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मार्च के अंत से अब तक 3.3% गिरा रुपया, आरबीआई ने हस्तक्षेप नहीं किया तो आगे बना रह सकता है दबाव

मुंबई। भारतीय मुद्रा 88 के स्तर को पार कर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले नए निचले स्तर पर जा पहुंची है। यह स्थिति न केवल आयातकों और कॉरपोरेट्स के लिए चिंता का विषय है, बल्कि संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए भी संकेत देती है कि आने वाले महीनों में विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता बनी रह सकती है। जब रुपया कमजोर होता है तो आयात महंगा हो जाता है, जिससे कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक सामान और अन्य विदेशी वस्तुओं की लागत बढ़ जाती है। इससे कंपनियों का मुनाफा प्रभावित होता है और उपभोक्ताओं पर महंगाई का बोझ बढ़ सकता है।

वहीं दूसरी ओर, कमजोर रुपया निर्यातकों के लिए कुछ राहत लाता है क्योंकि उन्हें डॉलर में ज्यादा राशि प्राप्त होती है। वर्तमान परिस्थिति में यह माना जा रहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) जानबूझकर रुपया कमजोर रहने दे रहा है, ताकि निर्यात प्रतिस्पर्धा बढ़े और सरकार को अगले वर्ष अधिक लाभांश (डिविडेंड) मिले, जिससे 8वें वेतन आयोग और घटे हुए जीएसटी दरों से उपजे राजकोषीय दबाव को संतुलित किया जा सके।

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आगे रुपए पर और बढ़ सकता है दबाव

बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि यदि ट्रंप प्रशासन द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50% शुल्क लंबे समय तक बने रहते हैं तो रुपया और दबाव में आ सकता है। हालांकि, यदि अमेरिका का रोजगार डेटा कमजोर आता है, तो वहां ब्याज दर कटौती की उम्मीद बनेगी, जिससे डॉलर कमजोर होगा और रुपया कुछ हद तक संभल सकता है। लेकिन यह पूरी तरह समाचार-आधारित बाजार है जहां किसी भी अचानक आए बयान या घटना से रुपया एकदम ऊपर-नीचे हो सकता है। एक बड़ा पहलू यह भी है कि कंपनियों ने विदेशी मुद्रा में हेजिंग के लिए जिन डेरिवेटिव उत्पादों जैसे सीगल और कॉल स्प्रेड का इस्तेमाल किया है, वे अब घाटे का कारण बन सकते हैं। जब रुपया 88 से ऊपर जाता है, तो कई आयातकों को अपनी डील्स पर भारी नुकसान उठाना पड़ता है।

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89 के स्तर को छू सकता है रुपया

इसका असर उनकी तिमाही बैलेंस शीट में साफ दिखाई देगा। पहले, बाजार में यह धारणा थी कि रुपया सीमित दायरे में ही रहेगा क्योंकि पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास के समय आरबीआई बार-बार हस्तक्षेप करता था। आरबीआई के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा के कार्यकाल में रुपया कहीं ज्यादा लचीला हो गया है और यह मार्च के अंत से अब तक 3.3% गिर चुका है। इसका संकेत है कि आरबीआई अब बाजार को अपनी गति से चलने दे रहा है और केवल तब हस्तक्षेप करेगा जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी।

इस पूरे घटनाक्रम का निष्कर्ष यह है कि रुपया अभी कुछ समय दबाव में रह सकता है और यदि अमेरिकी नीतियों या वैश्विक आर्थिक माहौल में बदलाव नहीं आता तो 89 के स्तर को भी छू सकता है। आयातकों और विदेशी मुद्रा में कर्ज लेने वाली कंपनियों को सावधान रहना होगा, क्योंकि आने वाले महीनों में उतार-चढ़ाव और तेज हो सकता है। वहीं, निर्यातकों के लिए यह स्थिति फायदेमंद रहेगी, लेकिन कुल मिलाकर यह अस्थिरता अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौतीपूर्ण परिदृश्य पेश कर रही है।

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Aniruddh Singh
By Aniruddh Singh
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