Aniruddh Singh
7 Oct 2025
वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की अलास्का में मुलाकात के बाद वैश्विक तेल बाजार में एक नया संकेत मिला है, जिसका सीधा असर भारत पर पड़ सकता है। बैठक के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर तत्काल कोई अतिरिक्त टैरिफ लगाने की जरूरत नहीं समझते। उन्होंने कहा कि आने वाले दो से तीन हफ्तों में इस पर विचार करेंगे। यानी रूसी राष्ट्रपति से बातचीत के बाद रूस से तेल खरीदने वालों के प्रति उनका रुख बदला है। माना जा रहा है कि यूक्रेन के मुद्दे पर रूस को राजी करना, अब उनकी पहली प्राथमिकता बन गई है, इस लिए संभव है कि अब वह अतिरिक्त टैरिफ को टाल दें।
अलास्का शिखर बैठक के पहले चीन पर भारी भरकम टैरिफ की समयावधि 90 दिन के लिए बढ़ाकर उन्होंने इस मुद्दे पर अपना नरम रुख पहले ही स्पष्ट कर दिया है। दरअसल, अमेरिका लंबे समय से रूस पर दबाव बनाने के लिए आर्थिक हथकंडे अपना रहा है। यूक्रेन युद्ध के बाद से ही पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं, ताकि उसके वित्तीय स्रोत कमजोर किए जा सकें। रूस की सबसे बड़ी आमदनी तेल और गैस निर्यात से होती है और इसमें भारत और चीन उसकी सबसे अहम ग्राहक हैं। चीन सबसे बड़ा खरीदार है, जबकि भारत दूसरा सबसे बड़ा ग्राहक है। अमेरिका चाहता है कि इन दोनों देशों पर दबाव डाला जाए, ताकि वे रूस से तेल खरीद कम करें और इस तरह मास्को की कमाई घटे।
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ट्रंप ने अपने बयान में यह साफ किया कि जब उन्होंने भारत को चेतावनी दी कि अगर तुम रूस से तेल खरीदोगे तो हम तुम पर शुल्क लगाएंगे, तो इसका असर रूस पर हुआ। क्योंकि भारत रूस का दूसरा सबसे बड़ा ग्राहक है और अब चीन के बराबर पहुंच रहा है। अलास्का बैठक के पहले डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि भारत पर टैरिफ का दबाव बढ़ाने की वजह से रूसी राष्ट्रपति बातचीत की मेज पर आने को राजी हुए है। वह बातचीत के लिए तब राजी हुआ जब रूस को समझ आया कि वह अपने बड़े ग्राहक को खो सकता है। इसी वजह से रूस ने अमेरिका से बातचीत की पहल की।
यानी ट्रंप यह संकेत दे रहे हैं कि उनकी सख्ती ने पुतिन को अमेरिका के साथ वार्ता करने पर मजबूर कर दिया है। जबकि भारत ने स्पष्ट कर चुका है कि उसने रूस से तेल खरीद बंद नहीं की है। क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का एक बड़ा हिस्सा आयात से पूरा करता है और रूसी तेल उसकी अर्थव्यवस्था के लिए सस्ता व सुविधाजनक विकल्प है। पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद भारत ने अब तक अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी है और रूस से तेल खरीदना जारी रखा है।
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ट्रंप का यह बयान भारत के लिए फिलहाल राहत लेकर आया है, क्योंकि तत्काल किसी नए शुल्क का सामना नहीं करना पड़ेगा। लेकिन असली सवाल यह है कि दो से तीन हफ्तों में हालात क्या होंगे। अगले कुछ दिनों में अगर यूक्रेन पर पुतिन का रुख अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुकूल नहीं रहा, तो यह तय है कि वह रूस पर और सख्ती बढ़ाएंगे। रूस पर सख्ती बढ़ाने का मतलब है कि भारत और चीन जैसे देश देश फिर से उसके निशाने पर आ जाएंगे। अगर अमेरिका ने सचमुच भारत जैसे देशों पर रूसी तेल खरीद को लेकर टैरिफ लगा दिया तो इससे भारत की ऊर्जा लागत बहुत बढ़ जाएगी।
सस्ती आपूर्ति के बजाय भारत को या तो महंगे विकल्प तलाशने पड़ेंगे या फिर अमेरिका को राजनीतिक स्तर पर समझाना पड़ेगा कि वह रूस से आयात को पूरी तरह रोक नहीं सकता। यह स्थिति भारत के लिए दोधारी तलवार की तरह है। एक ओर, रूस से सस्ता तेल खरीदकर भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को राहत दी है और महंगाई पर नियंत्रण रखा है। दूसरी ओर, अमेरिका के साथ बढ़ते व्यापार और रणनीतिक रिश्तों को भी भारत नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। इसलिए भारत को बहुत संतुलन के साथ अपनी नीति तय करनी होगी। ट्रंप का "फिलहाल राहत" वाला बयान इस लिहाज़ से अच्छा है कि भारत को तैयारी के लिए समय मिल गया है। लेकिन यह चेतावनी भी साफ है कि भविष्य में दबाव और बढ़ सकता है।
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