Aniruddh Singh
4 Dec 2025
वाशिंगटन। अमेरिका में आयातित दवाओं पर 200 फीसदी तक आयात शुल्क लगाया जा सकता है। इस प्रक्रिया से जुड़े सूत्रों केअनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, आयातित दवाओं पर 200 प्रतिशत तक का शुल्क लगा सकते हैं। अगर यह प्रस्ताव अमल में आया तो अमेरिका में दवाओं की कीमतें बढ़ाने और आपूर्ति श्रृंखला में बाधा डालने वाला साबित होगा। सूत्रों के अनुसार डोनाल्ड ट्रंप ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला बताते हुए 1962 के ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट की धारा 232 के तहत आगे बढ़ाया है। इसके पीछे तर्क यह है कि कोविड-19 महामारी के दौरान दवाओं की कमी और स्टॉकपाइलिंग जैसी स्थिति से सबक लेते हुए घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना जरूरी है। अभी तक कई दवाएं अमेरिका में बिना किसी शुल्क के आती रही हैं, लेकिन ट्रंप प्रशासन की यह पहल दशकों पुराने उस ढांचे को पूरी तरह से तोड़ देगी। इस कदम का सबसे बड़ा असर आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर 25 प्रतिशत तक का शुल्क लगाया जाता है तो भी अमेरिका में दवाओं की कीमतें 10 से 14 प्रतिशत तक बढ़ सकती हैं। जब यह दर 200 प्रतिशत तक पहुंचेगी, तो यह महंगाई और भी तेज होगी।
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इस बढ़ी महंगाई से से कम आय वाले परिवार और वृद्ध नागरिक विशेष रूप से प्रभावित होंगे, क्योंकि वे अपनी निश्चित आय पर निर्भर रहते हैं। उनके लिए दवाओं की कीमतों में थोड़ी सी भी वृद्धि बड़ा बोझ बन जाती है। विश्लेषकों के अनुसार यह नीति तुरंत असर नहीं दिखाएगी, क्योंकि दवा कंपनियों ने पहले ही अतिरिक्त आयात कर स्टॉक बना लिया है। कई कंपनियों के पास छह से अठारह महीने तक का स्टॉक मौजूद है। इसलिए 2026 के अंत तक या 2027–28 से पहले इसका वास्तविक प्रभाव नहीं दिखेगा।
जैसे ही यह भंडार घटेगा, उपभोक्ताओं को कीमतों और बीमा प्रीमियम दोनों में भारी वृद्धि महसूस होगी। सबसे अधिक खतरा जेनेरिक दवाओं पर है, जो अमेरिका में लगभग 92 प्रतिशत प्रेस्क्राइब की जाती हैं। ये कंपनियां बहुत ही कम मुनाफे पर काम करती हैं और इतना बड़ा शुल्क झेल पाना उनके लिए संभव नहीं होगा। आशंका है कि कुछ कंपनियां अमेरिकी बाजार से बाहर हो जाएं, जिससे स्थानीय स्तर पर दवाओं की उपलब्धता और भी कम हो जाएगी। इसका भी सबसे ज्यादा खामियाजा आम लोगों और बुजुर्गों को भुगतना पड़ेगा।
एक बड़ी समस्या यह भी है कि अमेरिका में दवाओं की आपूर्ति श्रृंखला वर्षों से भारत, चीन, आयरलैंड और स्विट्जरलैंड जैसे देशों पर निर्भर रही है। अमेरिका में 97 प्रतिशत एंटीबायोटिक्स, 92 प्रतिशत एंटीवायरल और 83 प्रतिशत लोकप्रिय जेनेरिक दवाओं के सक्रिय तत्व विदेशों में बनते हैं। इस स्थिति को अचानक बदलना लगभग असंभव है। घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए बड़े निवेश, समय और तकनीक की जरूरत होगी, लेकिन निकट भविष्य में यह संभव नहीं दिखता। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि इस नीति से अमेरिका में उत्पादन बढ़ेगा और बाहरी निर्भरता घटेगी।
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विशेषज्ञों का मानना है कि इससे स्वास्थ्य सेवाओं की लागत इतनी बढ़ जाएगी कि आम नागरिकों की पहुंच से बाहर ही हो जाएगी। बीमा कंपनियां इस लागत को उपभोक्ताओं पर डालेंगी, जिससे प्रीमियम दरें बढ़ेंगी। नतीजतन महंगाई का बोझ दो तरह से महसूस होगा-पहली बार दवा खरीदते समय और दूसरी बार बीमा का भुगतान करते समय। हालांकि भारत जैसे कुछ देशों को शुरुआती चरण में छूट दी गई है, पर यह छूट अस्थाई है। अदालतें भी इस फैसले की वैधता पर सवाल उठा रही हैं अब फैसला सु्प्रीम की ओर रुख कर गया है। यह फैसला लागू हुआ तो अमेरिकी लोगों को बुरी तरह प्रभावित करेगा।