प्रभाव गहरा होगा। अब तक यह धारणा बनी रही है कि असली सफलता विदेश जाकर ही मिलती है। लेकिन जब शीर्ष प्रतिभाएं भारत में ही सफल करियर बनाएंगी, तो आने वाली पीढ़ियों को भी यह प्रेरणा मिलेगी कि भारत में रहकर भी वैश्विक प्रभाव डाला जा सकता है। साथ ही, भारतीय विश्वविद्यालयों को भी लाभ होगा। अब वे शोध और अध्यापन के क्षेत्र में उत्कृष्ट दिमागों को अपने साथ जोड़ पाएँगे। इससे शिक्षा और अनुसंधान का स्तर ऊंचा होगा, जिससे भारत की अकादमिक क्षमता मजबूत होगी।