Manisha Dhanwani
2 Nov 2025
वाशिंगटन। अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने एक इंटरव्यू में कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच जो भी स्थिति होती है, उस पर अमेरिका रोजाना नजर रखता है क्योंकि उनके बीच का युद्धविराम कभी भी टूट सकता है। उन्होंने कहा युद्धविराम को बनाए रखना बेहद कठिन होता है, क्योंकि यह तभी संभव है जब दोनों पक्ष एक-दूसरे पर गोलीबारी बंद करने पर सहमत हों और उसका पालन भी करें। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे कंबोडिया-थाईलैंड या भारत-पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण स्थितियां होती हैं, वैसे ही कई दूसरी जगहों पर भी शांति को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। रुबियो ने खास तौर पर इस बात पर जोर दिया कि केवल स्थायी युद्धविराम ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए बल्कि असली मकसद स्थायी शांति स्थापित करना होना चाहिए, ताकि भविष्य में युद्ध की संभावना ही न रहे। रुबियो ने आगे कहा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी सरकार की प्राथमिकता शांति स्थापित करने को बनाया है और यही कारण है कि वे लगातार अलग-अलग क्षेत्रों में मध्यस्थता की कोशिश करते हैं।
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उन्होंने कहा कंबोडिया-थाईलैंड, भारत-पाकिस्तान और अफ्रीकी देशों रवांडा-डीआरसी में भी ट्रंप प्रशासन ने शांति की दिशा में काम किया है। बता दें कि असल विवाद तब पैदा हुआ जब राष्ट्रपति ट्रंप ने बार-बार यह दावा करना शुरू किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को रोका है। 10 मई को डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर घोषणा की थी कि अमेरिका की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्ण और तत्काल युद्धविराम पर सहमति बन गई है। इसके बाद से ही उन्होंने लगभग 40 बार सार्वजनिक रूप से कहा कि उन्होंने दोनों परमाणु संपन्न देशों को समझौते पर लाने में भूमिका निभाई और यह भी कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान से कहा था कि अगर वे लड़ाई बंद कर देंगे तो अमेरिका उनके साथ बड़े पैमाने पर व्यापार करेगा। हालांकि, भारत सरकार ने इन दावों को खारिज कर दिया। पीएम नरेंद्र मोदी ने संसद में स्पष्ट कहा कि किसी भी देश के नेता ने भारत से सैन्य अभियान ऑपरेशन सिंदूर रोकने के लिए नहीं कहा था। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी यह साफ किया कि किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं थी और युद्धविराम का संबंध किसी व्यापारिक समझौते से नहीं था।
इस पृष्ठभूमि में जब ट्रंप ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की, तो उन्होंने फिर से दावा दोहराया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच संभावित परमाणु युद्ध को रोका। उन्होंने कहा कि दोनों देश पहले ही एक-दूसरे के विमान गिरा रहे थे और स्थिति खतरनाक हो रही थी, लेकिन उन्होंने हस्तक्षेप करके उसे शांत कराया। ट्रंप ने कहा कि उनकी प्राथमिकता हमेशा जीवन बचाना होती है और वे मानते हैं कि उनके पास युद्ध रोकने और देशों को साथ लाने की क्षमता है। इस पूरे प्रसंग का अर्थ यह है कि अमेरिका, विशेषकर ट्रंप प्रशासन, दक्षिण एशिया की स्थिति को लेकर अपनी भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता रहा है। जहां एक ओर भारत यह मानता है कि उसके सैन्य और राजनीतिक निर्णय पूरी तरह स्वतंत्र हैं और किसी बाहरी हस्तक्षेप पर आधारित नहीं हैं, वहीं दूसरी ओर अमेरिका अपनी कूटनीतिक उपलब्धियों के रूप में इसे प्रचारित करता है। इसका उद्देश्य घरेलू और अंतरराष्ट्रीय राजनीति दोनों में यह दिखाना है कि अमेरिकी नेतृत्व अब भी वैश्विक शांति स्थापना का मुख्य केंद्र है। कुल मिलाकर उनयह बयानबाजी यह दिखाती है कि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते न केवल क्षेत्रीय राजनीति बल्कि वैश्विक शक्ति-संतुलन का भी अहम हिस्सा हैं। अमेरिका जैसे देश इन संबंधों में अपनी भूमिका स्थापित करने की कोशिश करते हैं, जबकि भारत अपने निर्णयों को संप्रभु और स्वतंत्र मानने पर जोर दे रहा है। इसीलिए ट्रंप के दावे और भारत सरकार के खंडन दोनों समानांतर रूप से सामने आते रहे हैं।