Naresh Bhagoria
20 Dec 2025
जबलपुर। गायब हुई बेटी को लेकर एक महिला वकील द्वारा दाखिल की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus) याचिका हाईकोर्ट ने निराकृत कर दी है। आसंदी के सामने खड़ी हुई महिला वकील को जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस रामकुमार चौबे की डिवीजन बेंच ने समझाइश दी। बेंच ने कहा कि आप एडवोकेट नहीं, बल्कि मां की हैसियत से हाजिर हुई हैं, इसलिए आपको बैंड नहीं पहनना था। याचिकाकर्ता की बेटी के बयानों को सुनकर बेंच ने कहा कि वह बालिग है, इसलिए वह जहां रहना चाहे, रहने स्वतंत्र है। अदालत ने साफ किया कि हम मामले पर तभी दखल दे सकते हैं, जब लड़की (कॉर्पस) किसी अवैध बंधन में हो।
जबलपुर की महिला वकील की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया था कि उनकी बेटी गायब है। पुलिस को शिकायत देने के बाद भी उसको खोजने के संबंध में कोई कार्रवाई नहीं कर रही, जो अवैधानिक है। कोर्ट के निर्देश पर याचिकाकर्ता की बेटी को जबलपुर पुलिस ने राजस्थान से लाकर पेश किया।
वहीं मां ने डिवीजन बेंच को बताया कि उसकी बेटी Instagram पर उलझी रहती है और घर का कोई काम नहीं करती। बेटी अपने जिस मित्र के साथ रह रही, उसका मेडिकल परीक्षण होना चाहिए। बेंच ने मां की दलीलों को नकार दिया।
सुनवाई के दौरान बेंच ने याचिकाकर्ता की बेटी से बात की। उसने साफ किया कि वह अपने मित्र के साथ जहां रह रही, वहां खुश है और अपने फैसले पर कायम है। उसने साफ किया कि वह अपनी मां के साथ नहीं जाना चाहती है।
सुनवाई के बाद दिए अपने फैसले में डिवीजन बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता की पुत्री जहां रह रही, वहां सुरक्षित है। यह ऐसा विषय नहीं है, जहां किसी व्यस्क की स्वतंत्रता पर रोक लगाई जाए। यह मामला गैरकानूनी हिरासत का नहीं है।