Aniruddh Singh
7 Nov 2025
Aniruddh Singh
7 Nov 2025
नई दिल्ली। लाल सागर में समुद्र के भीतर बिछी फाइबर ऑप्टिक केबल क्षतिग्रस्त होने की वजह से पूरी दुनिया की इंटरनेट सेवा धीमी पड़ गई है। इन समुद्री केबलों को वैश्विक डिजिटल जीवन रेखा माना जाता है, क्योंकि यही वे तार हैं जिनसे एशिया और यूरोप के बीच बड़ी मात्रा में डेटा का आदान-प्रदान किया जाा है। केबल कटने के बाद अचानक दुनियाभर के यूजर्स को इंटरनेट की स्पीड धीमी होने, वेबसाइटों के देर से खुलने और क्लाउड सेवाओं के प्रभावित होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। माइक्रोसॉफ्ट की प्रमुख क्लाउड सेवा अजूर भी इससे अछूती नहीं रही। कंपनी ने आधिकारिक अपडेट में स्वीकार किया कि एशिया और यूरोप के बीच इंटरनेट ट्रैफिक प्रभावित हुआ है और यूजर्स को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, सेवा को पूरी तरह ठप होने से बचाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट फिलहाल डेटा को वैकल्पिक मार्गों से भेज रहा है।
ये भी पढ़ें: जल्द एचयूएल के लाइफबॉय को पछाड़ नंबर वन बन जाएगा विप्रो का संतूर : विनीत अग्रवाल
माइक्रोसॉफ्ट नेटवर्क की रूटिंग को लगातार मॉनिटर और रीबैलेंस कर रही है, ताकि ग्राहकों पर कम से कम असर पड़े। इसके बावजूद असर इतना व्यापक है कि वैश्विक इंटरनेट ट्रैफिक का लगभग 17 प्रतिशत हिस्सा बाधित हो गया है। विशेषज्ञ बताते हैं कि प्रभावित केबलों में सीकॉम/टीजीएन-ईए, एएई-1 और ईआईजी जैसी बड़ी प्रणालियां शामिल हैं। ये वे केबल हैं जो महाद्वीपों के बीच सबसे ज्यादा डेटा प्रवाह संभालती हैं। यही वजह है केबल कटने से यूरोप, अफ्रीका, मध्य-पूर्व और एशिया के करोड़ों यूजर्स एक साथ प्रभावित हुए हैं।
ये भी पढ़ें: भारत में सिर्फ वॉल्यूम नहीं, सम्पूर्ण ईकोसिस्टम खड़ा करना चाहती है वियतनामी आटो मेकर विनफास्ट
समुद्र की गहराई में बिछाई गई इन लाइनों को आमतौर पर बेहद सुरक्षित माना जाता है, लेकिन समय-समय पर इनके क्षतिग्रस्त होने की घटनाएं सामने आती रही हैं। अक्सर वाणिज्यिक जहाजों के एंकर गिरने से ये तार टूटते हैं। जहाज जब समुद्र में रुकते हैं तो उनके एंकर नीचे गिरा दिए जाते हैं। इसी दौर ये तार कट या क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। परंतु इस बार स्थिति को लेकर संदेह और गहरा है क्योंकि लाल सागर का इलाका हाल के सालों में संघर्षों और भू-राजनीतिक तनाव का केंद्र रहा है। विशेषज्ञों को आशंका है कि कहीं यह जानबूझकर की गई तोड़फोड़ तो नहीं। अगर ऐसा है तो यह केवल एक तकनीकी गड़बड़ी नहीं, बल्कि वैश्विक डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमला माना जाएगा।
ये भी पढ़ें: सॉफ्टवेयर निर्यात पर टैरिफ लगाने पर विचार कर रहा अमेरिका, चिंता में पड़ीं भारतीय आईटी कंपनियां
महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया की 95 प्रतिशत से अधिक अंतरराष्ट्रीय इंटरनेट कनेक्टिविटी इन्हीं समुद्री केबलों के सहारे चलती है। सैटेलाइट तकनीक मौजूद होने के बावजूद वह महज एक छोटा विकल्प है, क्योंकि इतनी बड़ी मात्रा में डेटा ट्रैफिक केवल समुद्री केबल ही संभाल पाती हैं। इसीलिए जब भी किसी क्षेत्र में ये तार कटते हैं, उसका असर महाद्वीपों तक फैल जाता है। लाल सागर, जो यूरोप और एशिया को जोड़ने का प्रमुख मार्ग है, एक डिजिटल हाईवे की तरह काम करता है। यहां बिछी केबल दुनिया के इंटरनेट का सबसे अहम हिस्सा हैं। अगर यह जानबूझकर किया हमला है, तो यह साफ हो जाएगा कि भविष्य के युद्ध जमीन या आकाश पर ही नहीं, बल्कि समुद्र की गहराई में भी लड़े जाएंगे, जहां डिजिटल नेटवर्क हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बन सकते हैं।