Aniruddh Singh
7 Oct 2025
नई दिल्ली। जब कोई एनआरआई भारत में संपत्ति बेचता है, तो खरीदार को कानून के अनुसार बिक्री की पूरी राशि यानी टीडीएस स्रोत पर टैक्स काटना पड़ता है, न कि बिक्री से होने वाली वास्तविक आय या कैपिटल गेन पर। इसका मतलब है कि चाहे विक्रेता को वास्तविक लाभ कम ही क्यों न हुआ हो, खरीदार को कानूनन बिक्री की पूरी राशि पर टीडीएस कटौती करनी होती है। इससे विक्रेता के सामने नकदी का संकट पैदा हो जाता है, क्योंकि काटा गया अतिरिक्त टैक्स वापस पाने के लिए उन्हें आयकर रिटर्न दाखिल करके रिफंड की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इस समस्या से बचने के लिए आयकर कानून में एक अच्छी व्यवस्था है। एनआरआई अगर अग्रिम रूप से आयकर विभाग से लोअर डिडक्शन सर्टिफिकेट ले लेता है, तो खरीदार को केवल वास्तविक पूंजीगत लाभ यानी कैपिटल गेन पर ही टैक्स काटना होगा, न कि पूरी बिक्री राशि पर। यह प्रमाणपत्र आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 197 के तहत जारी किया जाता है। इसके लिए एनआरआई को लेनदेन से पहले आयकर विभाग में फॉर्म 13 के जरिए आवेदन करना होता है।
जब विभाग यह प्रमाणपत्र जारी करता है, तो खरीदार को स्पष्ट निर्देश मिलते हैं कि कितने प्रतिशत टीडीएस काटना है और यह केवल वास्तविक टैक्स योग्य लाभ पर ही लिया जाएगा। इस प्रकार, एनआरआई विक्रेता को अत्यधिक टैक्स कटौती और उसके बाद रिफंड की जटिल प्रक्रिया से राहत मिलती है। कर विशेषज्ञों के अनुसार अक्सर खरीदार पूरी बिक्री राशि पर टीडीएस काट लेते हैं, जिससे विक्रेता को नुकसान होता है। उदाहरण के तौर पर, यदि किसी संपत्ति का बिक्री मूल्य 1 करोड़ रुपए है, लेकिन वास्तविक लाभ केवल 20 लाख रुपए है, तब भी खरीदार को पूरी 1 करोड़ राशि पर टीडीएस काटना होगा। यह अतिरिक्त कर कटौती बाद में रिफंड के रूप में वापस तो मिल जाती है, लेकिन यह राशि कुछ समय तक आयकर विभाग के पास फंस जाती है। लोअर डिडक्शन सर्टिफिकेट इस समस्या से मुक्ति दिलाता है।
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इसके अलावा, एनआरआई के लिए यह भी जरूरी है कि वे संपत्ति की बिक्री से मिले कैपिटल गेन को अपनी आयकर रिटर्न में सही-सही दर्ज करें। उनके लिए आईटीआर-2 फॉर्म भरना अनिवार्य है। इसमें शेड्यूल सीजी (कैपिटल गेन शेड्यूल) के तहत पूरी जानकारी देनी होती है, जैसे बिक्री से प्राप्त राशि, संपत्ति की खरीद लागत, खरीदार का नाम और पैन और संपत्ति की पहचान संबंधी विवरण। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि खरीदार द्वारा काटा गया टीडीएस विक्रेता के पैन से जुड़ा होता है और आयकर विभाग की प्रणाली में इसी के आधार पर मिलान किया जाता है। अब सवाल उठता है कि एनआरआई को कैपिटल गेन टैक्स कितना देना होगा। यह संपत्ति की होल्डिंग अवधि पर निर्भर करता है। अगर संपत्ति खरीदने के 24 माह के भीतर बेच दी जाती है, तो उससे होने वाला लाभ शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन (एसटीसीजी) कहलाता है। इसे व्यक्ति की सामान्य आयकर स्लैब दरों पर कर योग्य माना जाता है। इसका मतलब है कि यदि एनआरआई उच्च कर स्लैब में आता है, तो उस पर भारी टैक्स लग सकता है।
लेकिन यदि संपत्ति 24 महीने से अधिक समय तक रखी गई है, तो उससे होने वाला लाभ लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन (एलटीसीजी) कहलाता है। एनआरआई के मामले में इस पर फ्लैट 12.5% टैक्स (साथ में सरचार्ज और सेस) लगता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि एनआरआई को लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन पर इंडेक्सेशन का लाभ नहीं मिलता, यानी वे महंगाई के हिसाब से लागत बढ़ाकर टैक्स घटा नहीं सकते। इस पूरी व्यवस्था का सार यह है कि लोअर डिडक्शन सर्टिफिकेट एनआरआई विक्रेताओं के लिए एक राहत का साधन है। यह सुनिश्चित करता है कि टैक्स केवल वास्तविक लाभ पर कटे, जिससे उन्हें नकदी फंसने की परेशानी न उठानी पड़े। बिना सर्टिफिकेट विक्रेता को बड़ी मात्रा में टीडीएस कटवाना पड़ सकता है और बाद में लंबे इंतजार के बाद ही रिफंड मिल पाएगा। इस परेशानी से बचने के लिए एनआरआई को संपत्ति बेचने से पहले ही आयकर विभाग में फॉर्म 13 के जरिए आवेदन करना चाहिए। इससे खरीदार को स्पष्ट निर्देश मिलेंगे और केवल वास्तविक लाभ पर टीडीएस कटेगा।
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