Naresh Bhagoria
21 Dec 2025
कश्मीर घाटी में एक बार फिर सर्दियों का सबसे कठिन दौर शुरू हो गया है। 21 दिसंबर से चिल्ला-ए-कलां की शुरुआत हो चुकी है, जिसे कश्मीर की सबसे भीषण सर्दी माना जाता है। इस दौरान ठंड अपने चरम पर होती है और पूरी घाटी बर्फ की सफेद चादर में ढक जाती है। चिल्ला-ए-कलां कुल 40 दिनों तक चलता है और यह 31 जनवरी को समाप्त होता है। इस समय तापमान अक्सर शून्य से नीचे चला जाता है और ऊंचाई वाले इलाकों में भारी बर्फबारी होती है।
‘चिल्ला-ए-कलां’ एक फारसी शब्द है, जिसका अर्थ होता है कड़ी या भयानक सर्दी। यह कश्मीर का वह समय होता है जब ठंड सबसे ज्यादा परेशान करती है। सुबह-शाम तेज ठंड, जमा देने वाली हवाएं और लगातार बर्फबारी आम बात होती है। इस दौरान न सिर्फ पहाड़ बल्कि मैदानी इलाके भी बर्फ से ढक जाते हैं। कई बार तापमान माइनस में चला जाता है, जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित होता है।
बर्फबारी से बदली घाटी की रफ्तार
लगातार हो रही बर्फबारी के कारण कश्मीर में रोजमर्रा की जिंदगी धीमी पड़ गई है। कई इलाकों में सड़क संपर्क बाधित हो रहा है। खासतौर पर श्रीनगर-लेह नेशनल हाईवे और श्रीनगर-कारगिल मार्ग पर यातायात को कुछ समय के लिए रोकना पड़ा। पर्यटन स्थलों की बात करें तो गुलमर्ग में करीब 2 इंच बर्फ जम चुकी है, जबकि सोनमर्ग में भी बर्फबारी जारी है। बर्फ से ढके पहाड़ और मैदान घाटी को बेहद खूबसूरत बना रहे हैं, लेकिन ठंड लोगों की मुश्किलें भी बढ़ा रही है।
डल झील भी जमने की कगार पर
चिल्ला-ए-कलां के दौरान कश्मीर की पहचान मानी जाने वाली डल झील भी ठंड की चपेट में आ जाती है। जनवरी के अंत तक झील का पानी जमने लगता है। यह नजारा देखने में भले ही खूबसूरत हो, लेकिन स्थानीय लोगों के लिए यह समय काफी चुनौतीपूर्ण होता है।
प्रशासन का कहना है कि चिल्ला-ए-कलां से निपटने के लिए सभी जरूरी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। अधिकारियों के मुताबिक, बर्फबारी संभावित इलाकों में पहले से ही मशीनें, स्टाफ और जरूरी संसाधन तैनात कर दिए गए हैं।
कश्मीर घाटी के सभी जिले और जम्मू के ऊंचाई वाले इलाके इस सर्दी से प्रभावित होते हैं, इसलिए इन क्षेत्रों पर खास नजर रखी जा रही है।
चिल्ला-ए-खुर्द और चिल्ला-ए-बच्चा भी आएंगे
चिल्ला-ए-कलां के खत्म होने के बाद भी सर्दी पूरी तरह नहीं जाती। इसके बाद 20 दिनों का चिल्ला-ए-खुर्द यानी छोटी ठंड और फिर 10 दिनों का चिल्ला-ए-बच्चा यानी हल्की ठंड का दौर रहता है। हालांकि इन दिनों में ठंड थोड़ी कम हो जाती है, लेकिन शीतलहर बनी रहती है।
चिल्ला-ए-कलां के दौरान कश्मीरियों की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है। लोग अपने पारंपरिक ऊनी कपड़े फेरन पहनते हैं और खुद को गर्म रखने के लिए कांगड़ी का इस्तेमाल करते हैं।
कांगड़ी क्या होती है?
कांगड़ी एक तरह का पारंपरिक हीटर होता है। यह लकड़ी की टोकरी के अंदर रखा मिट्टी का बर्तन होता है, जिसमें कोयला जलाया जाता है। लोग इसे कपड़ों के अंदर रखते हैं ताकि शरीर गर्म रहे। बिजली कटौती के दौरान कांगड़ी कश्मीरियों का सबसे भरोसेमंद सहारा बन जाती है।
तेज ठंड के कारण कई इलाकों में पानी के स्रोत जम गए हैं। बच्चों और बुजुर्गों में सांस से जुड़ी समस्याएं बढ़ने लगी हैं। डॉक्टरों की सलाह है कि लोग खुद को अच्छी तरह ढककर रखें और ठंड से बचाव करें।
हालांकि ठंड परेशान कर रही है, लेकिन लंबे समय के सूखे के बाद हुई यह बर्फबारी घाटी के लिए राहत लेकर आई है। इससे जल स्रोतों को फायदा मिलेगा और आने वाले समय में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।