Peoples Reporter
10 Sep 2025
हर साल पितृपक्ष में हम अपने पूर्वजों की उनकी आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा, श्राद्ध और तर्पण करते हैं। मान्यता है कि इस समय पितर अपने परिवार वालों के पास आते हैं और उनके द्वारा किए गए कर्मों से संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि तर्पण का जल सीधे पितरों तक पहुंचकर उन्हें भोजन, अमृत और संतुष्टि प्रदान करता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार तर्पण के जल से पितरों को आवश्यक भोजन और संतुष्टि प्राप्त होती है। जिस प्रकार वर्षा का जल अलग-अलग स्थानों पर गिरकर विभिन्न रूप ले लेता है जैसे- सीप में गिरने से मोती बनता है, खेत में गिरने से अन्न बनता है, और धूल में गिरने से कीचड़ बन जाता है। इसी प्रकार तर्पण का जल सूक्ष्म कणों के रूप में पितरों तक पहुंचता है। देव योनि में रहने वाले पितरों को अमृत, मनुष्य योनि में रहने वाले पितरों को अन्न, पशु योनि में रहने वाले पितरों को चारा, तथा अन्य योनियों में रहने वाले पितरों को उनके अनुरूप भोजन मिलता है।
तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। जो व्यक्ति श्रद्धा से तर्पण करता है उसे हर तरफ से लाभ मिलता है, साथ ही नौकरी में तरक्की और जीवन में स्थिरता भी प्राप्त होती है।
तर्पण करते समय शुद्धता और श्रद्धा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। सबसे पहले एक लोटे में साफ जल लें। उसमें दूध, जौ, चावल और गंगा जल मिलाकर तर्पण करें। तर्पण करते समय दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें। बायां घुटना मोड़ें। जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति अपने जनेऊ को बाएं कंधे से उठाकर दाएं कंधे पर रखें। हाथ के अंगूठे के सहारे जल को धीरे-धीरे नीचे गिराएं। इस मुद्रा को पितृ तीर्थ मुद्रा कहा जाता है। इसी मुद्रा में रहते हुए अपने सभी पितरों को तीन-तीन अंजलि जल देना चाहिए। तर्पण के समय साफ कपड़े पहनें और मन में श्रद्धा भाव रखें।