Aniruddh Singh
20 Dec 2025
सियोल/टोक्यो। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दो कदमों ने एशिया के दो अहम अमेरिकी सहयोगियों दक्षिण कोरिया और जापान को नाराज कर दिया है। ये वही देश हैं जिन्होंने दो महीने पहले ही, अमेरिका में लगभग एक ट्रिलियन डॉलर निवेश करने का वादा किया था, ताकि उन पर लगाए गए उच्च टैरिफ घटाए जा सकें। लेकिन बीते हफ्ते की 24 घंटों के घटनाक्रम ने इन रिश्तों में तनाव पैदा कर दिया। सबसे पहले, अमेरिकी इमिग्रेशन अधिकारियों ने जॉर्जिया में बन रहे हुंडई-एलजी के विशाल संयंत्र पर छापा मारा। यह प्रोजेक्ट दक्षिण कोरिया की दो सबसे बड़ी कंपनियों का संयुक्त निवेश है और अमेरिका में उनके विस्तार की पहचान माना जाता है। छापे के दौरान सैकड़ों दक्षिण कोरियाई नागरिकों को गिरफ्तार कर हिरासत में ले लिया गया।
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हुंडई-एलजी के विशाल संयंत्र पर छापे में हिरासत में लिए कर्मचारियों के बारे में अमेरिकी अफसरों ने बताया कि वे वहां अवैध रूप से रह रहे थे और बिना अनुमति के काम कर रहे थे। इस कदम ने सियोल में गहरी नाराजगी पैदा कर दी, क्योंकि यह प्रोजेक्ट अमेरिका और दक्षिण कोरिया के बीच व्यापारिक सहयोग का प्रतीक माना जा रहा था। इसी दिन राष्ट्रपति ट्रंप ने जापान के साथ जुलाई में हुए व्यापार समझौते पर कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत जापान ने अमेरिका में 550 अरब डॉलर निवेश करने का वादा किया था। इसके बदले टोक्यो को ऑटोमोबाइल क्षेत्र में टैरिफ में कमी की राहत मिली, जिसकी जापान लंबे समय से मांग कर रहा था। पहली नजर में यह जापान के लिए फायदेमंद लग रहा था, लेकिन आदेश के साथ जारी ज्ञापन ने नई समस्या खड़ी कर दी।
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निवेश ज्ञापन में साफ-साफ लिखा गया कि 550 अरब डॉलर का निवेश किस क्षेत्र और कैसे होगा, यह निर्णय जापानी अधिकारियों के बजाय सीधे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप करेंगे। और भी बड़ी बात यह है कि अगर जापान ने निवेश को लेकर ट्रंप की शर्तों का पालन नहीं किया, तो उन्हें फिर से उच्च टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। यानी जापान के पास वास्तविक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि उसे अमेरिका की इच्छानुसार ही काम करना होगा। इससे जापान में यह भावना बढ़ रही है कि समझौते से उन्हें आर्थिक दबाव में डाल दिया गया है। इन दोनों घटनाओं ने दक्षिण कोरिया और जापान दोनों में अमेरिका के खिलाफ असंतोष की लहर पैदा कर दी है। सियोल और टोक्यो की जनता और नेताओं का मानना है कि राष्ट्रपति ट्रंप निवेश समझौतों को एकतरफा तरीके से लागू कर रहे हैं।
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सियोल और टोक्यो की जनता और नेताओं का मानना है कि समझौतों का उद्देश्य दोनों देशों के बीच साझेदारी को मजबूत बनाने पर होना चाहिए था, लेकिन अब यह अमेरिकी हितों का पूर्ति का साधन बन गया है। इस विवाद से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की छवि को झटका लगा है। लंबे समय से अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया रक्षा और व्यापार दोनों ही क्षेत्रों में करीबी साझेदार रहे हैं। लेकिन इन घटनाओं ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अमेरिका अपने सहयोगियों को सच्चे साझेदार की तरह देखता है या फिर सिर्फ अपने आर्थिक हितों में प्रयोग करता है। दक्षिण कोरिया और जापान की नाराजगी यह दिखाती है कि अमेरिका की व्यापारिक नीतियां बहुत विवादास्पद और एकतरफा हैं। यदि असंतोष बढ़ा, तो इससे न केवल द्विपक्षीय संबंधों पर असर पड़ेगा बल्कि एशिया में अमेरिका की रणनीतिक स्थिति भी कमजोर हो सकती है।