Manisha Dhanwani
22 Sep 2025
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की बैठक के दौरान फ्रांस, मोनाको, माल्टा, लक्ज़मबर्ग और बेल्जियम ने फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की घोषणा की। इस ऐतिहासिक फैसले के बाद अब 193 सदस्य देशों में से लगभग 155 देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। यह कदम गाज़ा युद्ध और मानवीय संकट के बीच अंतरराष्ट्रीय दबाव का बड़ा संकेत माना जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र में बैठक की सह-अध्यक्षता फ्रांस और सऊदी अरब ने की। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने घोषणा करते हुए कहा – “आज फ्रांस फिलिस्तीन को मान्यता देता है। यह शांति की दिशा में हमारा कर्तव्य है। हमास की हार सुनिश्चित करनी होगी और फिलिस्तीन के अधिकारों को मान्यता मिलनी चाहिए।”
मैक्रों की इस घोषणा पर जोरदार तालियां बजीं और फिलिस्तीनी प्रतिनिधियों ने खड़े होकर स्वागत किया।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि “फिलिस्तीनियों को स्वतंत्र राज्य का दर्जा मिलना उनका अधिकार है, कोई इनाम नहीं। जब तक यह नहीं होगा, शांति संभव नहीं है।”
बेल्जियम ने फिलिस्तीन की मान्यता पर शर्त लगाई है। उसने कहा कि मान्यता तभी कानूनी रूप से लागू होगी जब गाज़ा में हमास को सत्ता से हटाया जाएगा और सभी इजरायली बंधकों की रिहाई हो जाएगी।
फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने कहा कि गाज़ा में युद्ध खत्म होने के बाद वहां हमास की कोई भूमिका नहीं होगी। उन्होंने हमास से हथियार डालने की अपील की और वादा किया कि तीन महीने के भीतर राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव कराए जाएंगे।
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से अब चार – फ्रांस, चीन, रूस और ब्रिटेन – फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। केवल अमेरिका ऐसा स्थायी सदस्य है जिसने अब तक फिलिस्तीन को राष्ट्र का दर्जा नहीं दिया है।
दूसरी ओर, इजरायल ने इस पहल का कड़ा विरोध किया है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा – “फिलिस्तीन को मान्यता देना आतंकवाद को इनाम देने जैसा है।” इजरायल ने संकेत दिया कि वह वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियों का विस्तार और तेज करेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि गाज़ा युद्ध, लगातार बमबारी, भुखमरी और आम लोगों की तबाही की तस्वीरों ने दुनिया की राय बदल दी है। पश्चिमी देश, जो अब तक “सही समय” का इंतज़ार कर रहे थे, अब अंतरराष्ट्रीय दबाव और मानवीय संकट को देखते हुए मान्यता देने पर मजबूर हुए हैं।