जैन धर्म में रोहिणी व्रत का विशेष महत्व होता है। यह व्रत भगवान वासुपूज्य को समर्पित है। मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से साधक के जीवन में सुख, सौभाग्य और मनचाहा फल प्राप्त होता है। स्त्री-पुरुष दोनों इस व्रत को रख सकते हैं।
कब है रोहिणी व्रत?
वैदिक पंचांग के अनुसार शुक्रवार, 07 नवंबर को रोहिणी व्रत है। इस दिन मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया और तृतीया तिथि है। रोहिणी नक्षत्र का योग 08 नवंबर रात 12:33 बजे तक रहेगा। व्रती अपनी सुविधा अनुसार इस अवधि में भगवान वासुपूज्य की पूजा कर सकते हैं।
जानें शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त - 04:18 ए एम से 05:10 ए एम
- प्रातः सन्ध्या - 04:44 ए एम से 06:01 ए एम
- अभिजित मुहूर्त - 11:11 ए एम से 11:55 ए एम
- विजय मुहूर्त - 01:23 पी एम से 02:08 पी एम
- गोधूलि मुहूर्त - 05:05 पी एम से 05:30 पी एम
- सायाह्न सन्ध्या - 05:05 पी एम से 06:22 पी एम
- अमृत काल - 09:44 पी एम से 11:09 पी एम
- निशिता मुहूर्त - 11:07 पी एम से 11:59 पी एम
इस दिन बन रहा शुभ योग
इस दिन परिघ योग रात 10:28 बजे तक रहेगा। इसके बाद शिव योग का निर्माण होगा। परिघ और शिव योग में की गई पूजा को विशेष फलदायी माना गया है। मान्यता है कि इन योगों में पूजा और व्रत करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सौभाग्य बढ़ता है।
रोहिणी व्रत का महत्व
- यह व्रत भगवान वासुपूज्य की आराधना का दिन है।
- साधक व्रत रखकर सुख-शांति, घर-परिवार की उन्नति और मनोवांछित फल की कामना करता है।
- जैन मंदिरों में इस दिन विशेष पूजा और आरती का आयोजन होता है।
- व्रत को श्रद्धा, संयम और भक्ति के साथ किया जाता है।
पूजा विधि
- स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पूजा स्थान को साफ कर भगवान वासुपूज्य की प्रतिमा स्थापित करें।
- धूप, दीप, फल-फूल और नैवेद्य अर्पित करें।
- व्रत का संकल्प लेकर भगवान की गौरव गाथा और आरती करें।
- दिन भर संयम और श्रद्धा से व्रत रखें।
- अगले दिन विधिपूर्वक व्रत का पारण करें।