Aniruddh Singh
7 Oct 2025
वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बताया कि उनके प्रशासन ने टेक दिग्गज इंटेल में 10% हिस्सेदारी लेने का समझौता पूरा कर किया है। यह कदम अमेरिकी सरकार की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह सेमीकंडक्टर और रेयर अर्थ जैसे अहम उद्योगों को फिर से मजबूती देना चाहती है। डोनाल्ड ट्रंप ने बताया कि यह सौदा इंटेल के सीईओ लिप-बू टैन से मुलाकात के बाद पूरा हुआ। उन्होंने कहा यह एक रणनीतिक कदम है और इसका उद्देश्य न केवल इंटेल की गिरती हालत को संभालना है बल्कि अमेरिका की तकनीकी आत्मनिर्भरता को भी सुरक्षित करना है। बता दें कि इंटेल कभी दुनिया की सबसे बड़ी चिप बनाने वाली कंपनी मानी जाती रही है, लेकिन यह कंपनी पिछले कुछ सालों से गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। कंपनी ने साल 2024 में करीब 18.8 अरब डॉलर का घाटा दर्ज किया है, जो 1986 के बाद उसका सबसे बड़ा नुकसान था।
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इंटेल का प्रदर्शन हाल के दिनों में बहुत खराब रहा है। कंपनी की उत्पादन क्षमता और उत्पाद रोडमैप दोनों कमजोर हो गए हैं। ऐसे समय में अमेरिकी सरकार का वित्तीय सहयोग और हिस्सेदारी लेना इंटेल के लिए जीवनदान मिलने जैसी बात है। इस सौदे के पीछे अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं रही हैं। चीन से जुड़ी कंपनियों के बढ़ते प्रभाव और वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला में उसकी बढ़त अमेरिका के लिए खतरे के रूप में देखी जा रही है। ट्रंप प्रशासन पहले भी कई बार यह कह चुका है कि अमेरिका को चिप उत्पादन और रेयर अर्थ खनिजों में आत्मनिर्भर बनना होगा। इसी रणनीति के तहत पहले एनविडिया और एमपी मटेरियल्स जैसी कंपनियों से भी समझौते किए गए हैं। इंटेल को हाल ही में सॉफ्टबैंक से भी 2 अरब डॉलर की पूंजी मिली है, जिसे कंपनी के प्रति निवेशकों का भरोसा बढ़ा है।
लेकिन केवल निजी निवेशक ही कंपनी की स्थिति नहीं बदल सकते थे। अब जब अमेरिकी सरकार प्रत्यक्ष रूप से कंपनी में हिस्सेदारी ले रही है, तो यह न केवल आर्थिक समर्थन है बल्कि राजनीतिक और रणनीतिक भरोसे का भी स्पष्ट संकेत है। इसके परिणामस्वरूप इंटेल अपने घाटे वाले फाउंड्री व्यवसाय को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर सकती है और नई फैक्ट्रियों में ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए आत्मविश्वास जुटा सकती है। ट्रंप ने इस कदम को एक असाधारण हस्तक्षेप बताया और कहा कि अमेरिका की कंपनियों को विदेशी दबाव से बचाने के लिए यह जरूरी है। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि सरकारी हस्तक्षेप से प्रतिस्पर्धा और नवाचार पर असर पड़ सकता है।
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अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान के बाद साफ हो गया है कि अमेरिका सरकार ने कंपनी में हिस्सेदारी ले ली है। यह सौदा इंटेल को राहत देगा और अमेरिका की तकनीकी सुरक्षा को मजबूत करेगा। अमेरिका का इंटेल में 10% हिस्सेदारी लेना केवल एक आर्थिक सौदा भर नहीं है बल्कि यह भू-राजनीतिक कदम भी है। यह दिखाता है कि अमेरिका अब अपनी महत्वपूर्ण तकनीकी कंपनियों को केवल बाजार पर नहीं छोड़ सकता, बल्कि प्रत्यक्ष हिस्सेदारी लेकर उन्हें सुरक्षित करना चाहता है। आने वाले सालों में यह सौदा अमेरिकी सेमीकंडक्टर उद्योग के भविष्य और चीन-अमेरिका तकनीकी प्रतिस्पर्धा दोनों पर गहरा असर डाल सकता है।