People's Reporter
11 Nov 2025
Aniruddh Singh
9 Nov 2025
Aniruddh Singh
9 Nov 2025
Aniruddh Singh
9 Nov 2025
सिंगापुर। एशियाई शेयर बाजार मंगलवार को सीमित दायरे में ट्रेड करते दिखाई दिए, क्योंकि निवेशकों की नजर रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े संभावित राजनयिक प्रयासों और अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की नीतियों पर टिकी हुई है। भारत, चीन और मलेशिया के शेयर बाजार ही आज तेजी में ट्रेड करते दिखाई दे रहे हैं, जबकि एशिया के अन्य शेयर बाजारों में दबाव दिखाई दे रहा है या फिर वे रेंज बाउन्ड कारोबार करते दिखाई दे रहे हैं । इसी बीच अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में भी हलचल देखने को मिली। कच्चे तेल की कीमतें गिर गईं, क्योंकि उम्मीद जताई जा रही है कि अगले दिनों में मास्को, कीव और वाशिंगटन के बीच त्रिपक्षीय वार्ता हो सकती है।
अगर ऐसा हुआ और बातचीत सकारात्मक रही तो रूस पर लगे कड़े प्रतिबंधों को धीरे-धीरे हटाया जा सकता है। यही कारण है कि निवेशक तेल बाज़ार में आने वाले दिनों के परिदृश्य को लेकर अधिक सतर्क दिखाई दे रहे हैं। ब्रेंट क्रूड का दाम 0.8% गिरकर लगभग 66 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया, जबकि अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) क्रूड भी 0.7% फिसलकर लगभग 63 डॉलर के आसपास पहुंच गया। यह गिरावट उस समय आई जब ठीक पिछले दिन कीमतें लगभग 1% चढ़ी थीं।
विश्लेषकों के अनुसार तेल बाजार में अस्थिरता सीधे-सीधे हाल की बैठकों और बयानों से जुड़ी हुई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेन्स्की और यूरोपीय सहयोगियों के साथ मुलाकात की और उसके बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी बात की। ट्रंप ने संकेत दिया कि वे पुतिन और जेलेन्स्की को एक साथ बिठाने की कोशिश कर रहे हैं और इसके बाद तीनों नेताओं की एक शिखर वार्ता आयोजित हो सकती है। विश्लेषकों के अनुसार, अभी शांति समझौते या युद्धविराम की तत्काल संभावना नहीं दिख रही है, लेकिन यह जरूर है कि हालात और बिगड़ने का खतरा कम हुआ है। इससे तेल आपूर्ति पर पड़ने वाला नकारात्मक असर भी घटा है। खासकर इसलिए क्योंकि ट्रंप ने उन द्वितीयक प्रतिबंधों पर नरमी दिखाई है जो उन देशों पर लगाए जा सकते थे, जो रूस से तेल खरीदते हैं। यदि यह प्रतिबंध सख्ती से लागू हो जाते तो वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारी बाधा आती और कीमतें उछाल मार सकती थीं। अब जबकि अमेरिका इस मामले में थोड़ा नरम रुख दिखा रहा है, बाज़ार को राहत मिली है।
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जेलेन्स्की ने भी ट्रंप के साथ हुई बातचीत को बहुत अच्छा बताया और कहा कि इसमें उन्होंने यूक्रेन की सुरक्षा गारंटी की जरूरत पर जोर दिया। ट्रंप ने इसे स्वीकार भी किया, हालांकि इसका दायरा कितना होगा, यह अभी साफ नहीं है। ट्रंप का लगातार यह दबाव है कि युद्ध का जल्द से जल्द अंत होना चाहिए, लेकिन यूरोप और कीव को डर है कि कहीं यह समाधान रूस की शर्तों पर नहीं किया जाना चाहिए। अगर वार्ता से तनाव कम होता है और नए प्रतिबंधों या टैरिफ का खतरा टलता है तो विशेषज्ञों का अनुमान है कि तेल की कीमतें चौथी तिमाही 2025 और पहली तिमाही 2026 तक 58 डॉलर प्रति बैरल के औसत स्तर पर आ सकती हैं।
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वहीं अगर अमेरिका ने उल्टा रूस पर और ज्यादा दबाव बनाया और उसके तेल खरीदार देशों पर व्यापक टैरिफ लगाए तो कीमतें फिर से हाल के उच्चतम स्तर तक पहुंच सकती हैं। कुल मिलाकर संकेत यही हैं कि बाजार अब हर बयान और हर बैठक को ध्यान से देख रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध अब भी यूरोपीय देशों के लिए एक बड़ी त्रासदी है और वे चाहते हैं कि इसका जल्द से जल्द हल निकले। यह अंत किन शर्तों पर होगा, किसकी जीत और किसकी रियायतों से होगा, यह अब तक अनिश्चित है। तेल बाजार और शेयर बाजार दोनों ही इस अनिश्चितता के बोझ तले दबे हुए हैं और इसी कारण कीमतें ऊपर-नीचे हो रही हैं।