Aniruddh Singh
7 Nov 2025
Aniruddh Singh
7 Nov 2025
मास्को। यूक्रेन के लगातार ड्रोन हमलों से रूस के तेल रिफाइनरी संचालन बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद रूस का समुद्री मार्ग से कच्चे तेल का निर्यात 16 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। सितंबर 21 को समाप्त चार हफ्तों में रूस ने औसतन 36.2 लाख बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का निर्यात किया। यह मई 2024 के बाद सबसे ऊंचा स्तर है। यूक्रेनी हमलों के चलते रूस की रिफाइनिंग क्षमता घटकर 50 लाख बैरल प्रतिदिन से भी नीचे आ गई है। अप्रैल 2022 के बाद यह सबसे कम स्तर है। सामान्य परिस्थितियों में रूस अगस्त और सितंबर में करीब 54 लाख बैरल प्रतिदिन की प्रोसेसिंग करता रहा है। इसका मतलब है कि उसकी लगभग 7% क्षमता को नुकसान पहु्ंचा है। यानी घरेलू स्तर पर पेट्रोल, डीजल और अन्य ईंधन का उत्पादन प्रभावित हो रहा है, लेकिन निर्यात बढ़ता जा रहा है।
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इसके पीछे कारण यह है कि रिफाइनरी बंद होने से उपलब्ध कच्चा तेल घरेलू खपत के बजाय सीधे निर्यात के लिए भेजा जा रहा है। उदाहरण के लिए, रूस के बाल्टिक बंदरगाह प्रिमोर्स्क से पिछले सप्ताह रिकॉर्ड 12 कार्गो लोड किए गए। इसी तरह, ब्लैक सी तट से भी सप्लाई में कोई बड़ी रुकावट नहीं आई। हालांकि पंपिंग स्टेशनों पर हुए हमलों से आपूर्ति थोड़ी धीमी हुई है, लेकिन टर्मिनलों पर बने बड़े स्टोरेज टैंकों की वजह से स्थिति पर ज्यादा अंतर नहीं पड़ा है। उधर, ओपेक प्लस समझौते के तहत रूस को उत्पादन बढ़ाने की अनुमति भी मिली है। मार्च से अब तक रूस की उत्पादन सीमा 4 लाख बैरल प्रतिदिन से अधिक बढ़ाई गई है। इस वजह से ड्रोन हमलों से घरेलू उत्पादन बाधित होने के बावजूद निर्यात आपूर्ति को बनाए रखना संभव हुआ है।
वर्तमान परिस्थितियों में रूस की सरकार और कंपनियां घरेलू रिफाइनिंग की बजाय निर्यात से अधिक लाभ कमा रही हैं। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 21 तक के सप्ताह में रूस ने 31 टैंकरों में 2.37 करोड़ बैरल कच्चा तेल लादा। यह पिछले सप्ताह के 2.22 करोड़ बैरल से अधिक है। कुल निर्यात मूल्य भी बढ़कर 1.33 अरब डॉलर हो गया, जो लगभग 5 करोड़ डॉलर की वृद्धि है। इस पूरे घटनाक्रम का एक बड़ा भू-राजनीतिक पहलू भी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि रूस पर नए प्रतिबंध तभी लगाए जाएंगे जब यूरोपीय संघ के सभी देश रूसी तेल खरीद पूरी तरह बंद करेंगे। लेकिन यह स्थिति निकट भविष्य में संभव नहीं दिखती, क्योंकि हंगरी और स्लोवाकिया जैसे देश इसका विरोध कर रहे हैं।
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यूरोपीय संघ अब नए विकल्पों पर विचार कर रहा है, जैसे तेल पर सीधे टैरिफ लगाना। टैरिफ लागू करने के लिए सभी सदस्य देशों की सहमति जरूरी नहीं होती, केवल बहुमत पर्याप्त होता है। कुल मिलाकर तस्वीर यह है कि रूस पर हमले और पश्चिमी दबाव के बावजूद उसका कच्चा तेल वैश्विक बाजार में मजबूती से पहुंच रहा है। एक ओर घरेलू ईंधन उत्पादन घट रहा है, तो दूसरी ओर निर्यात से रूस को अरबों डॉलर की कमाई हो रही है। यह स्थिति यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस की आर्थिक मजबूती और उसके कच्चे तेल पर वैश्विक निर्भरता को भी उजागर करती है।