Aniruddh Singh
7 Oct 2025
वाशिंगटन। अमेरिका ने भारत की रूसी कच्चे तेल की खरीद को लेकर सख्त रुख अपनाया है। व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने कहा है कि भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने से मॉस्को को यूक्रेन युद्ध के लिए धन मिल रहा है। नवारो ने कहा भारत अब रूस और चीन दोनों के करीब जा रहा है, और अगर भारत सचमुच अमेरिका का रणनीतिक साझेदार बनना चाहता है तो उसे वैसा आचरण भी करना होगा। नवारो ने आरोप लगाया कि भारत वैश्विक क्लीयरिंग हाउस की तरह काम कर रहा है, यानी प्रतिबंधित रूसी तेल खरीदकर उसे परिष्कृत उत्पादों के रूप में दुनिया के अन्य हिस्सों में निर्यात कर रहा है। इससे रूस को डॉलर मिल रहे हैं और वह अपनी युद्ध मशीनरी को चालू रख पा रहा है। नवारो के अनुसार, इस परिस्थिति में भारत को अत्याधुनिक अमेरिकी सैन्य तकनीक हस्तांतरित करना जोखिम भरा होगा। भारत अब रूस और चीन दोनों के साथ संबंध मजबूत कर रहा है। हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय ने पहले ही साफ कर दिया है कि जब अमेरिका और यूरोपीय संघ रूस से अन्य वस्तुएं खरीदना जारी रखे हैं, तब सिर्फ भारत की तेल खरीद को समस्या बताना सही नहीं है।
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भारत ने यह भी तर्क दिया है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देता है और सस्ती दरों पर तेल खरीदना उसका अधिकार है। इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस महीने की शुरुआत में भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगा दिया था। इससे भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर कुल टैरिफ 50% तक पहंच गया है। यह दंडात्मक कदम भी सीधे तौर पर भारत की रूसी तेल खरीद से जोड़ा गया है। इस फैसले ने भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में नई जटिलता जोड़ दी है। इसके साथ ही, भारत-चीन संबंधों का पहलू भी ध्यान देने योग्य है। नवारो ने संकेत दिया कि भारत और चीन धीरे-धीरे अपने रिश्तों को मज़बूत कर रहे हैं, खासकर उस समय जब ट्रंप प्रशासन का दोनों देशों के प्रति रुख अस्थिर और अप्रत्याशित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने वाले हैं, और इससे पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत आकर सीमा विवाद सहित कई मुद्दों पर बातचीत करेंगे।
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ऐसे समय में, जब अमेरिका भारत से दूरी बना रहा है, भारत और चीन के बीच यह संपर्क कूटनीतिक दृष्टि से अहम है। यह संकेत देता है कि भारत अपने विकल्प खुले रखना चाहता है और केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहता। इसी पृष्ठभूमि में अमेरिकी व्यापार वार्ताकारों की नई दिल्ली यात्रा, जो 25–29 अगस्त के बीच होनी थी, रद्द कर दी गई है। इससे संभावित व्यापार समझौते पर बातचीत टल गई और 27 अगस्त से लागू होने वाले अमेरिकी टैरिफ़ से राहत की उम्मीद भी टूट गई है। कुल मिलाकर, इसका अर्थ यह है कि भारत की ऊर्जा जरूरतें और कूटनीतिक संतुलन अमेरिका को रास नहीं आ रहे हैं। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए और उसकी नीतियों के साथ पूरी तरह मेल खाए। लेकिन भारत अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता छोड़ने को तैयार नहीं दिखता। इस कारण से दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया है, और आने वाले समय में यह विवाद न केवल व्यापार बल्कि सामरिक संबंधों को भी प्रभावित कर सकता है।