Aniruddh Singh
1 Oct 2025
मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) बैठक के बाद वित्त वर्ष 2025-26 के लिए देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर का अनुमान संशोधित करते हुए 6.8 प्रतिशत कर दिया है। यह अनुमान पिछले आकलन से थोड़ा कम है, लेकिन अभी भी इसे भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूत गति का संकेत माना जा रहा है। इस बदलाव के पीछे मुख्य कारण वैश्विक आर्थिक चुनौतियां, घरेलू मांग की स्थिति, महंगाई के रुझान और वित्तीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। आरबीआई का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था इस समय कई सकारात्मक कारकों से लाभान्वित हो रही है। बुनियादी ढ़ांचे में निवेश, सरकार के पूंजीगत व्यय कार्यक्रम, प्राइवेट सेक्टर में धीरे-धीरे बढ़ती निवेश गतिविधि और उपभोग मांग इसमें प्रमुख हैं।
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हालांकि, केंद्रीय बैंक ने यह भी माना है कि वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता, अमेरिका और चीन की आर्थिक स्थिति, कच्चे तेल की कीमतें और भू-राजनीतिक तनाव आने वाले समय में देश की आर्थिक वृद्धि पर दबाव डाल सकते हैं। वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी छमाही में भी मजबूत घरेलू खपत और सेवाओं के क्षेत्र में तेजी देखने को मिली है, जिससे आने वाले सालों में अर्थव्यवस्था को सहारा मिल सकता है। मानसून पर निर्भर कृषि क्षेत्र की उत्पादन स्थिति भी कुल विकास दर पर असर डाल सकती है। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने यह भी संकेत दिया है कि महंगाई नियंत्रण में आने के बाद ब्याज दरों पर लचीलापन अपनाने की गुंजाइश हो सकती है।
फिलहाल केंद्रीय बैंक का ध्यान मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के लक्ष्य के करीब बनाए रखने पर है, ताकि आर्थिक स्थिरता बनी रहे। समिति का मानना है कि यदि महंगाई का दबाव कम होता है, तो निवेश और खपत में और तेजी आएगी, जिससे विकास दर के 6.8 प्रतिशत लक्ष्य को हासिल करना आसान होगा। केंद्रीय बैंक ने आगे कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बनी हुई है। आईटी सेवाओं, डिजिटल भुगतान, स्टार्टअप्स और निर्यात जैसे क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन भविष्य के लिए उम्मीदें मजबूत कर रहा है। इसके अलावा, सरकार का ध्यान मेक इन इंडिया, विनिर्माण क्षेत्र और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों पर है, जो दीर्घकालिक विकास को गति देंगे।
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हालांकि चुनौतियां भी सामने हैं। वैश्विक वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव, ब्याज दरों की अनिश्चितता, आयात पर बढ़ती लागत और विदेशी निवेश प्रवाह में कमी जैसे मुद्दे आर्थिक रफ्तार को धीमा कर सकते हैं। इसके बावजूद आरबीआई का मानना है कि घरेलू मांग की मजबूती और नीतिगत सुधारों के चलते भारत अपनी वृद्धि दर को अपेक्षाकृत स्थिर बनाए रखेगा। इस तरह, आरबीआई द्वारा वित्तवर्ष 26 के लिए 6.8 प्रतिशत का अनुमान यह दिखाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बुनियाद पर खड़ी है। थोड़ी चुनौतियों के बावजूद देश की विकास यात्रा जारी रहेगी और आने वाले सालों में देश वैश्विक स्तर पर निवेश और विकास का बड़ा केंद्र बना रह सकता है।