Shivani Gupta
2 Dec 2025
Shivani Gupta
1 Dec 2025
नई दिल्ली। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने दो दिवसीय भारत दौरे पर पहुँचे हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध शुरू होने के बाद यह उनकी पहली भारत यात्रा है, इसलिए पूरी दुनिया की नज़रें इस मुलाकात पर टिकी हुई हैं। माना जा रहा है कि दोनों नेता युद्ध समाप्त करने के संभावित रास्तों पर भी चर्चा कर सकते हैं। अमेरिका और चीन सहित कई देश इस मुलाकात पर विशेष ध्यान दे रहे हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और यूरोपीय देश लगातार भारत पर रूस से व्यापारिक संबंध कम करने का दबाव बना रहे हैं। हाल ही में ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीति भी इसी कोशिश का हिस्सा मानी जा रही है, जिसके ज़रिए भारत पर रूस से ऊर्जा आयात घटाने का अप्रत्यक्ष दबाव बनाया जा रहा है। इसके बावजूद भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देगा। इसी बीच भारत-अमेरिका के सैन्य रिश्ते भी जारी हैं, परंतु भारत-रूस का मजबूत रक्षा गठबंधन पश्चिमी देशों के लिए चिंता का कारण बना हुआ है।
यूक्रेन युद्ध के बाद ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी खुलकर रूस का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में भारत में मोदी-पुतिन की मुलाकात अमेरिका और यूरोपीय देशों को असहज कर सकती है। पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद पुतिन का भारत आना यह संकेत देता है कि भारत अपनी विदेश नीति स्वतंत्र रूप से तय करता है और किसी बाहरी दबाव में आने वाला नहीं है।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियाँ इस यात्रा के उद्देश्य, संभावित समझौतों और व्हाइट हाउस की प्रतिक्रिया पर बारीकी से नज़र रखेंगी।
1. लीसा कर्टिस, जो ट्रंप प्रशासन में काम कर चुकी हैं और अब सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी में इंडो-पैसिफिक सुरक्षा कार्यक्रम की निदेशक हैं, कहती हैं कि यह बैठक अमेरिका के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकती है। कारण यह है कि पुतिन एक ओर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध तेज़ कर रहे हैं और दूसरी ओर यूरोप को ड्रोन और साइबर हमलों की धमकी दे रहे हैं। कर्टिस के अनुसार, यह मुलाकात वाशिंगटन के लिए एक कूटनीतिक संदेश है कि भारत किसी दबाव में नहीं आएगा और अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता से समझौता नहीं करेगा।
2. तन्वी मदान, जो ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन से जुड़ी हैं, के अनुसार अमेरिका इस समिट में दो बातों पर खास नज़र रखेगा— एक पुतिन को मिलने वाले औपचारिक सम्मान का स्तर और दूसरा रक्षा और ऊर्जा से जुड़े समझौतों का अंतिम परिणाम उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिकी विशेषज्ञ भारत की रूसी तेल खरीद पर भी नज़र रखेंगे और तेल आयात के ताज़ा आँकड़ों को ध्यान से देखेंगे।