Manisha Dhanwani
4 Nov 2025
Peoples Reporter
4 Nov 2025
नई दिल्ली। झारखंड की राजनीति के भीष्म पितामह और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन का सोमवार को निधन हो गया। 81 वर्षीय शिबू सोरेन का इलाज दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से हृदय और किडनी से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे थे। उन्हें 19 जुलाई को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
शिबू सोरेन के निधन की खबर मिलते ही देशभर से शोक संदेशों का सिलसिला शुरू हो गया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू स्वयं गंगा राम अस्पताल पहुंचीं और उनके पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। राष्ट्रपति ने झारखंड के मुख्यमंत्री और शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन तथा उनकी पत्नी कल्पना सोरेन से भी मुलाकात कर गहरी संवेदना व्यक्त की।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी अस्पताल पहुंचे और शिबू सोरेन को श्रद्धासुमन अर्पित किए। दोनों नेताओं ने शोक संतप्त परिवार से मिलकर ढांढस बंधाया और दिवंगत नेता के योगदान को याद किया।
शिबू सोरेन को झारखंड राज्य के निर्माण के आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए याद किया जाता है। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री और कई बार सांसद रह चुके थे। उन्हें 'गुरुजी' के नाम से भी जाना जाता था। आदिवासी समाज के हक के लिए लड़ने वाले शिबू सोरेन ने अपने राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
शिबू सोरेन के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी समेत अनेक वरिष्ठ नेताओं ने शोक व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि "शिबू सोरेन जी ने झारखंड के लोगों की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया। उनका निधन राजनीति के एक युग का अंत है।"
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सरकारी सूत्रों के अनुसार, शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर आज देर शाम तक विशेष विमान से रांची लाया जाएगा। वहां मोरहाबादी मैदान में आम जनता के अंतिम दर्शन के लिए उनके शव को रखा जाएगा। इसके बाद उनका अंतिम संस्कार पारिवारिक परंपराओं के अनुसार किया जाएगा।
झारखंड सरकार ने शिबू सोरेन के निधन पर राज्य में तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। इस दौरान सभी सरकारी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा और किसी भी प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होंगे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, "मेरे पिता सिर्फ मेरे नहीं, बल्कि पूरे झारखंड के पिता समान थे। उन्होंने हमेशा न्याय, अधिकार और आदिवासी पहचान की लड़ाई लड़ी।" शिबू सोरेन का जाना केवल एक नेता की नहीं, बल्कि एक विचारधारा और संघर्ष की विरासत का अंत है। झारखंड ही नहीं, पूरा देश आज उनके योगदान को नमन कर रहा है।
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