Aniruddh Singh
2 Oct 2025
Aniruddh Singh
1 Oct 2025
Peoples Reporter
1 Oct 2025
वाशिंगटन। अमेरिका में सरकार की फंडिंग को लेकर उत्पन्न संकट का असर अब सीधे वित्तीय बाजारों पर पड़ने लगा है। फेडरल फंडिंग में कटौती और शटडाउन जैसी स्थिति बनने से अमेरिकी बाजारों के नियामक संस्थान अपना कामकाज धीरे-धीरे बंद करने लगे हैं। इस स्थिति का सीधा असर निवेशकों, कंपनियों और वित्तीय लेनदेन पर पड़ रहा है, क्योंकि जब नियामक संस्थाओं का काम रुकता है तो न केवल निगरानी प्रक्रिया प्रभावित होती है बल्कि नई योजनाओं की मंजूरी, बाजार में पारदर्शिता और निवेशकों की सुरक्षा भी कमजोर पड़ जाती है।
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अमेरिकी सरकार का बजट हर साल कांग्रेस की मंजूरी से तय होता है, लेकिन कई बार राजनीतिक खींचतान की वजह से सरकार को अस्थायी तौर पर फंड की कमी का सामना करना पड़ता है। जब यह स्थिति लंबी खिंच जाती है तो शटडाउन लागू करना पड़ता है, यानी सरकारी विभागों को अस्थायी तौर पर बंद कर दिया जाता है या उनके कामकाज को बहुत सीमित कर दिया जाता है। इस बार भी फेडरल बजट में सहमति न बनने से फंडिंग रुक गई है, जिसके कारण बाजार नियामकों को मजबूरी में कई विभाग बंद करने पड़े हैं।
सबसे बड़ा असर सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) और कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग कमीशन (सीएफटीसी) जैसे नियामक संस्थानों पर पड़ रहा है। ये संस्थान अमेरिकी शेयर बाजार और डेरिवेटिव बाजार की निगरानी करते हैं। जब इनका काम ठप हो जाता है तो बाजार में होने वाले सौदों की जांच, इनसाइडर ट्रेडिंग पर कार्रवाई और कंपनियों की रिपोर्टिंग जैसे अहम कार्य रुक जाते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि निवेशकों के लिए जोखिम बढ़ जाता है और बाजार पर से भरोसा कमजोर होने लगता है।
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इस स्थिति का असर अंतरराष्ट्रीय निवेशकों पर भी पड़ेगा, क्योंकि अमेरिकी शेयर बाजार और वहां के नियम पूरी दुनिया में पूंजी प्रवाह की दिशा तय करते हैं। जब नियामक संस्थान काम नहीं करेंगे तो नई कंपनियों के लिए आईपीओ लाना मुश्किल हो जाएगा, वहीं पहले से मौजूद कंपनियों के लिए जरूरी कागजी मंजूरियां और रिपोर्टिंग में देरी होगी। इसका असर अमेरिकी कंपनियों की विकास गति पर भी पड़ सकता है और वैश्विक निवेशकों का भरोसा हिल सकता है। शटडाउन के कारण केवल बाजार नियामक ही नहीं, बल्कि अन्य फेडरल एजेंसियां भी प्रभावित होती हैं।
इसका नतीजा यह है कि आर्थिक आंकड़ों की रिपोर्टिंग में देरी होती है, जिससे निवेशकों और बाजार विश्लेषकों को सही जानकारी समय पर नहीं मिल पाती। इससे बाजार में अस्थिरता और अनिश्चितता और बढ़ जाती है। कुल मिलाकर, अमेरिकी फेडरल फंडिंग संकट केवल प्रशासनिक समस्या नहीं है बल्कि इसका सीधा असर वैश्विक वित्तीय बाजारों पर भी दिखाई देता है। यदि यह स्थिति लंबी चली तो अमेरिकी बाजार की साख को गहरा झटका लग सकता है और निवेशकों के लिए असुरक्षा की भावना बढ़ सकती है। भारत समेत अन्य उभरते बाजारों को भी इसका असर झेलना पड़ सकता है।