Aniruddh Singh
23 Sep 2025
वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की एच-1बी वीजा पर एकमुश्त 1,00,000 डॉलर शुल्क लगाने की घोषणा ने कॉर्पोरेट जगत और खासकर भारतीय आईटी उद्योग में हलचल मचा दी है। दुनिया की बड़ी वित्तीय संस्था जेपी मॉर्गन ने कहा है कि वह इस फैसले पर हितधारकों और नीति-निर्माताओं से बातचीत करेगी। यह जानकारी एक साक्षात्कार में जेपी मॉर्गन के सीईओ जेमी डिमोन ने दी। जेमी डिमोन ने कहा वीजा हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि हम अपने विशेषज्ञ कर्मचारियों को दुनिया के अलग-अलग बाजारों में नई जिम्मेदारियों के लिए भेजते हैं। डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा ने सभी को चौंका दिया है, क्योंकि उन्होंने पद संभालने के बाद से ही आव्रजन पर लगातार सख्ती दिखाई है। एच-1बी वीजा पर यह शुल्क उनकी सरकार की अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है। आलोचकों का कहना है कि यह संरक्षणवादी नीति को आगे बढ़ाने का प्रयास है।
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खबरों के अनुसार, कई बड़ी टेक कंपनियों ने भी वीजा धारकों को चेतावनी दी है कि वे या तो अमेरिका में ही रहें या तुरंत वापस लौट आएं, ताकि नए शुल्क की स्थिति में परेशानी से बच सकें। अमेरिकी प्रशासन ने पिछले हफ्ते ही स्पष्ट किया कि यह शुल्क हर नए वीजा आवेदन पर लागू होगा, पहले से मान्य वीजा धारक इसके दायरे में नहीं आते। यूएस डेटा के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में जेपी मॉर्गन एच-1बी वीजा स्पॉन्सर करने वाली शीर्ष 10 कंपनियों में शामिल थी और उसने करीब 2,440 कर्मचारियों को यह सुविधा दी थी। ऐसे में इस नए शुल्क से बैंक को सीधा और बड़ा वित्तीय बोझ उठाना पड़ सकता है। जेमी डिमोन ने भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर भी सकारात्मक रुख दिखाया। उन्होंने कहा उन्हें उम्मीद है कि राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पर सहमति तक पहुंचेंगे।
जेमी डिमोन ने कहा कि भारत अमेरिका का स्वाभाविक मित्र है और हमें भारत से तालमेल बिठाने के लिए जबरदस्ती की जरूरत नहीं, बल्कि दोस्ती और साझेदारी को और मजबूत करना चाहिए। इस बीच, भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल इन दिनों वाशिंगटन में हैं, जहां वे लंबे समय से अटकी व्यापार वार्ता को तेज करने की कोशिश कर रहे हैं। इससे पहले अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने भारत का दौरा किया था और व्यापार अधिकारियों से बातचीत की थी। लेकिन वार्ता उस समय ठप पड़ गई, जब अमेरिका ने भारत से अपने विशाल कृषि और डेयरी बाजार खोलने की मांग की, जिसका भारत ने विरोध किया। यह भी दोनों देशों के बीच असहमति का बड़ा कारण बन गया।
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इसी दौरान, ट्रंप प्रशासन ने रूसी तेल खरीदने की वजह से भारत से होने वाले आयात पर 25% अतिरिक्त शुल्क भी लगा दिया, जिससे कुल टैरिफ 50% तक पहुंच गया। अगस्त के अंत में प्रस्तावित अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की भारत यात्रा भी इसी कारण रद्द कर दी गई। संक्षेप में, ट्रंप के एच-1बी शुल्क निर्णय ने भारत-अमेरिका आर्थिक रिश्तों पर असर डालना शुरू कर दिया है। एक ओर जेपी मॉर्गन और वैश्विक कंपनियां वीजा शुल्क से चिंतित हैं, वहीं दूसरी ओर दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि दोनों सरकारें कैसे इन विवादों को सुलझाती हैं और भविष्य के सहयोग का रास्ता निकालती हैं।