Aniruddh Singh
7 Oct 2025
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन आइडिया लिमिटेड (वीआई) की याचिका पर 13 अक्टूबर को सुनवाई तय की है, जिसमें कंपनी ने अपने समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) बकाया पर ब्याज, जुर्माना और जुर्माने पर ब्याज माफ करने की मांग की है। यह मामला टेलीकॉम सेक्टर के लिए बेहद अहम है क्योंकि इससे न केवल वीआई के भविष्य का फ़ैसला होगा बल्कि पूरे उद्योग की दिशा भी तय हो सकती है। वोडाफोन आइडिया ने अपने संशोधित आवेदन में दूरसंचार विभाग (डीओटी) की 9,450 करोड़ रुपए की अतिरिक्त एजीआर मांग को चुनौती दी है। कंपनी का कहना है कि उसने जानबूझकर बकाया नहीं रोका था, बल्कि यह विवाद न्यायिक व्याख्याओं में अंतर के कारण उत्पन्न हुआ। मार्च 2025 तक कंपनी के कुल एजीआर बकाया 83,400 करोड़ रुपए तक पहुंच गए हैं, जबकि उसकी नकद आरक्षित राशि केवल 6,830 करोड़ रुपए है, जिससे कंपनी की आर्थिक स्थिति बेहद नाज़ुक बन गई है।
ये भी पढ़ें: अडाणी डिफेन्स पर मिसाइल पार्ट्स के आयात में टैक्स चोरी का आरोप, सरकार ने शुरू की जांच
सरकार के सूत्रों के अनुसार, भारत सरकार और ब्रिटेन के बीच संबंधों को मजबूत करने की दिशा में यह विवाद सुलझाने पर विचार किया जा रहा है। सरकार संभवतः ब्याज और दंड को एकमुश्त माफ कर सकती है, जिससे वीआई को लगभग 50,000 करोड़ रुपए की राहत मिल सकती है। इस कदम से न केवल कंपनी को नया निवेश आकर्षित करने का मौका मिलेगा बल्कि टेलीकॉम सेक्टर में प्रतिस्पर्धा भी बनी रहेगी। वोडाफोन आइडिया की स्थापना वोडाफोन ग्रुप पीएलसी और आदित्य बिड़ला ग्रुप की आइडिया सेल्युलर के विलय से हुई थी। लेकिन 2016 के बाद से कंपनी लगातार घाटे में है और बकाया भुगतान न कर पाने की वजह से निवेशकों का भरोसा डगमगा गया है। इस बीच, भारत सरकार खुद कंपनी में 49% हिस्सेदारी रखती है, जो ऋण को इक्विटी में बदलने के माध्यम से हासिल की गई थी। यही कारण है कि केंद्र अब किसी “व्यावहारिक समाधान” की तलाश में है, ताकि सरकारी निवेश सुरक्षित रह सके।
ये भी पढ़ें: वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने GIFT City में विदेशी मुद्रा सेटलमेंट प्लेटफॉर्म की शुरुआत की
एजीआर विवाद मूल रूप से इस बात पर है कि राजस्व की गणना कैसे की जाए। सरकार का मानना है कि एजीआर में टेलीकॉम कंपनियों की सभी आमदनियां शामिल होनी चाहिए, जबकि ऑपरेटर इसे केवल दूरसंचार सेवाओं से हुई आय तक सीमित मानते हैं। इस पर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था, जिसमें कंपनियों को कुल 1.47 लाख करोड़ रुपए चुकाने का आदेश दिया गया था। उस समय, लगभग 75% बकाया ब्याज और दंड के रूप में था, जबकि वास्तविक लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क ₹92,642 करोड़ और 55,054 करोड़ रुपए थे। दूरसंचार विभाग ने वीआई पर 58,300 करोड़ रुपए का दावा किया, जबकि कंपनी का आकलन मात्र 21,500 करोड़ रुपए था। अब तक वीआई 7,900 करोड़ रुपए का भुगतान कर चुकी है, जबकि भारती एयरटेल ने अपने 18,000 करोड़ रुपए चुकाए हैं।
वर्तमान व्यवस्था के तहत, कंपनियों को अपने बकाया का 10% अग्रिम भुगतान मार्च 2021 तक करना था, और शेष राशि 10 वर्षों में 2031 तक किस्तों में चुकानी थी। अगली बड़ी एजीआर किस्त 16,428 करोड़ रुपए की 2026 में देनी है। यदि सुप्रीम कोर्ट या सरकार ब्याज और दंड माफ करने का कोई रास्ता निकालती है, तो यह वीआई के लिए जीवनरेखा साबित हो सकता है। अन्यथा, कंपनी के पास नकदी की कमी और बढ़ते कर्ज के चलते बाजार से बाहर होने का खतरा मंडरा रहा है। इस सुनवाई से यह भी तय होगा कि सरकार अपने शेयरधारक हित और नीतिगत साख के बीच संतुलन कैसे बनाए रखती है। 13 अक्टूबर की सुनवाई अब इस पूरे विवाद का अहम मोड़ बन सकती है जहां एक ओर टेलीकॉम उद्योग को राहत की उम्मीद है, वहीं दूसरी ओर यह निर्णय सरकार की निवेश नीति और न्यायिक दृष्टिकोण की परिपक्वता की भी परीक्षा होगी।