Aniruddh Singh
4 Dec 2025
नई दिल्ली। भारत ने हाल के दिनों में अमेरिकी कच्चे तेल की खरीदारी बढ़ाई है। इसका मुख्य कारण है कि अमेरिका का वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) क्रूड अन्य विकल्पों की तुलना में सस्ता और प्रतिस्पर्धी दाम पर उपलब्ध है। इस कदम से न केवल भारतीय रिफाइनरियों को लागत लाभ मिलेगा बल्कि अमेरिका के साथ चल रहे व्यापार तनाव के बीच भारत का व्यापार घाटा भी कम हो सकता है। जानकारी के अनुसार, देश की सबसे बड़ी तेल कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) ने अक्टूबर और नवंबर में आपूर्ति के लिए अमेरिका से 5 मिलियन बैरल डब्ल्यूटीआई कच्चा तेल खरीदा है। इसी तरह, सरकारी तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (बीपीसीएल) ने भी 2 मिलियन बैरल डब्ल्यूटीआई कच्चा तेल खरीदा है। निजी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने भी ट्रेडिंग कंपनी विटोल से 2 मिलियन बैरल डब्ल्यूटीआई कच्चे तेल की खरीद की है।
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इस खरीद के पीछे एक बड़ा कारण यह है कि एशियाई बाजारों के लिए सस्ता अमेरिकी तेल उपलब्ध है। यानी एशिया में अमेरिकी तेल मुनाफे के साथ खरीदा और बेचा जा सकता है। इसका लाभ उठाते हुए भारत समेत अन्य एशियाई देश भी अमेरिकी तेल खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। दरअसल, अमेरिका ने हाल ही में भारत पर आयातित वस्तुओं पर शुल्क दोगुना करके 50% कर दिया है। इसका कारण यह बताया गया कि भारत रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीद रहा है, जिससे अमेरिका असहज है। ऐसे में भारत पर दबाव है कि वह अमेरिका से भी अधिक तेल खरीदे, ताकि व्यापार संबंधों में संतुलन बना रहे और बढ़ते तनाव को कुछ हद तक कम किया जा सके। इस सौदे में कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी शामिल हैं।
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यूरोप की गनवोर और इक्विनोर ने 2-2 मिलियन बैरल तेल बेचा है, जबकि मर्कुरिया ने आईओसी को 1 मिलियन बैरल की आपूर्ति की है। वहीं बीपीसीएल ने पहली बार नाइजीरिया के यूटापेटे क्रूड की भी खरीद की है, जिससे पता चलता है कि भारत अपनी कच्चे तेल की आपूर्ति को विविधतापूर्ण बनाने पर जोर दे रहा है। इस पूरी प्रक्रिया का भारत की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर हो सकता है। एक ओर तो सस्ते अमेरिकी तेल से आयात लागत घटेगी, दूसरी ओर व्यापार घाटा भी कम होगा क्योंकि भारत और अमेरिका के बीच आयात-निर्यात का संतुलन सुधरेगा। साथ ही, इससे अमेरिका को यह संदेश भी जाएगा कि भारत केवल रूस पर निर्भर नहीं है, बल्कि अन्य ऊर्जा स्रोतों से भी तेज खरीद रहा है। कुल मिलाकर, भारत की यह रणनीति आर्थिक और कूटनीतिक दोनों दृष्टि से अहम है। ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने, व्यापार घाटा घटाने और अमेरिका के साथ रिश्तों को संतुलित करने के लिए अमेरिकी कच्चे तेल की यह बढ़ती खरीद भविष्य में भी जारी रह सकती है।
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