Aniruddh Singh
30 Oct 2025
Aniruddh Singh
30 Oct 2025
Aniruddh Singh
29 Oct 2025
नई दिल्ली। भारत का आईटी सेक्टर गहरी चिंता में है, क्योंकि संकेत मिल रहे हैं कि अमेरिका सॉफ्टवेयर सेवाओं के निर्यात पर टैरिफ लगाने पर विचार कर रहा है। यह कदम भारतीय आईटी उद्योग के लिए बड़ा झटका होगा। आईटी कंपनियों का सबसे बड़ा बाजार अमेरिका ही है, जहां से इन कंपनियों की कुल आय का लगभग 60% हिस्सा आता है। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, इन्फोसिस, एचसीएल टेक और विप्रो जैसी दिग्गज कंपनियां पहले ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से जुड़ी ऑटोमेशन चुनौतियों और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता से जूझ रही हैं। ऐसे में यदि अमेरिका सॉफ्टवेयर सेवाओं पर शुल्क लगाता है तो इनकी स्थिति और मुश्किल हो जाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह टैरिफ लागू होता है, तो भारतीय कंपनियों पर दोहरी कराधान की मार पड़ेगी, क्योंकि वे पहले से ही अमेरिका में भारी टैक्स देती हैं।
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इसके अलावा, वीजा नियमों को सख्त किए जाने से उन्हें अमेरिका या आस-पास के देशों में महंगी दर पर स्थानीय कर्मचारियों को नियुक्त करना पड़ेगा, जिससे उनकी लागत और भी बढ़ जाएगी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो द्वारा एक सोशल मीडिया पोस्ट को साझा करने के बाद यह डर और बढ़ गया है। उन्होंने अपनी पोस्ट में कहा है कि सभी विदेशी रिमोट वर्कर्स और आउटसोर्सिंग सेवाओं पर टैरिफ लगाया जाना चाहिए। यह प्रस्ताव अगर लागू होता है तो इसका असर केवल भारतीय कंपनियों तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि उन सभी अमेरिकी ग्राहकों पर पड़ेगा जो सस्ती सेवाओं के लिए भारत जैसे देशों पर निर्भर हैं।
एचएफएस ग्रुप के मुख्य विश्लेषक फिल फर्श्ट का मानना है कि यह मुद्दा राजनीतिक बयानबाजी ज्यादा है, लेकिन अगर इसे नीति में बदल दिया गया तो इससे अल्पकालिक अस्थिरता, सेवा की लागत में वृद्धि और कंपनियों के मुनाफे पर दबाव बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि डिजिटल श्रम प्रवाह पर शुल्क लगाना वस्तुओं पर शुल्क लगाने से कहीं अधिक जटिल है, क्योंकि अमेरिकी तकनीकी उद्योग भारत की आईटी और इंजीनियरिंग प्रतिभाओं पर गहराई से निर्भर है, चाहे वह एच-1बी वीजा के माध्यम से हो या फिर रिमोट सेवाओं के जरिए। एवरेस्ट ग्रुप के युगल जोशी ने कहा यह कदम भारत-आधारित कंपनियों और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) दोनों को प्रभावित करेगा।
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जीसीसी वे ऑफशोर केंद्र हैं, जिन्हें बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में कम लागत पर तकनीकी सेवाएं प्रदान करने के लिए स्थापित करती हैं। अगर इन पर टैरिफ लगाया गया तो कंपनियां अमेरिका में अधिक लोगों को नियुक्त करने पर मजबूर होंगी, जिससे उनकी लाभप्रदता घटेगी। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह का कदम तुरंत उठाया जाना व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि भारत भी अमेरिकी कंपनियों जैसे गूगल और मेटा पर डिजिटल टैक्स लगा सकता है। यही वजह है कि कई विश्लेषक इसे फिलहाल राजनीतिक दबाव की रणनीति मानते हैं। फिर भी, इससे अनिश्चितता बढ़ेगी और भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों में तनाव आ सकता है।
ट्रंप प्रशासन और उनके पूर्ववर्ती जो बाइडेन दोनों ने ही एच-1बी वीजा व्यवस्था को कड़ा किया है, जिससे भारतीय तकनीकी कर्मियों पर असर पड़ा है। अब टैरिफ पर चर्चा ने अमेरिका फर्स्ट नीति को और मजबूती दी है, जिसमें भारतीय आईटी कर्मचारियों को अमेरिकी नौकरियों के लिए खतरे के रूप में पेश किया जाता है। भारतीय आईटी कंपनियां पिछले कुछ समय से अमेरिकी निर्भरता कम करने के लिए यूरोप और एशिया के अन्य बाजारों में विस्तार कर रही हैं। लेकिन चूँकि अमेरिका उनका सबसे बड़ा ग्राहक है, इसलिए इस निर्भरता को घटाने में सालों लग सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय कंपनियों को स्थानीय साझेदारों और वैकल्पिक बाजारों की तलाश करनी होगी, लेकिन मौजूदा एआई चुनौतियों और धीमी वैश्विक अर्थव्यवस्था को देखते हुए यह आसान नहीं है।