Mithilesh Yadav
7 Oct 2025
Peoples Reporter
7 Oct 2025
Shivani Gupta
7 Oct 2025
नई दिल्ली। भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम विश्व के सबसे महत्वाकांक्षी एवं आत्मनिर्भर वैज्ञानिक अभियानों में से माना जाता है। इसकी शुरुआत 1960 के दशक में हुई थी जब देश तकनीकी रूप से पिछड़ा था, परंतु आज भारत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में महाशक्ति बन चुका है। देश का अंतरिक्ष कार्यक्रम 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (आईएनसीओएसपीएआर) की स्थापना से शुरू होता है। इसे डॉ. विक्रम साराभाई के नेतृत्व में शुरू किया गया, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। 1963 में केरल के थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन से पहला साउंडिंग रॉकेट प्रक्षेपित किया गया। 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का गठन हुआ, जिसने देश के अंतरिक्ष प्रयासों को संगठित किया।
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-1975 में भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट सोवियत संघ की मदद से प्रक्षेपित किया। इसके बाद 1980 में रोहिणी उपग्रह को भारत के अपने रॉकेट एसएलवी-3 से सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित किया गया। इस सफलता ने भारत को उपग्रह प्रक्षेपण में आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाया।
-1990 के दशक में भारत ने पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल) और जीएसएलवी (जियोसिन्क्रोनस सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल ) जैसी प्रक्षेपण प्रणालियां विकसित कीं। पीएसएलवी को वर्कहॉर्स रॉकेट कहा गया, जिसने न केवल भारतीय बल्कि विदेशी उपग्रहों को भी कक्षा में स्थापित किया। 2008 में भारत ने चंद्रयान-1 के माध्यम से चंद्रमा पर पानी की खोज कर इतिहास रच दिया।
2013 में भारत ने मंगलयान को प्रक्षेपित कर एशिया का पहला देश और विश्व का चौथा राष्ट्र बना जिसने पहली ही कोशिश में मंगल की कक्षा में उपग्रह पहंचाया। 2017 में भारत ने एक साथ 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण कर विश्व रिकॉर्ड बनाया। हाल के वर्षों में चंद्रयान-2 (2019) और चंद्रयान-3 (2023) मिशनों ने भारत को चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाले चुनिंदा देशों में शामिल कर दिया। इसके अलावा, भारत का मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान और सूर्य अध्ययन मिशन आदित्य-एल1 भी प्रगति पर हैं। भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम सीमित संसाधनों से शुरू होकर वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन गया है। यह न केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता का प्रतीक है बल्कि भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान, संचार, मौसम पूर्वानुमान, रक्षा और वैश्विक उपग्रह प्रक्षेपण बाजार में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है।
-भारत के दूरदर्शी अंतरिक्ष कार्यक्रम में अंतरिक्ष स्टेशन का विकास, नमूना वापसी सहित चंद्रयान-4 चंद्र मिशन और शुक्र ग्रह अन्वेषण मिशन शामिल हैं। यह पहल वैज्ञानिक अनुसंधान को आगे बढ़ाएगी, चंद्रमा के नमूनों की समझ बेहतर करेगी और शुक्र ग्रह की स्थितियों के बारे में जानकारी देगी।
-भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए गगनयान मिशन पर काम चल रहा है। इसके तहत चंद्रमा पर 2040 तक मानव मिशन और मंगल तथा शुक्र पर भी मिशन भेजने की योजना है।
-अभी 250 से अधिक अंतरिक्ष स्टार्टअप नवाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। स्काईरूट एयरोस्पेस ने 2022 में विक्रम-एस (देश का पहला निजी रॉकेट) लॉन्च किया था। अग्निकुल कॉसमॉस ने वर्ष 2022 में श्रीहरिकोटा में भारत के पहले निजी अंतरिक्ष प्रक्षेपण स्थल का उद्घाटन किया।
-भारत को विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता कम करने और रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित करनी होगी।
इसके लिए री-यूज रॉकेट और उपग्रहों के लिए एआई तकनीक विकसित करने की जरूरत।
-भारतीय अंतरिक्ष स्टेशनः 2035 तक पृथ्वी की निचली कक्षा में अनुसंधान को संभव बनाएगा।
