Shivani Gupta
15 Dec 2025
धर्म डेस्क। साल 2025 का आखिरी प्रदोष व्रत भगवान शिव की आराधना का खास अवसर लेकर आ रहा है। यह व्रत बुधवार, 17 दिसंबर 2025 को रखा जाएगा। बुधवार होने के कारण इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने पर शिवजी की विशेष कृपा मिलती है, कष्ट दूर होते हैं और रुके हुए काम गति पकड़ते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस तरह साल में कुल 24 प्रदोष व्रत होते हैं, लेकिन साल का आखिरी प्रदोष व्रत खास माना जाता है, क्योंकि यह पूरे वर्ष की साधना और आस्था का सार होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि प्रदोष काल में की गई शिव पूजा तुरंत फल देती है।

क्योंकि 17 दिसंबर, बुधवार को पूरे दिन त्रयोदशी तिथि रहेगी, इसलिए इसी दिन प्रदोष व्रत रखा जाएगा। बुधवार का संयोग होने से यह बुध प्रदोष व्रत कहलाएगा, जो बुद्धि, व्यापार और निर्णय क्षमता से जुड़ा माना जाता है।
साल 2025 का आखिरी प्रदोष व्रत इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन कई शुभ और दुर्लभ योग बन रहे हैं। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, सुकर्मा योग, धृति योग जैसे प्रमुख योग बनने वाले हैं। इन योगों में भगवान शिव की पूजा करने से फल कई गुना बढ़ जाता है।
बुध प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा का सबसे उत्तम समय प्रदोष काल होता है। पूजा का शुभ समय शाम 5:27 बजे से रात 8:11 बजे तक है। इस दौरान पूजा करने से शिवजी शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
प्रदोष व्रत पर की गई पूजा बहुत फलदायी मानी जाती है। इसके अलावा कुछ सरल उपाय अपनाकर आप शिव कृपा को और मजबूत कर सकते हैं-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष काल भगवान शिव की आराधना का सबसे शुभ समय माना जाता है। मान्यता है कि इसी समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर दिव्य नृत्य करते हैं और सभी देवी-देवता उनकी स्तुति करते हैं। कहा जाता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव ने अपने वाहन नंदी के सींगों के बीच नृत्य किया था। इसी कारण प्रदोष व्रत की पूजा में नंदी महाराज का विशेष महत्व होता है और शिव के साथ नंदी की पूजा भी फलदायी मानी जाती है।
शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि से शुरू किया जा सकता है। हालांकि, यदि यह व्रत श्रावण मास या कार्तिक मास की त्रयोदशी से आरंभ किया जाए, तो इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। इन महीनों में भगवान शिव की पूजा करने से पुण्य कई गुना बढ़ जाता है और साधक को विशेष फल की प्राप्ति होती है।