दबाव में दिखीं कच्चे तेल की कीमतें... ब्रेंट और डब्ल्यूटीआई क्रूड फ्यूचर्स ने कमजोरी में की नए हफ्ते की शुरुआत
नई दिल्ली। एशियाई बाजारों में सोमवार को तेल की कीमतों में गिरावट देखने को मिली। अगस्त महीने में पहले ही 7% से अधिक की गिरावट दर्ज कर चुके ब्रेंट और डब्ल्यूटीआई क्रूड फ्यूचर्स अब नए हफ्ते की शुरुआत भी कमजोरी के साथ कर रहे हैं। ब्रेंट ऑयल फ्यूचर्स (अक्टूबर अनुबंध) 0.4% टूटकर 67.21 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए, जबकि वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) फ्यूचर्स 0.4% गिरकर 63.78 डॉलर प्रति बैरल पर दिखाई दिए। इस गिरावट की मुख्य वजह यह रही कि निवेशकों ने रूस पर संभावित सेकेंडरी प्रतिबंधों से तेल आपूर्ति पर तुरंत असर पड़ने की संभावना को नजरअंदाज़ कर दिया और ज्यादा ध्यान चीन के नए आर्थिक आंकड़ों पर केंद्रित कर दिया है। अगस्त में कीमतों पर पहले ही ओपेक प्लस देशों की लगातार बढ़ती उत्पादन गतिविधि और संभावित सप्लाई ग्लट का दबाव बना रहा था।
ये भी पढ़ें: मार्च के अंत से अब तक 3.3% गिरा रुपया, आरबीआई ने हस्तक्षेप नहीं किया तो आगे बना रह सकता है दबाव
रूसी तेल पर बाजार की प्रतिक्रिया सुस्त
पिछले हफ्ते यूरोपीय देशों ने रूसी तेल और गैस खरीदारों पर सेकेंडरी प्रतिबंध लगाने की मांग तेज की, लेकिन बाजार ने उस पर बहुत कम प्रतिक्रिया की। विश्लेषकों का कहना है कि अब निवेशक इस तरह के प्रतिबंधों के खतरे को ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, और असली असर तभी होगा जब अमेरिका इन कदमों को पूरी तरह समर्थन देगा। अब तक अमेरिका ने केवल भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाए हैं, जो रूसी तेल की बड़ी मात्रा खरीद रहा है। पिछले हफ्ते भारत से आने वाले आयात पर अमेरिका ने 25% अतिरिक्त शुल्क लागू किया, जिससे कुल शुल्क 50% तक पहुंच गया। यह सीधे तौर पर भारत के रूस से कच्चा तेल खरीदने पर दबाव बनाने का प्रयास माना जा रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भी स्थिति अनिश्चित बनी हुई है।
शांति की उम्मीद घटने से बाजार का रुख सतर्क
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले महीने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से सीधे वार्ता करने की अपील की थी और कहा था कि इसके बाद ही वॉशिंगटन में त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन पर विचार किया जाएगा। लेकिन शांति की उम्मीदें कमजोर पड़ने से बाजार का रुख और सतर्क हो गया है। दूसरी ओर, निवेशकों की नजर मांग से जुड़े संकेतकों पर है। अमेरिका में गर्मियों के ड्राइविंग सीजन के समाप्त होने के बाद ईंधन की मांग स्वाभाविक रूप से घटने की उम्मीद है। इसी बीच, आने वाले महीनों में ओपेक प्लस उत्पादन और बढ़ाने वाला है, जिससे तेल का अतिरिक्त भंडार बनने की आशंका और गहरी हो सकती है, खासकर तब जब वैश्विक आर्थिक वृद्धि सुस्त बनी हुई है।
ये भी पढ़ें: आरबीआई ने फॉरेक्स रिजर्व संरचना में किया बदलाव, यूएस ट्रेजरी बिल्स की हिस्सेदारी घटाई, सोने की बढ़ाई
चीन से आने वाले आर्थिक संकेत भी मिश्रित रहे
चीन से आने वाले आर्थिक संकेत भी मिश्रित रहे। आधिकारिक पीएमआई अगस्त में लगातार पांचवें महीने सिकुड़ गया, जिससे फैक्ट्री गतिविधि में कमजोरी झलकती है। लेकिन एक निजी सर्वेक्षण ने इसके उलट संकेत दिए, जिसमें दिखाया गया कि अगस्त में चीनी फैक्ट्री गतिविधि पिछले 5 महीनों में सबसे तेजी से बढ़ी है। इन परस्पर विरोधी आंकड़ों ने मांग के परिदृश्य को और धुंधला कर दिया है। कुल मिलाकर, तेल बाजार की मौजूदा स्थिति यह दिखाती है कि आपूर्ति बढ़ने और मांग को लेकर बनी अनिश्चितताओं के बीच कीमतें दबाव में हैं। रूस पर संभावित नए प्रतिबंधों का प्रभाव निवेशकों को फिलहाल सीमित नजर आ रहा है, जबकि चीन और अमेरिका की मांग से जुड़े संकेत ही आगे की दिशा तय करेंगे।