Aniruddh Singh
7 Oct 2025
वाशिंगटन। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की, चिप उद्योग की दिग्गज कंपनी इंटेल में 10% हिस्सेदारी लेने की योजना अब काफी उन्नत अवस्था में पहुंच गई है। अगर ऐसा सचमुच होता है तो अमेरिकी सरकार इंटेल की सबसे बड़ी शेयरधारक बन जाएगी। हालांकि इसके बारे में अब तक कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आई है। खबर में व्हाइट हाउस के एक अधिकारी और मामले से परिचित लोगों के हवाले से कहा बताया गया है कि यह सौदा 2022 के अमेरिकी चिप्स एंड साइंस एक्ट के तहत इंटेल को मिली ग्रांट्स को इक्विटी में बदलने के रूप में किया जा सकता है। इंटेल के हालिया मार्केट कैप 106.41 अरब डॉलर के हिसाब से 10% हिस्सेदारी की कीमत लगभग 10.4 अरब डॉलर बैठती है। वहीं, इंटेल को चिप्स एक्ट के तहत करीब 10.9 अरब डॉलर की ग्रांट्स मिली हैं।
इनमें से 7.9 अरब डॉलर घरेलू निवेश योजनाओं के लिए और 3 अरब डॉलर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सेमीकंडक्टर निर्माण को बढ़ावा देने के लिए दिए गए हैं। यानी अगर सरकार इस ग्रांट को हिस्सेदारी में बदल देती है, तो कंपनी में उसकी सीधी और सबसे बड़ी भागीदारी हो जाएगी। इसी माह शुरू हुई यह चर्चा अब उन्नत स्थिति में पहुंच गई है। हालांकि इस पर अब तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। इसी चर्चा के बीच सॉफ्टबैंक ने इंटेल में 2 अरब डॉलर का निवेश करने की घोषणा की है, जिससे निवेशकों का कंपनी पर भरोसा बढ़ा है। इसके बाद से ही कंपनी के शेयरों में मंगलवार को बड़ी तेजी देखने को मिली। कंपनी के शेयर अब तक गिरावट में ट्रेड कर रहे थे।
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हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि प्रशासन के भीतर इस विचार को कितना समर्थन मिला है और क्या इस पर इंटेल जैसी कंपनियों से औपचारिक बातचीत हुई है। रिपोर्ट के अनुसार हिस्सेदारी का सटीक आकार और इस योजना को लागू करने का निर्णय अभी तक तय नहीं हुआ है। इंटेल कभी अमेरिकी चिप उद्योग का सबसे बड़ा और अग्रणी नाम हुआ करता था, लेकिन हाल के वर्षों में यह वैश्विक प्रतिस्पर्धियों, विशेषकर ताइवान की टीएसएमसी और दक्षिण कोरिया की सैमसंग, से पिछड़ गया। अमेरिका के लिए यह चिंता का विषय है क्योंकि सेमीकंडक्टर निर्माण अब केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का भी अहम मुद्दा बन चुका है। इसीलिए वाशिंगटन में इंटेल को फिर से जीवित करने और उसे मजबूत बनाने को राष्ट्रीय प्राथमिकता दी जा रही है। साल 2022 का चिप्स एंड साइंस एक्ट इसी दिशा में एक बड़ा कदम है, जो बाइडेन प्रशासन के दौरान द्विदलीय समर्थन के साथ पारित हुआ था।
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इस कानून के तहत अमेरिकी सेमीकंडक्टर परियोजनाओं के लिए 39 अरब डॉलर की ग्रांट्स निर्धारित की गई थीं। इसका लाभ सिर्फ इंटेल को ही नहीं बल्कि टीएसएमसी और सैमसंग, एनविडिया, माइक्रोन और ग्लोबलफाउंड्रीज जैसी वैश्विक चिप दिग्गजों को मिला। दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रपति ट्रंप भले ही सेमीकंडक्टर निर्माण को लेकर रणनीतिक लक्ष्यों का समर्थन रहे हैं, लेकिन उन्होंने खुद इस कानून की आलोचना की और इस साल की शुरुआत में तो उन्होंने इसे रद्द करने की भी मांग की थी। हालांकि, रिपब्लिकन सांसदों ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इस बीच जून में अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने कहा था कि प्रशासन इस कानून के तहत दिए गए कुछ ग्रांट्स पर पुनर्विचार कर रहा है। यह कदम इंटेल के लिए नई पूंजी और स्थिरता ला सकता है, जबकि अमेरिकी सरकार को सेमीकंडक्टर उद्योग में सीधा दखल मिलेगा। लेकिन यह अभी अनिश्चित है कि वास्तव में ऐसा होगा या नहीं। अगर यह योजना लागू होती है तो यह अमेरिकी औद्योगिक नीति में एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है।