आरबीआई ने फॉरेक्स रिजर्व संरचना में किया बदलाव, यूएस ट्रेजरी बिल्स की हिस्सेदारी घटाई, सोने की बढ़ाई
मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार (फॉरेक्स रिजर्व) की संरचना में बदलाव करते हुए अमेरिकी ट्रेजरी बिल्स की हिस्सेदारी कम की है और सोने की हिस्सेदारी बढ़ाई है। यह कदम जोखिम प्रबंधन और विविधीकरण की वैश्विक रणनीति का हिस्सा है, जिसमें देश अपने भंडार को केवल डॉलर-आधारित परिसंपत्तियों पर निर्भर रखने के बजाय सोने जैसे वैकल्पिक सुरक्षित साधनों की ओर भी ले जा रहे हैं। अमेरिकी ट्रेजरी बिल्स अत्यधिक तरल और सुरक्षित माने जाते हैं, लेकिन वे डॉलर तथा अमेरिकी आर्थिक-राजकोषीय जोखिमों से सीधे जुड़े होते हैं। बीते साल में डॉलर की अस्थिरता, अमेरिकी राजकोषीय घाटे और ऊंची यील्ड्स ने कई केंद्रीय बैंकों को यह सोचने पर मजबूर किया कि अगर डॉलर कमजोर हो या अमेरिकी बॉन्ड की कीमतों में उतार-चढ़ाव आए, तो उनके भंडार का मूल्य घट सकता है।
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सोने का गोल्डन हेज के रूप में प्रयोग
इसे देखते हुए आरबीआई ने सोने को गोल्डन हेज के रूप में प्रयोग करने को तरजीह दी है। गोल्ड एक ऐसी संपत्ति है, जो वैश्विक अनिश्चितताओं में मूल्य-संरक्षण प्रदान करता है और किसी एक देश के नीतिगत जोखिमों से प्रभावित नहीं होता। जून 2025 में भारत की अमेरिकी ट्रेजरी बिल्स में होल्डिंग लगभग 227 अरब डॉलर रही, जो जून 2024 के 242 अरब डॉलर से कम है। इसके उलट, इसी अवधि में आरबीआई ने करीब 39.22 मीट्रिक टन सोना खरीदा, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में सोने का कुल स्टॉक 840.76 मीट्रिक टन (28 जून 2024) से बढ़कर 879.98 मीट्रिक टन (27 जून 2025) हो गया। कुल फॉरेक्स रिजर्व लगभग 690 अरब डॉलर (22 अगस्त 2025) दर्ज हुआ। ध्यान रहे, भारत अब भी शीर्ष 20 यूएस ट्रेजरी बिल निवेशकों में है, यानी तरलता और सुरक्षा का संतुलन को पूरी तरह छोड़ा नहीं गया, बस कुछ रणनीतिक बदलाव किए गए हैं। यह बदलाव वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भी फिट बैठता है। चीन जैसे बड़े देशों ने भी यूएस ट्रेजरी-बिल्स में हिस्सेदारी घटाई है, जबकि इजराइल जैसे कुछ देशों ने बढ़ाई है।
ब्रिक्स देशों ने डॉलर पर निर्भरता घटाई
ब्रिक्स देशों में विशेषकर भारत, चीन, ब्राजील में डॉलर-निर्भरता में आंशिक कमी और भंडार का विविधीकरण देखने को मिला है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह री-बैलेंसिंग रिवैल्यूएशन लॉस (मुद्रा मूल्य बदलने से होने वाला नुकसान) घटाने, भू-राजनीतिक जोखिमों से बचाव, और दीर्घकालिक स्थिरता बढ़ाने का प्रयास है। आम लोगों के नजरिए से इसका मतलब है कि देश का सुरक्षा-कवच और मजबूत हुआ है। सोना संकट के समय में सबसे भरोसेमंद साबित होता है, जबकि ट्रेजरी बिल्स त्वरित तरलता देते हैं; दोनों का मिश्रण रुपए की स्थिरता, आयात बिल प्रबंधन और बाहरी झटकों से रक्षा करने में मदद करता है। यह किसी तात्कालिक ब्याज दर या रोजमर्रा की बैंकिंग सेवाओं में बदलाव का संकेत नहीं, बल्कि रिजर्व मैनेजमेंट की दीर्घकालिक, सावधानीपूर्ण रणनीति है। कुल मिलाकर, आरबीआई डॉलर-आधारित जोखिमों को डि-रिस्क करते हुए भंडार को अधिक संतुलित, लचीला और टिकाऊ बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
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जून 25 व जून 24 में यूएस ट्रेजरी बांड्स
- जापान के पास 1,147.6 अरब डॉलर (Jun-25) ट्रेजरी बॉन्ड्स हैं।
- यूके ने भी अपनी होल्डिंग बढ़ाकर 746.5 से 858.1अरब डॉलर की।
- चीन ने अपनी होल्डिंग घटाकर 780.2 से 756.4 अरब डॉलर की।
- भारत ने होल्डिंग 241.9 से घटाकर 227.4 अरब डॉलर कर दी है।
- ब्राजील, सऊदी अरब, जर्मनी में देखने को मिला मिश्रित रुझान।
-इज़राइल ने 69.7 से बढ़ाकर 101.7 अरब डॉलर की हौल्डिंग।
- ग्रैंड टोटल 8,299.3 से बढ़कर 9,127.7 अरब डॉलर हो गया।