Aniruddh Singh
8 Sep 2025
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8 Sep 2025
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8 Sep 2025
नई दिल्ली। जीएसटी काउंसिल ने हाल ही में जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा की व्यक्तिगत पॉलिसियों पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को पूरी तरह मुक्त करने का निर्णय लिया है। अब तक बीमा पॉलिसीधारकों को प्रीमियम पर 18% जीएसटी अतिरिक्त चुकाना पड़ता था, जिससे यह काफी महंगा हो जाता था। उदाहरण के तौर पर, यदि किसी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी का बेस प्रीमियम 1,000 रुपए है, तो ग्राहक को 1,180 रुपए का भुगतान करना पड़ता था। अब 22 सितंबर से यह पूरी तरह समाप्त हो जाएगा, जिससे सीधे तौर पर प्रीमियम की लागत घटेगी और लोगों के लिए बीमा अधिक किफायती हो जाएगा। यह कदम खासतौर पर उन लोगों के लिए राहत लेकर आया है जो बढ़ती मेडिकल महंगाई और स्वास्थ्य सेवाओं की लागत से परेशान हैं। हालांकि, यह उतना सीधा लाभ नहीं है जितना पहली नजर में लगता है, क्योंकि जीएसटी हटने से बीमा कंपनियों की लागत और मुनाफे की गणना बदल जाएगी।
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पहले बीमा कंपनियां एजेंट कमीशन, रीइंश्योरेंस, आउटसोर्सिंग, प्रशासनिक खर्च जैसे कई खर्चों पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का लाभ लेती थीं। जैसे, यदि किसी पॉलिसी पर 150 रुपए खर्च होते थे, तो उन्हें लगभग 27 रुपये का जीएसटी क्रेडिट मिलता था। अब जीएसटी हटने के बाद यह लाभ समाप्त हो जाएगा। इस स्थिति में बीमा कंपनियों के पास दो विकल्प होंगे—या तो वे अपने मुनाफे का कुछ हिस्सा कम कर ग्राहक को पूरा 18% लाभ दें, या फिर बेस प्रीमियम को बढ़ाकर इस नुकसान की भरपाई करें। उदाहरण के लिए, 1,000 रुपए का बेस प्रीमियम बढ़ाकर 1,027 रुपए किया जा सकता है। ऐसे में ग्राहक को फिर भी बचत होगी, लेकिन यह लगभग 15% के आसपास रह जाएगी। प्रतिस्पर्धा वाले क्षेत्रों, जैसे टर्म इंश्योरेंस में, कंपनियां ग्राहकों को बनाए रखने के लिए संभवत: मुनाफा कम करने का रास्ता अपनाएंगी।
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इस बदलाव का एक और बड़ा फायदा यह होगा कि कम प्रीमियम दरें अधिक युवाओं और स्वस्थ लोगों को बीमा लेने के लिए आकर्षित कर सकती हैं। इससे बीमा कंपनियों का जोखिम पूल संतुलित होगा। जब किसी बीमा पोर्टफोलियो में अधिकतर ग्राहक 45 वर्ष से ऊपर होते हैं, तो क्लेम की संख्या अधिक रहती है। वहीं, यदि 25-30 वर्ष के युवा भी जुड़ते हैं तो समग्र जोखिम कम हो जाता है और क्लेम प्रक्रिया ज्यादा टिकाऊ बनती है। एचडीएफसी ईआरजीओ के सीएफओ समीर शाह का मानना है कि यह कदम आईआरडीएआई के 2047 तक सभी के लिए बीमा के लक्ष्य को पूरा करने में मदद करेगा। जीवन बीमा की सेविंग योजनाओं जैसे एंडोमेंट, गारंटीड रिटर्न प्लान और यूएलआईपी में यह लाभ सीधे तौर पर बढ़ी हुई परिपक्वता राशि और उच्च रिटर्न के रूप में दिखाई देगा।
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पहले 1 लाख रुपए के निवेश में से कुछ हिस्सा जीएसटी में चला जाता था, लेकिन अब पूरा पैसा निवेश में लगेगा, जिससे लंबे समय में ग्राहकों को बेहतर रिटर्न मिलेगा। यह विशेष रूप से एलआईसी जैसी कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण होगा जिनकी बड़ी हिस्सेदारी ऐसी योजनाओं में है। हालांकि, यह राहत केवल व्यक्तिगत पॉलिसियों पर लागू होगी, न कि कंपनी या संस्थान द्वारा दिए गए ग्रुप इंश्योरेंस पर। अंतत:, इस बदलाव का वास्तविक लाभ इस बात पर निर्भर करेगा कि बीमा कंपनियां अपनी लागत को कैसे संभालती हैं। बड़ी कंपनियां अपने मुनाफे में कटौती कर ग्राहकों को पूरी राहत दे सकती हैं, जबकि छोटी कंपनियां कुछ लागत ग्राहकों पर डाल सकती हैं। इसलिए, पारदर्शिता बेहद जरूरी है। नियामकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कंपनियां ग्राहकों को स्पष्ट रूप से बताएं कि प्रीमियम में बदलाव कैसे किया गया है। कुल मिलाकर, यह कदम बीमा को किफायती और सुलभ बनाने की दिशा में एक बड़ा सुधार है, लेकिन अंतिम लाभ तभी स्पष्ट होगा जब बीमा कंपनियां अपने संशोधित दरों की घोषणा करेंगी।