-नाविक, सैन्य प्लेटफॉर्म के लिए सटीक एन्क्रिप्टेड सिग्नल और डेटा प्रदान करता है।
राकेश शर्मा भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री हैं, जिनका जन्म 13 जनवरी 1949 को पटियाला, पंजाब में हुआ था। वह 1970 में भारतीय वायु सेना में शामिल हुए और 2 अप्रैल 1984 में सोवियत इंटरकॉसमॉस कार्यक्रम के तहत सोयुज टी-11 अंतरिक्ष यान में उड़ान भरी। इस मिशन के तहत राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष में दो अन्य रूसी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ 7 दिन 21 घंटे और 40 मिनट का समय बिताया था।
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शुभांशु शुक्ला, भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन और टेस्ट पायलट हैं, जिन्हें इसरो के गगनयान मिशन के लिए अंतरिक्ष यात्रियों में से एक के रूप में चुना गया है। वह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर जाने वाले पहले और अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं। जून 2025 में उन्होंने आईएसएस में कदम रखकर इतिहास रच दिया। यह यात्रा अमेरिका की प्राइवेट अंतरिक्ष कंपनी स्पेसएक्स द्वारा संचालित चार्टर्ड मिशन के तहत हुई थी।
चंद्रयान-3 : 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया और 23 अगस्त 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरा। यह भारत का तीसरा चंद्र मिशन था और चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का दूसरा प्रयास था। साथ ही, भारत, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास पहुंचने वाला पहला देश बन गया था।
गगनयान : यह भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन है, जिसका लक्ष्य 2025 में 3 यात्रियों को 400 किमी की निचली पृथ्वी कक्षा में 3 दिन के लिए भेजना और वापस लाना है। इसके बाद भारत, अमेरिका, रूस और चीन के बाद मानव को अंतरिक्ष में भेजने वाला चौथा देश बन जाएगा। इसरो मिशन के लिए 4 अंतरिक्ष यात्रियों का चयन किया गया है।
आदित्य-एल1: यह भारत का पहला सौर वेधशाला-श्रेणी का मिशन है, जिसे 2 सितंबर 2023 को लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य सूर्य का 15 लाख किमी की दूरी से अध्ययन करना है। यह अंतरिक्ष यान 6 जनवरी 2024 को लैग्रेंज बिंदु 1 (एल1) पर पहुंचा। 400 करोड़ का ये मिशन भारत समेत पूरी दुनिया के सैटेलाइट्स को सौर तूफानों से बचाएगा।
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सरकार ने इसरो द्वारा शुरू की जाने वाली चार अंतरिक्ष परियोजनाओं को मंजूरी दी है। इनमें चंद्रयान-4, वीनस आॅर्बिटर मिशन , भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) और अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (एनजीएलवी) शामिल हैं।
चंद्रयान-4: इस मिशन को चंद्रमा की सतह पर उतरने, नमूने एकत्र करने, उन्हें एक वैक्यूम कंटेनर में संग्रहित करने और उन्हें पृथ्वी पर वापस लाने के लिए डिजाइन किया गया है। इससे भारत को मानवयुक्त मिशनों के लिए तकनीक में आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी। भारत की योजना 2040 तक चंद्रमा पर मानव भेजने की है।
वीनस ऑर्बिटर मिशन: इसका उद्देश्य वीनस (शुक्र) की परिक्रमा कर उसकी सतह, उपसतह, वायुमंडलीय प्रक्रियाओं और उसके घने वायुमंडल की जांच कर वायुमंडल पर सूर्य के प्रभाव का अध्ययन करना है। यह मिशन मार्च 2028 में प्रक्षेपित होने वाला है, जब पृथ्वी और शुक्र सबसे निकट होंगे।
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन: यह वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन होगा। भारत 2028 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन लॉन्च करने की तैयारी में है। 2035 तक इसे चालू करने और 2040 तक मानवयुक्त चंद्र मिशन पूरा करने की योजना है।
नेक्स्ट जेनरेशन लॉन्च व्हीकल: सरकार ने अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान के विकास को मंजूरी दी है। इसे पृथ्वी की निचली कक्षा (एलईओ) तक 30 टन तक भार ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है। भारत के मौजूदा प्रक्षेपण यान में एसएसएलवी, पीएसएलवी, जीएसएलवी और एलवीएम3 शामिल हैं। इनकी पेलोड क्षमता पृथ्वी की निचली कक्षा के लिए 500 किलो से 10,000 किलो और जियोस्टेटरी ट्रांसफर आर्बिट (जीटीओ) के लिए 4,000 किलोग्राम तक है।