Aniruddh Singh
8 Sep 2025
Aniruddh Singh
8 Sep 2025
Aniruddh Singh
8 Sep 2025
Aniruddh Singh
8 Sep 2025
नई दिल्ली। भारत की सरकारी तेल कंपनियां अमेरिकी दबाव को नजरअंदाज करते हुए रूसी कच्चे तेल की रियायती खरीद को पूरी तरह से बहाल करना चाहती हैं। लेकिन फिलहाल इन योजनाओं में बाधा आ रही है, क्योंकि रूस से मिलने वाले कार्गो की उपलब्धता कम हो गई है। इसका मुख्य कारण यह है कि रूस ने अपने कच्चे तेल की आपूर्ति का बड़ा हिस्सा चीन की ओर मोड़ दिया है, साथ ही अन्य देशों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा भी भारत की राह में रुकावट बन रही है। सूत्रों के मुताबिक, भारत के सरकारी रिफाइनर अक्टूबर लोडिंग के लिए रूसी तेल की पर्याप्त पेशकश नहीं पा रहे हैं। पहले जहां मॉस्को बड़ी मात्रा में भारत को तेल बेच रहा था, वहीं अब चीन की तरफ झुकाव बढ़ने से भारत को अपेक्षित मात्रा में तेल नहीं मिल पा रहा। इसके अलावा, रूस के तेल को खरीदने के लिए अन्य देशों की मांग भी तेज हो गई है, जिससे भारत की हिस्सेदारी घट गई है।
अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार भारत के खरीद पैटर्न पर कड़ी नजर रखे हुए है। इसकी बड़ी वजह है अमेरिका का हालिया कदम, जिसमें उसने रूस से आयात पर अधिक शुल्क लगाकर आपूर्ति को रोकने की कोशिश की। हालांकि इस पहल का भारत ने कड़ा विरोध किया। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने शुरुआती सख्त रुख अपनाया था, लेकिन हाल के दिनों में उसकी बयानबाज़ी कुछ नरम हुई है। फिर भी, शुल्क अब भी लागू हैं। इस बीच, ओपेक प्लस के हालिया फैसले ने भी स्थिति को और पेचीदा बना दिया है। संगठन ने आपूर्ति पर लगे प्रतिबंधों में और ढील देने का निर्णय लिया है। इसका मतलब यह है कि खाड़ी क्षेत्र के बड़े उत्पादक देशों सहित कई निर्यातकों को अब ज्यादा कच्चा तेल बेचने की छूट मिल गई है। ऐसे में रूस के साथ-साथ अन्य सप्लायर भी वैश्विक बाजार में सक्रिय हो रहे हैं, जिससे भारत के लिए सस्ती डील पाना मुश्किल होता जा रहा है।
भारत की चार प्रमुख सरकारी तेल कंपनियां इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन और मंगलुरु रिफाइनरी एवं पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड ने इस विषय पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं की है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा था कि भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा। यह बयान स्पष्ट करता है कि सरकार अमेरिकी दबाव के आगे झुकने के मूड में नहीं है। इससे पहले पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने भी अमेरिका की आलोचना करते हुए कहा था कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेगा।
कुल मिलाकर, भारत की नीति साफ है कि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों और आर्थिक हितों को प्राथमिकता देगा। लेकिन मौजूदा स्थिति में रूस से मिलने वाले कार्गो की कमी और चीन की बढ़ती हिस्सेदारी भारत की कोशिशों को चुनौती दे रही है। भविष्य में भारत को या तो रूस से नए समझौते करने होंगे या फिर अन्य देशों से प्रतिस्पर्धी दरों पर तेल आयात बढ़ाने के विकल्प तलाशने होंगे।