Aniruddh Singh
7 Oct 2025
मुंबई। अमेरिका और भारत के बीच हाल ही में व्यापारिक तनाव बढ़ा है, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय वस्तुओं पर 50% तक का टैरिफ़ लगा दिया है। सामान्यत: ऐसा कदम निवेशकों को घबराहट में डाल देता है और शेयर बाजार में बिकवाली बढ़ जाती है। लेकिन जेफरीज के वैश्विक इक्विटी रणनीतिकार क्रिस्टोफर वुड का मानना बिल्कुल इसके बिल्कुल उलट है। उन्होंने कहा टैरिफ को बेचने का नहीं बल्कि खरीदने का संकेत समझा जाना चाहिए। उन्होंने कहा यह तय है कि डोनाल्ड ट्रंप को अपनी इस नीति से पीछे हटना पड़ेगा, क्योंकि यह अमेरिका के ही हित में नहीं है। वुड ने कहा ट्रंप की इस सख्ती का कोई ठोस आर्थिक आधार नहीं है, क्योंकि भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष बहुत बड़ा नहीं है।
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इसके उलट भारत अमेरिका के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक साझेदार है। ऐसे में इस तरह से भारत को निशाना बनाना असामान्य कदम कहा जाएगा। कुछ समय लेकर ट्रंप यह बात समझेंगे और अपना कदम वापस ले लेंगे। वुड ने यह भी इंगित किया कि दूसरी किस्त के 25% टैरिफ को भारत के रूस से तेल खरीदने के साथ जोड़कर देखा जा रहा है। यह दिलचस्प है कि चीन रूस से कहीं ज्यादा तेल खरीद रहा है, लेकिन उसे इस तरह से दंडित नहीं किया गया। अलास्का बैठक के बाद ट्रंप ने कहा है कि वह रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर तत्काल टैरिफ लगाने से पक्ष में नहीं हैं। वह इस पर एक दो हफ्ते में निर्णय करेंगे। उनका यह नरम रुख दिखाता है कि वह बहुत देर तक अपनी इस बात पर अड़े नहीं रहेंगे।
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वुड ने कहा ट्रंप की नीतियों ने परोक्ष रूप से चीन, रूस, भारत और ब्राजील जैसे देशों को एक साथ ला खड़ा किया है। उनकी वजह से वास्तव में ब्रिक्स जैसे मंच को पहले से कहीं अधिक सक्रियता मिल रही है, जो दुनिया की अर्थव्यवस्था का लगभग 40 फीसदी हिस्सा है। भारत के इक्विटी बाजार की स्थिति पर चर्चा करते हुए वुड ने कहा कि पिछले 12 महीनों में भारत ने अन्य बाजारों की तुलना में सबसे बड़ी अंडरपरफार्मेंस दिखाई है। इसके पीछे दो कारण बताए गए हैं-एक, अत्यधिक उच्च वैल्यूएशन और दूसरा इक्विटी इश्यू की अधिकता। हालांकि, अब स्थिति बदल रही है। भारतीय शेयरों के वैल्यूएशन दस साल के औसत प्रीमियम के स्तर पर वापस आ गए हैं। यानी अब बाजार बहुत महंगा नहीं दिख रहा। इस लिहाज से आगे बिकवाली करने का समय निकल चुका है। अब निवेशक भारतीय इक्विटी को अपेक्षाकृत आकर्षक मान सकते हैं।
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वुड ने अमेरिकी फेडरल रिजर्व की संभावित ब्याज दर नीति पर भी अपनी बात रखी। जुलाई में मुद्रास्फीति के आंकड़े उम्मीद से थोड़े बेहतर रहे हैं, जिससे सितंबर में अमेरिका में ब्याज दर कटौती की संभावना थोड़ी बढ़ गई है। अमेरिकी डॉलर अब डाउनट्रेंड में जा सकता है। हालांकि, फेड का रवैया डेटा-आधारित है और वह अभी भी सावधानी बरत रहा है, क्योंकि वास्तविक मुद्रास्फीति 2% लक्ष्य से ऊपर है। वुड ने कहा ट्रंप प्रशासन की ओर से फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल की आलोचना वास्तव में अर्थव्यवस्था की स्थिति से जुड़ी चिंता नहीं है, बल्कि ऋण चुकाने की लागत को कम करने का दबाव है। यानी राजनीति और आर्थिक हित यहां मिलकर काम कर रहे हैं। संदेश साफ है-टैरिफ जैसी असामान्य नीति अल्पकालिक हो सकती है। भारत की भू-राजनीतिक अहमियत और आर्थिक मजबूती को देखते हुए यह टिकाऊ नहीं होगी। क्रिस्टोफर वुड ने कहा यह समय निवेशकों के लिए घबराने का नहीं, अपने लिए सही अवसर तलाशने का समय है।
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