Aniruddh Singh
23 Oct 2025
Aniruddh Singh
23 Oct 2025
Aniruddh Singh
23 Oct 2025
मुंबई। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्यूचुअल फंड कंपनियों के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किया है। इसके तहत अब कोई भी म्यूचुअल फंड किसी कंपनी के प्री-आईपीओ प्लेसमेंट में निवेश नहीं कर सकेगी। इसका अर्थ है कि म्यूचुअल फंड अब किसी कंपनी के शेयरों में उसके आईपीओ के सार्वजनिक होने से पहले निवेश नहीं कर पाएंगे। वे अब केवल आईपीओ के एंकर इन्वेस्टर के रूप में हिस्सा ले सकते हैं या फिर पब्लिक इश्यू में निवेश कर सकते हैं। सेबी ने यह स्पष्टीकरण भारतीय म्यूचुअल फंड्स एसोसिएशन (एएफएफआई) को भेजे गए एक पत्र में दिया है। पत्र में रेगुलेटर ने सेबी (म्यूचुअल फंड) रेगुलेशन, 1996 के सातवें शेड्यूल के क्लॉज 11 का हवाला दिया, जिसमें यह प्रावधान है कि म्यूचुअल फंड स्कीम केवल उन्हीं इक्विटी शेयरों या इक्विटी से संबंधित साधनों में निवेश कर सकती हैं जो सूचीबद्ध हैं या सूचीबद्ध होने वाले हैं।
इसका सीधा अर्थ यह है कि म्यूचुअल फंड्स को ऐसे निवेशों से बचना होगा जहां लिस्टिंग की कोई स्पष्टता नहीं है। सेबी के अनुसार, कई म्यूचुअल फंड हाउस यह पूछ रहे थे कि क्या वे आईपीओ खुलने से पहले होने वाले प्री-आईपीओ प्लेसमेंट में निवेश कर सकते हैं। इस पर सेबी ने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसी अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि यदि किसी कारणवश वह आईपीओ रद्द हो जाता है या लिस्टिंग में देरी होती है, तो म्यूचुअल फंड्स के पास अनलिस्टेड यानी गैर-सूचीबद्ध शेयर रह जाएंगे। यह स्थिति नियमों के विरुद्ध होगी क्योंकि म्यूचुअल फंड्स की संपत्ति का मूल्यांकन और निवेशक सुरक्षा दोनों ही सूचीबद्ध शेयरों पर निर्भर करते हैं। रेगुलेटर ने कहा कि यदि म्यूचुअल फंड्स को प्री-आईपीओ निवेश की अनुमति दी जाती है, तो उनके पास ऐसे शेयर हो सकते हैं जिनकी ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज पर संभव नहीं होगी।
इससे पारदर्शिता और तरलता दोनों पर असर पड़ेगा। किसी भी कारण से अगर आईपीओ आगे नहीं बढ़ पाता, तो म्यूचुअल फंड निवेशकों के पैसे अनलिस्टेड इक्विटी में फंस सकते हैं, जिससे निवेशकों का नुकसान हो सकता है और यह म्यूचुअल फंड रेगुलेशन का उल्लंघन भी होगा। इसलिए सेबी ने स्पष्ट कर दिया है कि अब से म्यूचुअल फंड्स केवल दो ही चरणों में आईपीओ में भाग ले सकते हैं पहला, एंकर इंवेस्टर पोर्सन, जिसमें चुनिंदा संस्थागत निवेशकों को सार्वजनिक इश्यू से पहले शेयर आवंटित किए जाते हैं; और दूसरा, पब्लिक इश्यू, जिसमें आम निवेशक भाग ले सकते हैं। यह कदम निवेशकों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
प्री-आईपीओ निवेश में आमतौर पर जोखिम अधिक होता है, क्योंकि उस समय कंपनी के शेयरों की कीमत तय नहीं होती और लिस्टिंग का कोई निश्चित आश्वासन नहीं होता। म्यूचुअल फंड्स का प्रमुख उद्देश्य सुरक्षित और पारदर्शी तरीके से निवेश करना होता है, इसलिए सेबी का यह फैसला निवेशकों के हित में है। इस दिशा-निर्देश से बाजार में एक तरह की स्पष्टता भी आएगी। अब फंड मैनेजर्स को यह पता रहेगा कि वे केवल सूचीबद्ध या सूचीबद्ध होने वाले शेयरों में ही निवेश कर सकते हैं। इससे म्यूचुअल फंड उद्योग में अनुशासन, पारदर्शिता और निवेशक विश्वास में सुधार होगा। कुल मिलाकर, सेबी का यह निर्णय भारतीय म्यूचुअल फंड सेक्टर को अधिक नियामक स्पष्टता और निवेशकों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करेगा।