Naresh Bhagoria
9 Nov 2025
धर्म डेस्क। कालभैरव अष्टमी, जिसे भैरव अष्टमी या कालाष्टमी भी कहा जाता है, वह रात है जब भगवान शिव के उग्र और रक्षक रूप 'कालभैरव' की विशेष पूजा-अराधना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस रात्रि में भगवान कालभैरव की ऊर्जा सबसे अधिक प्रबल होती है, इसलिए इस दिन की पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है।
मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती मनाई जाती है। इस साल यह तिथि 11 नवंबर से शुरू होकर 12 नवंबर तक रहेगी। अतः 12 नवंबर को कालभैरव जयंती का पर्व पूरे श्रद्धा भाव से मनाया जाएगा।
शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव के क्रोध से ही कालभैरव का प्रकट हुए थे। जब अंधकासुर ने अहंकारवश शिव पर हमला किया, तब शिव के रक्त से भैरव प्रकट हुए। इसलिए उन्हें 'भय नाशक' और शिव का उग्र रूप माना जाता है। भक्तों का विश्वास है कि उनकी पूजा से भय, रोग और दुर्भाग्य दूर होते हैं।
तिथि प्रारंभ- 11 नवंबर 2025, रात 11:08 बजे
तिथि समाप्त- 12 नवंबर 2025, सुबह 10:58 बजे
इस अवधि में ही कालभैरव अष्टमी की पूजा-अराधना करना सबसे फलदायी मानी जाती है।
ॐ कालभैरवाय नमः
ॐ भयहरणं च भैरव
ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नमः