Aniruddh Singh
21 Oct 2025
नई दिल्ली। देश में पेय पदार्थ उद्योग एक अहम बदलाव की ओर बढ़ रहा है। कोका-कोला, पेप्सीको और रिलायंस कंज्यूमर प्रोडक्ट्स जैसी बड़ी कंपनियों की सदस्यता वाले इंडियन बेवरेज एसोसिएशन (आईबीए) ने वित्त मंत्रालय को पत्र लिखकर शुगर-आधारित टैक्स प्रणाली लागू करने की मांग की है। वर्तमान समय में सभी तरह के एरेटेड ड्रिंक्स यानी गैस वाले पेय पर 28% जीएसटी और 12% क्षतिपूर्ति उपकर यानी कुल मिलाकर 40% टैक्स लगाया जाता है। यह दर सभी पेय पदार्थों पर लागू है, चाहे उनमें शुगर हो, कम शुगर हो या बिल्कुल शुगर न हो, उन पर टैक्स की यही दर लागू होती है। इन्हें सिन गुड्स में रखा गया है, जिनमें तंबाकू और पान मसाला भी शामिल है। कंपनियों का तर्क है कि यह व्यवस्था अनुचित है, क्योंकि शुगर-फ्री और कम शुगर वाले पेय स्वास्थ्य के लिहाज से अच्छे माने जाते हैं। आर्ईबीए ने जीएसटी काउन्सिल की बैठक के पहले इन पेय पदार्थों को तंबाकू या पान मसाले जैसी हानिकारक वस्तुओं के साथ नहीं रखा जा सकता।
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बता दें कि दुनियाभर में पेय पदार्थों पर शुगर-आधारित टैक्स प्रणाली पहले से लागू है। वहां पेय पदार्थों पर टैक्स की दर उनकी शुगर मात्रा से तय होती है। यानी जितनी अधिक चीनी होगी, उतना ही ज्यादा टैक्स लगाया जाएगा और जिन पेय में शुगर कम या न के बराबर है, उन पर अपेक्षाकृत कम टैक्स वसूला जाएगा। आईबीए का कहना है भारत को भी इसी वैश्विक मॉडल को अपनाना चाहिए ताकि स्वस्थ विकल्पों को बढ़ावा मिले और उपभोक्ताओं पर बेवजह टैक्स का बोझ न पड़े। हाल के सालों में भारत में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता तेजी से बढ़ी है। लोग अब शुगर-फ्री और लो-शुगर पेय की ओर रुख कर रहे हैं। उद्योग से जुड़े अनुमानों के अनुसार वर्ष 2024 में शुगर-फ्री और लो-शुगर ड्रिंक्स की बिक्री दोगुनी होकर 700-750 करोड़ रुपए तक पहुंच गई। यह अब कुल पेय उद्योग का लगभग 10 फीसदी हिस्सा बनाती है।
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शहरी उपभोक्ताओं ने स्वास्थ्य कारणों से शुगर कम करने वाले विकल्पों को अपनाना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि बड़े ब्रांड्स ने भी इस मांग को देखते हुए अपनी प्रोडक्ट रेंज को तेजी से बढ़ाया है। उदाहरण के लिए, पेप्सीको इंडिया के बॉटलिंग पार्टनर वरुण बेवरेजेज के वर्ष 2025 के छमाही आंकड़ों के अनुसार उनकी कुल बिक्री का 55% हिस्सा लो या नो-शुगर ड्रिंक्स से आया। यह पहली बार है, जब बिना शुगर या कम शुगर वाले पेय ने कुल राजस्व में आधे से ज्यादा योगदान दिया। कोका-कोला भी लंबे समय से डाइट कोक और कोक जीरो जैसे उत्पाद उपलब्ध करा रहा है, लेकिन अब उसने थम्स अप एक्स फोर्स और स्प्राइट जीरो जैसे नए वेरिएंट भी लॉन्च किए हैं। इसके अलावा कंपनी बॉडीआर्मर लाइट, चार्ज्ड और ऑनस्ट टी जैसे लो-कैलोरी और हेल्दी ड्रिंक्स भी बेच रही है। डाबर की रियल एक्टिव नो-एडेड शुगर जूस रेंज ने भी 2024 में 110% की जबरदस्त वृद्धि दर्ज की है।
आईबीए का मानना है कि एरेटेड पेय पदार्थों को सिन गुड्स कहना गलत वर्गीकरण है। उनका कहना है कि शुगर-फ्री या लो-शुगर ड्रिंक्स का तंबाकू और पान मसाले जैसी हानिकारक वस्तुओं से कोई तुलनात्मक स्वास्थ्य जोखिम नहीं है। यह वर्गीकरण उद्योग और उपभोक्ताओं दोनों के लिए अनुचित है। पूरे परिदृश्य में अहम बात यह है कि यदि शुगर-आधारित टैक्स लागू होता है, तो न केवल स्वस्थ विकल्पों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि कंपनियां भी नए उत्पादों के विकास और मार्केटिंग में और निवेश करेंगी। उपभोक्ताओं को भी किफायती दर पर हेल्दी विकल्प उपलब्ध होंगे। दूसरी ओर, यदि मौजूदा 40% टैक्स व्यवस्था बनी रहती है तो यह संभावित रूप से शुगर-फ्री और लो-शुगर ड्रिंक्स की वृद्धि को धीमा कर सकती है और उपभोक्ताओं को सस्ते परंतु कम स्वास्थ्यकर विकल्पों की ओर धकेल सकती है।