Aniruddh Singh
7 Nov 2025
Aniruddh Singh
7 Nov 2025
मुंबई। वित्त वर्ष 2024-25 में भारतीय कंपनियों का विदेशी निवेश (आउटबाउन्ड इन्वेस्टमेंट) रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। यह निवेश पिछले साल की तुलना में 67.74% बढ़कर 41.6 अरब डॉलर हो गया है। अर्न्स्ट एंड यंग की रिपोर्ट के अनुसार, इस वृद्धि में प्रमुख योगदान तकनीक, फार्मा, ऑटोमोबाइल, हॉस्पिटैलिटी और ऊर्जा क्षेत्रों का रहा है। निवेश की राशि ही नहीं, बल्कि निवेश लेन-देन की संख्या में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है। पिछले साल से तुलना करते हुए देखें तो इसमें 15% की वृद्धि देखने को मिली है। एक और अहम बदलाव यह देखने को मिला कि भारतीय कंपनियां निवेश के लिए अब नए देशों की ओर रुख कर रही हैं। पहले तक सिंगापुर, मॉरीशस और नीदरलैंड जैसे इंटरमीडियरी जूरिस्डिक्शन प्रमुख केंद्र थे, लेकिन अब कंपनियां यूएई, लक्जमबर्ग और स्विटजरलैंड जैसे विकल्प तलाश रही हैं। इन देशों में आकर्षक टैक्स व्यवस्था, उन्नत नियामकीय ढ़ांचा और भारत की प्राथमिकताओं जैसे सस्टेनेबिलिटी, डिजिटल इनोवेशन और व्यापार विस्तार से मेल खाता माहौल उपलब्ध है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 में शुद्ध विदेशी निवेश लगभग 29 अरब डॉलर रहा है। भारतीय कंपनियां विदेश में निवेश और कारोबार के नए अवसर तलाश रही हैं। डिपार्टमेंट आफ प्रमोशन आफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआईआईटी) के अनुसार वित्तवर्ष 2024-25 में भारत को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के रूप में कुल 50.1 अरब अमेरिकी डॉलर की इक्विटी प्राप्त हुई है। इसमें यदि पुनर्निवेशित आय को भी शामिल कर लिया जाए, तो कुल एफडीआई 81.04 अरब डॉलर के आसपास रहा है। पहले भारतीय कंपनियां विदेश में निवेश के लिए ज्यादातर सिंगापुर, नीदरलैंड्स और मारीशस जैसे देशों का इस्तेमाल किया करती थीं। इन देशों के टैक्स कानून, निवेश की सुविधा, निवेश की सुविधा और कानूनी ढ़ांचा कंपनियों को विदेश में पैसा लगाने में मदद करते हैं। लेकिन अब स्थिति बदल रही है। भारतीय कंपनियां अब इन परंपरागत देशों तक सीमित नहीं रहना चाहतीं और अब वे नए बाजारों में निवेश करने के रास्ते खोज रही हैं।
इसका मतलब है कि भारत न केवल विदेशी निवेश आकर्षित कर रहा है, बल्कि भारतीय कंपनियां भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी मात्रा में पूंजी निवेश कर रही हैं। यूएई में भारतीय निवेशक अब केवल ऊर्जा तक सीमित नहीं रह गए हैं। सीईपीए (कंप्रीहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट) और इंफ्रास्ट्रक्चर तथा तकनीक में नए अवसरों ने बड़े पैमाने पर भारतीयों को आकर्षित किया है। वहीं, लक्जमबर्ग की ताकत फंड मैनेजमेंट और ग्रीन फाइनेंस में है, जबकि स्विटजरलैंड का आईपी (इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी) अनुकूल वातावरण और उन्नत ढ़ांचा भारतीय निवेशकों को आकर्षित कर रहा है। ये देश न केवल टैक्स में राहत देते हैं, बल्कि आधुनिक नियामक ढ़ांचे और भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं से भी मेल खाते हैं। पर्यावरण, सामाजिक और सुशासन (ईएसजी) अब विदेशी निवेश निर्णयों का अहम हिस्सा बन गया है। यूरोप में कार्बन प्राइसिंग, अमेरिका में सप्लाई चेन ड्यू डिलिजेंस जैसे नियम कंपनियों को बाध्य कर रहे हैं कि वे अपने निवेश को टिकाऊ और जिम्मेदार तरीके से डिज़ाइन करें। इससे निवेशकों और नियामकों की अपेक्षाएं पूरी की जा सकें।
एक और दिलचस्प रुझान यह है कि भारतीय कंपनियां अब तेजी से गिफ्ट सिटी (गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक सिटी) को विदेशी निवेश का गेटवे बना रही हैं। आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, 2022-23 में जहां यहां से केवल 0.04 अरब डॉलर का निवेश हुआ था, वहीं 2024-25 में यह बढ़कर 0.81 अरब डॉलर हो गया, यानी दो साल में 100% से अधिक की छलांग लगाई। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। अमेरिका द्वारा घोषित नए टैरिफ, ओईसीडी के बीईपीएस पिलर रिफार्म्स और सस्टेनेबिलिटी-लिंक्ड ट्रेड मीजर्स ने विदेशी निवेश की जटिलताओं को और बढ़ा दिया है। अर्न्स्ट एंड यंग का कहना है कि यह सब संकेत हैं कि कंपनियों को अपनी विदेशी निवेश रणनीतियों में निर्णायक बदलाव करना होगा। अर्न्स्ट एंड यंग इंडिया के टैक्स पार्टनर वैभव लूथरा का कहना है कि अब विदेशी निवेश पूंजी अधिक ईएसजी-संवेदनशील और स्थानीय अपेक्षाओं के अनुरूप होना चाहिए। सही संतुलन, लचीलापन और वित्तीय संरचना ही कंपनियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सफलता तय करेंगे।