Naresh Bhagoria
9 Nov 2025
धर्म डेस्क। शारदीय नवरात्र का तीसरा दिन माता दुर्गा के तीसरे स्वरूप, देवी चंद्रघंटा की उपासना के लिए समर्पित होता है। 24 सितंबर 2025 को नवरात्र का तीसरा दिन है। मां चंद्रघंटा का प्रतीकात्मक स्वरूप अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इनके मस्तक पर अर्धचंद्र और हाथ में घंटा है। अर्धचंद्र शांति और स्थिरता का प्रतीक है, जबकि घंटा नाद और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। श्रद्धालु इस दिन मां की पूजा कर साहस, कृपा और समृद्धि की कामना करते हैं।
मां चंद्रघंटा का नाम उनके मस्तक पर अंकित घंटा आकार के अर्धचंद्र से पड़ा है। यह रूप देवी पार्वती के भगवान शिव से विवाह के बाद का प्रतीक है। मान्यता है कि विवाह के समय देवी पार्वती ने अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण किया और राक्षस जतुकासुर का वध करने के लिए हाथ में घंटा लिया। मां का यह रूप भयंकर होते हुए भी भक्तों को शांति और स्थिरता का आशीर्वाद देता है। मां चंद्रघंटा दस भुजाओं वाली हैं और बाघिन पर सवार रहती हैं। उनके हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र हैं, जो नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करने की सामर्थ्य का संदेश देते हैं।

नवरात्र के तीसरे दिन पूजा करने के लिए विशेष मुहूर्त निर्धारित हैं।
इन शुभ समयों में मां चंद्रघंटा की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
नवरात्र के तीसरे दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल की अच्छी तरह सफाई कर मां चंद्रघंटा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके बाद पूजा का संकल्प लें और मां को लाल फूल, रोली, अक्षत और सुगंधित धूप-दीप अर्पित करें। खीर या हलवे का भोग लगाएं और मंत्रों का जाप करें। पूजा के अंत में मां की आरती कर प्रसाद को परिवारजनों में वितरित करें।
मां चंद्रघंटा को दूध से बने व्यंजन विशेष रूप से प्रिय हैं। इसलिए पूजा में दूध से बनी खीर का भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा फल, लौंग, इलायची, पंचमेवा, पेड़ा और मिठाई भी अर्पित की जा सकती है। ऐसा करने से मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है और घर में शांति, साहस और समृद्धि का वास होता है।
मां चंद्रघंटा की आराधना जीवन में आत्मविश्वास और निडरता का संचार करती है। यह पूजा न केवल साहस और शक्ति प्रदान करती है, बल्कि मानसिक शांति और स्थिरता का आशीर्वाद भी देती है। नवरात्र के तीसरे दिन मां की उपासना से साधक अपने जीवन की कठिनाइयों को पार कर सकारात्मक ऊर्जा और सफलता की ओर बढ़ सकते हैं।
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
रंग, गदा, त्रिशूल,चापचर,पदम् कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
ॐ देवी चन्द्रघंटायै नमः।