Aniruddh Singh
4 Dec 2025
वाशिंगटन। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने एक बार फिर एच-1बी वीजा कार्यक्रम में बड़े बदलाव की तैयारी शुरू कर दी है। अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लटनिक ने इस वीजा प्रणाली को एक बड़ा धोखा बताते हुए कहा कि अमेरिकी कंपनियों की पहली प्राथमिकता हमेशा अमेरिकी नागरिकों को नौकरी देना होनी चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि मौजूदा एच-1बी व्यवस्था विदेशी कर्मचारियों को ऐसे अवसर दे रही है जो मूल रूप से अमेरिकी नागरिकों को मिलने चाहिए। लटनिक ने कहा कि अमेरिका हर साल ग्रीन कार्ड भी देता है, लेकिन औसतन अमेरिकी नागरिक की आय 75,000 डॉलर ही है, जबकि ग्रीन कार्ड होल्डर्स की आय 66,000 डॉलर तक होती है। यह व्यवस्था आर्थिक दृष्टि से भी उचित नहीं है। अमेरिकी सरकार ने इस स्थिति में बदलाव करने की योजना बनाई है। उन्होंने कहा हम अगले दिनों में इसे अमेरिका केंद्रित बनाने का प्रयास करेंगे। इसका एक पक्षीय होना अमेरियों के लिए ठीक नहीं है।
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ट्रंप प्रशासन मौजूदा प्रणाली को पूरी तरह बदलने का इच्छुक है। अभी तक एच-1बी वीजा एक तरह की लॉटरी प्रणाली के आधार पर दिए जाते थे, यानी किसे वीजा मिलेगा यह काफी हद तक किस्मत पर निर्भर करता था। अब नई योजना के तहत यह प्रक्रिया वेतन आधारित होगी। इसका अर्थ है कि जिन लोगों को कंपनियां सबसे अधिक वेतन पर नियुक्त करेंगी, उन्हें पहले प्राथमिकता दी जाएगी। अमेरिका के पास हर साल केवल 65,000 सामान्य और 20,000 एडवांस डिग्री वाले लोगों को एच-1बी वीजा देने की सीमा है, इसलिए अब उच्च वेतन और उच्च कौशल वाले आवेदकों को ही इन सीमित अवसरों में जगह मिल पाएगी। व्हाइट हाउस का मानना है कि इस नीति से अमेरिकी श्रमिकों की सुरक्षा होगी और कंपनियां सस्ते विदेशी कर्मचारियों को रखकर स्थानीय नागरिकों को दरकिनार नहीं कर पाएंगी।
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राष्ट्रपति ट्रंप और लटनिक दोनों ने कई बार कह चुके हैं कि अमेरिका को केवल सबसे अच्छे और सबसे तेज दिमाग वाले लोगों को ही चुनना चाहिए। लॉटरी जैसी प्रक्रिया पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, उनकी इस योजना की अमेरिका में आलोचना भी हो रही है। कई उद्योगपतियों और अमेरिकी स्टार्टअप जगत का कहना है कि यदि केवल उच्च वेतन को आधार बनाया गया, तो छोटी कंपनियों, स्टार्टअप्स और अंतरराष्ट्रीय छात्रों को भारी नुकसान होगा। टेस्ला के सीईओ एलन मस्क जैसे दिग्गजों ने भी एच-1बी पेशेवरों के योगदान की सराहना करते हुए कहा है कि उन्होंने अमेरिकी नवाचार और तकनीकी विकास में बड़ी भूमिका निभाई है। ट्रंप प्रशासन के पहले कार्यकाल में ही एच-1बी पर कड़ी निगरानी रखी गई थी, आवेदन खारिज होने की दर बहुत अधिक थी। अमेरिकी प्रशासन ने प्रवेश स्तर की नौकरियों पर रोक लगा दी थी और कंपनियों की अनुपालन जांच भी कड़ी कर दी गई थी।
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पहले जैसी सख्ती एक बार फिर लौटती दिख रही है, साथ ही नई वेतन-आधारित चयन प्रणाली इसे और कठिन बना देगी। भारत के लिए यह बदलाव बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि एच-1बी वीजा प्राप्त करने वालों में 70 प्रतिशत से अधिक भारतीय होते हैं। अगर यह नियम लागू हो जाता है तो केवल उच्च वेतन पाने वाले भारतीय पेशेवर ही वीजा हासिल कर पाएंगे। मध्यम स्तर के कर्मचारी, नए स्नातक और छोटी कंपनियों में काम करने वाले भारतीयों के लिए यह अवसर लगभग असंभव हो जाएगा। इसके अलावा, अमेरिकी कंपनियाँ लागत घटाने के लिए अपने संचालन को भारत में ही बढ़ा सकती हैं या फिर रिमोट वर्क पर निर्भर हो सकती हैं। ट्रंप प्रशासन निवेशकों और अत्यधिक कौशल वाले लोगों के लिए गोल्ड कार्ड जैसी स्थाई निवास योजना पर भी काम कर रहा है। इसका अर्थ है कि भविष्य में अमेरिका निवेश और उच्च कौशल आधारित आप्रवासन को प्राथमिकता देगा, जबकि पारंपरिक एच-1बी जैसे मार्ग हाशिए पर चले जाएंगे। यह बदलाव भारतीय आईटी पेशेवरों और अन्य मध्यम स्तर के कर्मचारियों के लिए झटका साबित हो सकता है।