Aniruddh Singh
28 Oct 2025
नई दिल्ली। दुनिया के तीसरे सबसे बड़े कच्चे तेल के आयातक और उपभोक्ता भारत के तेल आयात में जुलाई 2025 में बड़ी गिरावट आई है। आंकड़ों के अनुसार, जुलाई में भारत ने लगभग 1.856 करोड़ टन कच्चा तेल आयात किया, जो पिछले महीने यानी जून की तुलना में 8.7% कम है। यह फरवरी 2024 के बाद का सबसे निचला स्तर है। सालाना आधार पर यह गिरावट 4.3% रही। यानी पिछले साल जुलाई में जहां 1.94 करोड़ टन तेल आयात किया गया, इस साल जुलाई में यह घटकर 1.86 करोड़ टन रह गया। सिर्फ कच्चे तेल का ही नहीं, बल्कि पेट्रोलियम उत्पादों का आयात भी 12.8% कम होकर 43.1 लाख टन रह गया। जुलाई में भारत के कच्चे तेल आयात में आई गिरावट केवल मांग में कमी की वजह से नहीं, बल्कि वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव, रूस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिका की व्यापारिक नीतियों के चलते भी सामने आई है। वहीं पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात भी 2.1% घटकर 50.2 लाख टन पर आ गया। इसी तरह भारत की कुल ईंधन खपत भी जुलाई में 4.3% घटकर 1.943 करोड़ टन रही।
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इसका सीधा संकेत है कि घरेलू मांग और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों, दोनों ने इस गिरावट में भूमिका निभाई है। इस पूरी स्थिति के पीछे सबसे बड़ी वजह अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए और संभावित अतिरिक्त टैरिफ माने जा रहे हैं। फिलहाल अमेरिका भारत से आयातित वस्तुओं पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगा चुका है और 27 अगस्त से यह शुल्क दोगुना होकर 50% तक पहुंच सकता है। यह दंडात्मक शुल्क मुख्य रूप से भारत के रूस से कच्चा तेल खरीदने के कारण लगाया जा रहा है। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से तेल आयात कम करे, लेकिन भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अभी भी रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीद रहा है।
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हालांकि, इस अमेरिकी दबाव के बीच भी भारतीय कंपनियों इंडियन ऑयल और भारत पेट्रोलियम ने सितंबर और अक्टूबर के लिए रूस से कच्चे तेल की नई खेप बुक कर ली है। इसका मतलब है कि भारत छूट वाले रूसी तेल का फायदा उठाना चाहता है, ताकि अपने ऊर्जा बिल को कम कर सके। वहीं रूस समर्थित और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों में फंसी नयारा एनर्जी डार्क फ्लीट यानी गुप्त शिपिंग नेटवर्क का उपयोग कर तेल और उसके उत्पादों का आयात-निर्यात कर रही है। विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका की ओर से लगने वाले इस भारी शुल्क का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर जरूर पड़ेगा। यूबीएस के विश्लेषक जियोवानी स्टानोवो ने कहा अमेरिकी टैरिफ की धमकी ही जुलाई में भारत के कच्चे तेल आयात पर भारी पड़ी है। क्योंकि कंपनियाँ भविष्य की अनिश्चितता को देखते हुए तेल खरीदने में सतर्क हो गई हैं।