Manisha Dhanwani
1 Dec 2025
नंदन टैरी के सीईओ संजय डियोरा बताते हैं, उच्च टैरिफ का सीधा असर कंपनियों के ऑर्डर और मुनाफे पर पड़ रहा है। उन्होंने कहा, कि कई कंपनियों ने जुलाई में ही भारी मात्रा में शिपमेंट भेज दिया था, ताकि बढ़े हुए टैरिफ से बचा जा सके। सामान्य तौर पर साल के अंत में ब्लैक फ्राइडे, थैंक्सगिविंग और क्रिसमस के कारण अमेरिकी बाज़ार से भारी मांग आती है, लेकिन इस बार ऑर्डर बेहद कमज़ोर रहे हैं। उनका अनुमान है कि अगले साल अमेरिका से आने वाला बिज़नेस लगभग 50% तक घट सकता है। नंदन टैरी के वॉलमार्ट और कोह्ल्स जैसे बड़े अमेरिकी रिटेलर्स के साथ लंबे समय से साझेदारियां हैं। फिर भी कंपनी पर टैरिफ का असर गहरा पड़ रहा है।
संजय डियोरा ने बताया कि शुरुआत में अमेरिकी रिटेल कंपनियां टैरिफ के कुछ हिस्से को खुद वहन करने को तैयार थीं, लेकिन अब उन्होंने भारत से अपनी खरीदारी के अनुमान कम कर दिए हैं। इसके साथ ही कई भारतीय निर्यातक अमेरिकी रिटेल कंपनियों को 15-25% तक भारी डिस्काउंट दे रहे हैं, जिसके कारण नंदन टैरी को भी 12-18% तक की छूट देनी पड़ रही है। यह स्थिति लंबे समय तक चलना संभव नहीं है और इससे कंपनियों की वित्तीय स्थिति प्रभावित होती रहेगी। डियोरा ने कहा हाल के दिनों में रुपए की कमजोरी ने टेक्सटाइल उद्योग को कुछ हद तक राहत दी है, क्योंकि कमजोर रुपए से निर्यातकों को डॉलर में अधिक कमाई होती है। इससे कई कंपनियां इस कठिन दौर में टिके रहने में सक्षम हुई हैं। लेकिन यह राहत अस्थायी है। उनका मानना है कि लंबी अवधि में भारत सरकार को जल्द हस्तक्षेप करना होगा, अन्यथा भारतीय टेक्सटाइल उद्योग को अमेरिकी बाज़ार में और नुकसान उठाना पड़ सकता है।
भारत पर 50% अमेरिकी टैरिफ उसे अन्य प्रतिस्पर्धी देशों बांग्लादेश, वियतनाम और श्रीलंका की तुलना में कमजोर कर देता है, क्योंकि इन तीनों देशों पर सिर्फ 20% टैरिफ लगता है। इसी वजह से भारतीय कपड़ा उद्योग को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पल्लब बनर्जी जो परिधान निर्माण कंपनी पर्ल ग्लोबल के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, बताते हैं कि इस भारी टैरिफ ने उनकी कंपनी की भारतीय उत्पादन इकाइयों के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। उनकी कंपनी के 5 उत्पादन केंद्र भारत, बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया और ग्वाटेमाला में हैं, लेकिन वे मानते हैं कि भारत में स्थित इकाइयों की विकास संभावनाएं कमजोर हो गई हैं। बनर्जी के अनुसार, उनकी भारतीय इकाइयां कंपनी की कुल आय का लगभग 25% योगदान देती हैं, और इनमें से 50–60% ऑर्डर अमेरिकी बाजार के लिए होते हैं। लेकिन 50% टैरिफ के कारण अमेरिकी खरीदार अब पहले की तरह भारी मात्रा में खरीदारी नहीं कर रहे, जिससे मांग घट गई है।